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स्वामी और उसके दोस्त

आर. के. नारायण

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :148
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4447
आईएसबीएन :9788170287858

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रोमांचपूर्ण अनुभवों और कारनामों का अधूरा संसार...

Swami Aur Uske Dost

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

सोमवार की सुबह
1

सोमवार की सुबह थी। स्वामीनाथन की आँखें खोलने की इच्छा नहीं हो रही थी। सोमवार उसे कैलेंडर का सबसे मनहूस दिन लगता था। शनिवार और रविवार की मजेदार आजादी के बाद सोमवार को काम और अनुशासन के मूड में आना बहुत मुश्किल होता था। स्कूल के विचार से ही उसे झुरझुरी आ गयी-वह पीली मनहूस बिल्डिंग, जलती आँखों वाला कक्षा-अध्यापक वेदनायकम और पतली, लंबी छड़ी हाथ में लिए हैडमास्टर।

आठ बजे तक अपने ‘कमरे’ में डेस्क पर विराजमान था। कमरा यानी पिता के ड्रेसिंग रूम का एक कोना, यहीं उसकी मेज थी जिस पर उसकी सभी चीजें, कोट टोपी, स्लेट दवात और किताबें अस्तव्यस्त पड़ीं थीं। स्टूल पर बैठकर उसने आँखें बंद कर लीं और याद करने लगा कि आज उसे क्या-क्या काम करना है। सहसे पहले गणित-पांच सवाल लाभ हानि के; फिर अंग्रेजी-आठवें पाठ के एक पृष्ठ को कापी पर लिखना; कठिन शब्दों के शब्दकोश से अर्थ लिखना; और फिर भूगोल,। और उसके बाद है सिर्फ दो घंटे जिनमें उसे ढेर सारा काम करना है और फिर स्कूल के लिए तैयार भी होना है।

 

2

 

जलती आँखों वाले अध्यापक वेदनायकम कक्षा में लंबी-लंबी खिड़की की तरफ पीठ किए बैठे थे। उसकी सलाखों से खेल के मैदान का कुछ भाग और शिशु कक्षाओं के बरामदे का कोना दिखाई देता था। बाईं ओर बड़ी-बड़ी खिड़कियां जिनसे विस्तृत खुला मैदान दिखाई दे रहा था। मैदान के दूसरे छोर पर रेलवे पुल था।
स्वामीनाथन का कक्षा में सिर्फ इसलिए अस्तित्व था कि वहां से छोटे बच्चों को एक-दूसरे पर गिरते-पड़ते देख सकता था और बाईं ओर की खिड़कियों से 12.30 बजे की डाकगाड़ी को सरयू पुल के ऊपर से खड़खड़ करते निकलते देख सकता था।
पहली घंटी शांति से बीत गयी। दूसरी गणित की थी। वेदनायकम बाहर गये और कुछ ही मिनटों में गणित के अध्यापक के रूप में फिर आ गये। वे एक ही स्वर में भिनभिनाते रहे। स्वामीनाथन के लिए यह बेहद उबाऊ था। अध्यापक की आवाज से उसे चिढ़ हो रही थी। उसे नींद आने लगी।

अध्यापक ने होमवर्क की कापियां दिखाने के लिए कहा। स्वामीनाथन अपनी जगह से उठा, छलांग मारकर प्लेटफार्म पर चढ़ा और अपनी कापी मेज पर रख दी। जब अध्यापक सवाल देख रहे थे, स्वामीनाथन उनके चेहरे को गौर से देख रहा था, जो उसे निकट से देखने पर बहुत भोला-भाला लगा। अध्यापक के चेहरे के संबध में स्वामीनाथन का कहना था उनकी दोनों आंखें एक-दूसरे के बहुत करीब हैं, उनकी ठोड़ी पर, जितने दूर बेंच से बाल दिखाई देते हैं उससे कहीं ज्यादा हैं और उनकी शक्ल बहुत ही भद्दी है।
उसकी तंद्रा तब टूटी जब उसे कोहनी से ऊपर नरम मांस में तेज दर्द हुआ। अध्यापक एक हाथ से चुटकी काट रहे थे और दूसरे से सारे सवालों पर काटा लगा रहे थे। पृष्ठ के नीचे उन्होंने ‘वैरी बैड’ लिखा, कापी स्वामीनाथन के मुंह पर दे मारी और उसे वापस सीट पर भेज दिया।

