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अभिज्ञान

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4429
आईएसबीएन :9788170282358

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कृष्ण-सुदामा की मनोहारी कथा...


"खोखले तर्कों में मत उलझाओ कृष्ण!" सुदामा का स्वर पुनः आक्रोश से भर आया था, "यह तुम भी समझ रहे हो कि मैं क्या कह रहा हूं। किसान के परिश्रम का फल केवल उपज का हो जाना नहीं है। उस अन्न के उपजने का लाभ भी उसे होना चाहिए। यदि उस अन्न से धन की प्राप्ति भूस्वामी, व्यापारी अथवा सामन्त को होती है तो किसान के श्रम का फल वे भोग रहे हैं। कर्म किसान ने किया है और फल कोई और भोग रहा है। यह कौन-सा कार्य-कारण सम्बन्ध हुआ? यह कौन-सी तर्क-श्रृंखला हुई?"

कृष्ण मुक्त मन और कण्ठ से खिलखिलाकर हंस पड़े। उनकी सारी गम्भीरता जाने कहां लुप्त हो गयी। इस समय उनके चेहरे पर वही लीलामय हाथ था, जो गुरु सांदीपनि के आश्रम में क्रीड़ा अथवा तर्क के समय, विपक्ष को अपने जाल में फंसते देखकर होता था।

"तो अब सुदामा भी जीव, ब्रह्म और माया को छोड़, किसान, परिश्रम और फल की बातें सोचने लगा। यह बहुत शुभ है सुदामा! बहुत ही शुभ। चिन्तन का इस ओर बढ़ना बहुत कल्याणकारी है।" कृष्ण क्षण-भर के लिए रुके, "जब सोचने ही लगे हो तो केवल किसान तक ही मत रुको, गोपालों के विषय में भी सोचो, श्रमिकों, जुलाहों, कर्मकरों और अन्य उत्पादकों के लिए भी सोचो; नये प्रयोगों, शोधों, चिन्ताओं तथा अध्ययनों के लिए तपस्यारत ऋषियों-मुनियों, ज्ञानियों-विज्ञानियों के विषय में भी सोचो। घरों में कार्य करती हुई, सबके लिए त्याग, बलिदान और श्रम करती, किन्तु पुरुषों के आधिपत्य में पिसती हुई नारियों के विषय में भी सोचो...।"

सुदामा का आक्रोश चुक गया था। वे सहज होकर बोले, "तुमने तो सोचा होगा! बताओ, तुम्हीं समाधान दो।"

"मैंने कुछ-न-कुछ तो सोचा ही है। बहुत दिनों से सोचता आया हूं।" कृष्ण पुनः गम्भीर हो गये, "मुझे लगता है कि हमने अभी समग्रता में सोचना नहीं सीखा है। इसी से सत्य हमारी पकड़ में नहीं आता और हम अन्धकार में हाथ-पैर मारते रहते हैं।"

"सत्य क्या है, तुम ही बताओ?" सुदामा बीच में ही बोले।

"बड़े उतावले हो मित्र! सत्य की खोज तो बड़े धैर्य का काम है।" कृष्ण मुस्कराये, "अच्छा चलो, पहले किसान का ही प्रश्न लेते हैं। बात हम यहां से आरम्भ करते हैं कि एक किसान भूमि को बड़े परिश्रम से खोदता है और बीज बो देता है; किन्तु वर्षा नहीं होती, सूखा पड़ जाता है-या ऐसा ही कुछ और हो जाता है, जिससे बीज सड़ जाते हैं या उपज सूख जाती है और किसान के हाथ कुछ नहीं लगता। ऐसे में तत्काल तुम प्रश्न करोगे कि उसने तो कर्म किया, फिर उसे फल क्यों नहीं मिला?'

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    अनुक्रम

  1. अभिज्ञान

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