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अनायास रति
अनायास रति
प्रकाशक :
श्रंगार पब्लिशर्स |
प्रकाशित वर्ष : 2020 |
पृष्ठ :50
मुखपृष्ठ :
ई-पुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 4487
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आईएसबीएन :1234567890 |
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0
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यदि रास्ते में ऐसा कुछ हो जाये जो कि तुम्हें हमेशा के लिए याद रह जाये तो...
मैंने अपनी हथेली अनुमान से उसके हृदय के नीचे कहीं पेट की त्वचा से स्पर्श की
और जहाँ तक संभव था, कोमल हाथों से उस पर फिराते हुए ऊपर गया। सबसे पहले तो पेट
की सपाट त्वचा में उभार आता स्पर्श हुआ, फिर अचानक एक अत्यंत कोमल, लगभग तरल
त्वचा से मेरा सामना हुआ, मैं एक आधी गेंद जैसी आकृति का अनुभव कर रहा था। कुच
गोल था और उसके शिखर पर एक गद्देदार घुण्डी थी। उसके कुच में सबसे अधिक आकर्षित
मुझे उस बटन जैसी आकृति ने किया। अत्यंत कोमल त्वचा के घेरे में बनी इस बटन में
एक गर्वीला भाव था। जैसे वह गर्व से तन कर खड़ी हो। मैंने उंगलियों से उसे घेर
लिया और हल्के से दबा कर देखा। मेरी सख्त उंगलियों से उसका मुकाबला होना कठिन
था। थोड़ा दबाव बनाकर मैंने उसे पूरी तरह अंदर तक दबा दिया। उसका तो पता नहीं,
लेकिन अब तक मेरी उत्तेजना लगातार बढ़ती जा रही थी। मैंने जैसे ही अपनी
उंगलियों का दबाव कम किया, वह बटन फिर से बाहर आ गया। मैं अंधेरे में उस बटन की
ललकार अनुभव कर सकता था।
अब तक मुझे लगभग निश्चित हो चुका था कि वह शायद चरमोउत्कर्ष तक का अनुभव करने
के लिए तैयार थी। लेकिन फिर भी अपनी समझ को पक्का करने के लिए मैंने अपनी हथेली
उसके कुच से हटायी और उसकी नाभि के पास रखकर त्वचा के ऊपर हल्का दवाब बनाते हुए
नीचे ले गया। जब मेरी हथेली का सामना उसकी जीन्स से हुआ तो मैंने उसका बटन या
जिप ढूँढ़ने चाहे। जीन्स नाभि के नीचे पेट की त्वचा से इस तरह चिपकी थी कि जैसे
छोड़ना ही न चाहती हो। मैंने अपनी हथेली जीन्स और पेट के बीच वाली जगह में
डालनी चाही तो मुझे अधिक सफलता नहीं मिली, दो तीन बार कोशिश करने के बाद मैंने
अंधेरे में उसकी हथेली खोज कर पकड़ी और उसे उसकी जीन्स के बटनों पर ले गया। वह
शायद मेरा इशारा समझ गई, उसने जादू की तरह तुरंत अपनी जीन्स खोल दी और मेरी
हथेली पकड़ खुली जीन्स के मुहाने पर रख दी। आप समझ सकते हैं कि अब मेरी
उत्तेजना बहुत बढ़ गई थी।
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