अगली घंटी इतिहास की थी। लड़के बड़ी उत्सुकता से उसकी प्रतीक्षा करते थे। इतिहास डी. पिल्लै पढ़ाते थे जो स्कूल में नरम व्यवहार तथा हंसी मजाक के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी प्रसिद्धि इस बात के लिए थी कि उन्होंने लड़कों से कभी गुस्से-गाली से भरा व्यवहार नहीं किया। इतिहास पढ़ाने की उनकी शैली शिक्षा के किसी भी मापदंड के अंतगर्त नहीं आती थी। वे वास्को-डी-गामा, क्लाइव, हेस्टिंग्ज और अन्य लोगों के निजी जीवन की ढेर-सी जानकारी लड़कों को देते थे। जब वे इतिहास की बड़ी लड़ाइयों का वर्णन करते थे तो हथियारों के टकराने की आवाजें और मरने वालों की कराहें भी सुनाई देने लगती थीं। जब कभी हैडमास्टर निरीक्षण के लिए दबे पांव बरामदे में आते तो उन्हें इतिहास के अध्यापक से बहुत निराशा होती थी।

सुबह के सत्र में धर्म-शिक्षा का पीरियड अंतिम होता था। यह इतना उबाऊ नहीं होता था। कई बार ऐसे अवसर आते थे जब दिल को हिला देने वाली झांकी सामने उपस्थिति हो जाती थी : लाल सागर में दरार पड़ना और इज्राइलियों के लिए रास्ता बन जाना, सैक्सन के कारनामे, ईसा मसीह का कब्र से जीवित उठना, आदि। एक समस्या थी और वह यह कि धर्म-शिक्षा के अध्यापक श्री एब्नेजर बहुत कट्टर थे। एक बार मुट्ठियां भींचकर उन्होंने कहा, ‘‘मूर्खो, तुम गंदी, बेजान लकड़ी-पत्थर की मूर्तियां क्यों पूजते हो ? क्या वे बोल सकती हैं ? नहीं । क्या वे वरदान दे सकती हैं ? नहीं। क्या तुम्हें स्वर्ग ले जा सकती है ? नहीं। क्यों ? क्योंकि ये बेजान हैं। तुम्हारे देवताओं ने क्या किया, जब महमूद गजनी ने उनकी मूर्तियों के टुकड़े-टुकड़े करके उन्हें पांव तले रौंदा, उनसे अपने शौचालय के लिए सीढ़ियां बनवायीं ? अगर मूर्तियां जीवित थीं तो उन्होंने महमूद के आक्रमण को क्यों नहीं रोका ?’’

इसके बाद वह ईसाई धर्म पर आये, ‘‘हमारे ईसा मसीह को देखो। वे बीमारों को ठीक कर सकते हैं, निर्धनों के दुख दूर कर सकते हैं और हमें स्वर्ग ले जा सकते हैं। वही असली भगवान हैं। उस पर विश्वास करो, वह तुम्हें स्वर्ग ले जायेगा। स्वर्ग का राज्य हमारे दिलों में है।’’ जब अध्यापक एब्नेजर अपने सामने ईसा मसीह की कल्पना करते थे तो उनकी आँखों से आंसू झरने लगते थे। दूसरे ही क्षण कृष्ण की याद करके उनका चेहरा गुस्से से लाल हो उठता था, ‘‘क्या हमारा ईसा मसीह तुम्हारे कृष्ण की तरह नाचने वाली लड़कियों के साथ आवारागर्दी करता था ? क्या हमारा ईसा मसीह उस बदमाश कृष्ण की तरह मक्खन-दही चुराता था ? क्या हमारे ईसा मसीह ने अपने आसपास के लोगों पर काला जादू किया ?

