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श्रंगार-विलास >> अनायास रति

अनायास रति

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :50
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 4487
आईएसबीएन :1234567890

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यदि रास्ते में ऐसा कुछ हो जाये जो कि तुम्हें हमेशा के लिए याद रह जाये तो...

अब रुकना कठिन था। हम दोनों ही समझ गये कि हम अब तैयार थे। वह थोड़ा आगे खिसक आई और उसने अपने हाथों से मुझे थाम लिया। उत्तेजना इतनी अधिक हो गई थी कि अब समय नहीं बचा था। अगर मैं अपने हाथों से स्वयं को उसके शरीर में प्रवेश करवाता तो यह काम पता नहीं कितनी देर में होता। लेकिन उसे तो बिलकुल सही-सही पता था कि किसने कहाँ जाना है?

पुरुष के शरीर के इस भाग की त्वचा बहुत ही संवेदनशील होती है और यहाँ स्पर्श की शिराएँ इतनी अधिक होती है कि वे पुरुष को किसी और दुनिया में पहुँचा देती हैं। वह सधे हाथों से पकड़े हुए मुझे मुहाने तक ले गई और इस बार बिनी की संघर्ष के प्रवेश हो गया। मैं मस्ती की दुनिया में पूरा मस्त हो गया। वह अपनी जगह मस्त थी। इस स्पर्श की मस्ती को इसे करने वाला ही जानता है!

कुछ देर बाद हम दोनों थक कर रुक गये। उसने अपनी कुर्ता डाला और मुझे मेरी जीन्स दी। वह थोड़ा हवा में हुई तो मैंने पैर के पंजों को जीन्स में डाल दिया और थोड़ी ऊपर खींच ली। उसके बाद मैं भी उठकर बैठ गया। शुरुआत में हमे जिस बात का डर अब वह भी न रहा। हमने अपनी जगह बदली। मैंने मुड़कर उसे एक लम्बा चुम्बन दिया और उसके बाद इशारा किया कि मैं वापस अपनी सीट पर जाता हूँ। उसने एक क्षण के लिए मेरे हाथों को अपने हाथों में लिया, तब उसका इशारा समझ मैंने भी उसकी हथेली को अपने हाथों से गर्मजोशी से पकड़ा और एक दूसरे को अलविदा कहा।

जीन्स खींचकर वापस अपनी बर्थ पर पहुँचने के बाद आश्चर्य में पड़कर सोचने लगा कि अभी-अभी थोड़ी देर पहले हम क्या कर गुजरे हैं! घड़ी सुबह के पौने चार बजा रही थी। मैं उलझन में पड़ गया। क्या हम लोग डेढ़ घंटे से भी अधिक समय से एक दूसरे के साथ थे? मैं नीचे उतरकर फिर से बाथरूम गया। वहां से अपनी बर्थ पर लौटने पर पाचा कि मेरी बर्थ पर एक छोटा सा रुमाल पड़ा था। कुछ देर उसे देखकर मैं सोचने लगा कि यह कहाँ से आया, तब पाया कि वह अपनी बर्थ से इशारा कर रही थी। मैं उसका इशारा समझ गया और तब उसे दिखाते हुए मैंने उस रूमाल को चूमा और अपनी जेब में रख लिया। मेरी नींद गायब हो गई थी। इसलिए मैंने अपनी अंग्रेजी नावल निकाल ली और उसे पढ़ने लग गया। कुछ देर बाद उसकी सीट की ओर देखा तो पाया कि वह शायद लेट गई थी।

नावल पढ़ते-पढ़ते मुझे याद आया कि जब मैं उसकी बर्थ पर चढ़ा था तब वहाँ बर्थ के मुहाने पर शायद कोई पुस्तक रखी हुई थी। मैंने अपनी बर्थ से उतरा और उसकी बर्थ पर बीच की दीवाल पर हाथ फिराया तो वह पुस्तक मेरी उंगलियों से टकरायी। मैंने हाथ बढ़ाकर उसे उठा लिया और वापस अपनी बर्थ पर आ गया। अंधेरे में उस पुस्तक का नाम पढ़ने में नहीं आ रहा था। तब फिर से अपनी बर्थ से उतरकर उस पुस्तक को लिए हुए मैं बाथरूम के पास गया। रोशनी में पाया कि वह एक अंग्रेजी रोमांटिक नावल थी। उसके रूमाल की निशानी का उत्तर देने के लिए मैंने उसकी पुस्तक पहले पन्ने को खोला और उस पर यह लिख दिया।

भावी डॉ साहब को

मधुर स्मृतियों के साथ...

इस संदेश के साथ नाम लिखने का कोई कारण नहीं था।

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