वे सांस लेने के लिए रुके। उस दिन वह असहनीय हो उठे। स्वामीनाथन का खून खौलने लगा। उसने उठकर पूछा, ‘‘उन्होंने कुछ नहीं किया तो उन्हें सलीब पर क्यों चढ़ाया गया ?’’ अध्यापक ने उसे बताया कि पीरियड के बाद उसके पास आये और अकेले में सारी बातें समझे। अध्यापक के नरम उत्तर से प्रोत्साहन पाकर स्वामीनाथन ने एक और सवाल पूछ लिया, ‘‘वे भगवान थे तो मांस-मछली क्यों खाते थे और शराब क्यों पीते थे ?’’ ब्राह्मण बालक होने के कारण उसके लिए यह बात कल्पना से बाहर थी कि भगवान मांसाहारी हो सकता है। इसके उत्तर में अध्यापक एब्नेजर कुर्सी छोड़कर धीरे-धीरे स्वामीनाथन की तरफ बढ़े और उसके कान उमेठने लगे।

 

3

 

 

अगले दिन स्वामीनाथन स्कूल जल्दी पहुंच गया। घंटी लगने में अभी आधा घंटा बाकी था। ऐसे अवसरों पर वह स्कूल भर में दौड़ता-फिरता था। इमली के बड़े पेड़ के नीचे गत्ती के खेल में समय बिताता था। लेकिन आज वह सोच में डूबा अलग बैठा रहा। उसकी जेब में एक मोटा पत्र था। जब उसने उंगलियों से उसके किनारे को छुआ तो उसने अपने को अपराधी-सा अनुभव किया।
रात के समय उसने पिताजी को अध्यापक एब्नेजर के बारे में बताया था। अब वह इस पर पछता रहा था और अपने को नंबर एक का गधा मान रहा था।
जैसे ही घंटी बजी, वह हैडमास्टर के कमरे में दाखिल हुआ और उन्हें वह पत्र दे दिया। हैडमास्टर ने उसे पढ़ा तो उनका चेहरा गंभीर हो गया :

महोदय,
मैं आपको सूचित करना चाहता हूं कि मेरा लड़का पहली स्वामीनाथन फार्म के ‘ए’ सेक्शन में पढ़ता है। कल धर्म-शिक्षा के अध्यापक ने धार्मिक आदेश में उसे चोट पहुंचायी।
मुझे पता चला है कि वह अध्यापक हिन्दू धर्म के बारे में बात करते समय बहुत अपमान जनक और भड़काने वाली भाषा का प्रयोग करते हैं। इसका लड़कों पर निश्चय ही बुरा प्रभाव पड़ता है। इन मामलों में सहिष्णुता बरतने की जरूरत है, पर में विस्तार से कुछ नहीं कहूँगा।

मुझे यह भी बताया गया है कि जब मेरे लड़के ने कुछ शंकाओं का समाधान करने के लिए कहा तो उसके साथ अध्यापक ने क्रूर व्यवहार किया। शाम को वह घर आया, तब भी उसके कान लाल थे।
इसमें मैं यह निष्कर्ष निकालता हूं कि आप अपने स्कूल गैर-ईसाई लड़कों को रखना नहीं चाहते। यदि ऐसा हो तो कृपया हमें सूचित करें। मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं कि सारे मालगुड़ी में अकेला एल्बर्ट मिशन स्कूल ही नहीं है। आशा है कि आप कृपा करके सारे मामले की जांच करेंगे और मुझे उत्तर देंगे। यदि ऐसा नहीं हुआ तो खेद के साथ मुझे स्कूल में चल रहे व्यवहार की तरफ उच्च अधिकारियों का ध्यान दिलाना पड़ेगा।
सादर

 

आपका अत्यन्त आज्ञाकारी सेवक
डब्ल्यू. टी. श्रीनिवासन

 

जब स्वामीनाथन कमरे से बाहर आया तो सारा स्कूल उसके इर्दगिर्द जमा हो गया और होंठों से निकलने वाले शब्दों को सुनने के लिए उत्सुक था। किन्तु वह लड़कों के सवालों की बड़ी बेरुखी से उपेक्षा कर रहा था। उसने केवल चार लड़कों को विश्वास में लिया। इन चारों लड़कों को कक्षा में वह सबसे ज्यादा चाहता था और उनकी प्रशंसा करता था। एक तो था मानीटर सोमू, जो हमेशा साहब बना रहता था। वह अपना काम, चाहे वह जो भी हो, बड़े विश्वास और शांतभाव से करता था। वह अध्यापकों का भी प्रिय माना जाता था। कोई अध्यापक कक्षा में उससे सवाल नहीं पूँछता था। यह तो नहीं कहा जा सकता कि वह बहुत प्रभावशाली छात्र था। ऐसा माना जाता था कि केवल हैडमास्टर ही उसे डांट सकता था। उसे कक्षा के चाचा की तरह माना जाता था।

दूसरा था मणि, जो ‘न काम का न काज का’ बाहुबली था। कक्षा में सब लड़कों पर उसका दबदबा था। वह न तो कभी किताबें लाता था और न होमवर्क की उसने कभी चिंता की थी। वह कक्षा में आता था, पिछली बेंच पर कब्जा करके बहादुरी के साथ सोता था। किसी अध्यापक ने उसे कभी छेड़ने की कोशिश नहीं की। कहा जाता है कि एक नये अध्यापक ने एक बार ऐसी कोशिश की थी तो उसे लगभग जान से हाथ धोना पड़ा था। मणि सभी अजनबियों को तंग करता था, चाहें वे छोटे हो या बड़े। आम तौर पर लोग उसे आता देखकर एक तरफ हट जाते थे। सिर पर तिरछी टोपी लगाये और बगल में कोई तमिल उपन्यास दबाये वह तब से स्कूल आ रहा था, जब से स्कूल का बूढ़ा चपरासी याद कर सकता था। अधिकतर कक्षाओं में वह अपने साथियों की तुलना में अधिक समय तक रहता था। स्वामीनाथन को उसकी दोस्ती पर गर्व था। दूसरे लड़के उसके सामने डरकर दुबके रहते थे, लेकिन वह उसे मणि कहकर बुलाता था और दोस्ती से उसकी पीठ थपथपा सकता था। स्वामीनाथन प्रशंसा भाव से भरकर उससे पूछता था कि उसे इतनी ताकत कहां से मिली। इस पर उसने बताया था कि उसके घर में लकड़ी के मुगदरों का एक जोड़ा है। उनसे वह उनकी कमर तोड़ सकता है, जो उससे उलझने का दुस्साहस करेंगे।

तीसरा लड़का शंकर था जो कक्षा का सबसे प्रतिभाशाली छात्र था। वह किसी भी सवाल को पांच मिनट में हल कर सकता था और हमेशा 90 प्रतिशत के आसपास अंक लेता था। लड़कों का एक वर्ग मानता था कि वह अध्यापकों से सवाल पूछने लगे तो अध्यापक कहीं न टिकें। कुछ दूसरे लड़के कहते थे कि शंकर ठस दिमाग का है और चापलूसी करके सवालों के जवाब पहले ही मालूम कर लेता है। कहा जाता था कि वह अध्यापकों के कपड़े धोकर 90 प्रतिशत अंक प्राप्त करता था। कक्षा के सामने वह अध्यापकों से अंग्रेजी में बात कर सकता था। वह दुनिया के सभी पर्वतों, देशों और नदियों के नाम जानता था। वह नींद में इतिहास सुना सकता था। व्याकरण तो उसके लिए बाएं हाथ का खेल था। उसका चेहरा प्रतिभा की कांति से दमकता रहता था। लेकिन उसकी नाक हमेशा गीली रहती थी और बालों की वेणी बांधकर तथा उसमें फूल लगाकर कक्षा में आता था। स्वामीनाथन उसे आश्चर्य भरी नजरों से देखता था। वह उस समय बहुत खुश हुआ था जब उसने मणि का समर्थन प्राप्त किया था और शंकर को अपनी मंडली में शामिल किया था। मणि उसे अपने ढंग से पसंद करता था और जब कभी वह अपना प्यार जताना चाहता वह शंकर की पीठ पर अपना भारी मुक्का दे मारता था। फिर सिर खुजला कर पूछता था, ‘‘अरे गधे, तुम्हारी इस दुबली-पतली काया में इतना दिमाग कहां से आया, क्या तुम इसमें से कुछ दूसरों को नहीं दे सकते ?’’


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