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हकीम साहब

हरिमोहन लाल श्रीवास्तव, ब्रजभूषण गोस्वामी

प्रकाशक : सावित्री प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4489
आईएसबीएन :000000

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इसमें 6 हास्य कहानियों का वर्णन किया गया है।

Hakim Sahab-A Hindi Book by Harimohan Lal Shrivastav

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

भूमिका

‘पंचतंत्र’ और ‘हितोपदेश’ के रूप में भारत वर्ष ने संसार के कथा-साहित्य को एक बड़ी चीज दी है, और मजे की बात यह है कि इन कहानियों में एक बेतुकापन भी है कि पशु-पक्षी बिलकुल हजरते इन्सान की तरह बोलते बताये गए हैं।
‘पंचतंत्र’ में एक स्थान पर कहा गया है-
‘‘जब तक पुरुष पुरुषार्थ नहीं करता, उसे बड़ाई नहीं मिलती।’’

भाइयों के बटवारे में मार-धाड़ और अनाचार के शिकार सिन्धी, पंजाबी या बंगाली नहीं-जीवन की कठिनाइयों का सामना करते हुए उसमें अधिक रस लेकर जीवन और जगत का सदुपयोग करनेवाले पुरुषार्थी।
मन की खिन्नता भगाने के लिए हँसी एक बढ़िया ‘टॉनिक’ है पर बहुत सस्ता। लोक कथाओं में हँसी का गहरा पुट कर कहीं मिलता है, और इसका पोषण मन की मूर्खता से होता है। यह मूर्खता भी हमें समाज की मर्यादाओं से आगे बढ़ कर नये सत्य और नये तथ्य ढूंढ़ निकालने के लिए उकसाया करती है। इसलिये हम उसे पुरस्कृत होते देखकर खुश होते हैं।

सदा असफल रहनेवाला ‘शेखचिल्ली’ भी एक रूप है, जो हमारे मन के भीतर गहरा पैठा हुआ है। हम में से प्रत्येक एक शेखचिल्ली है। कारण कि हमारी इच्छाएँ अधिकतर प्यासी बनी रहती हैं। यत्न तो हमने अपनी समझ में भरपूर किया, परन्तु असफल रहे, क्योंकि हम अपने जन्म को न बदल सके- दोष दें, तो किसे दें। ‘शेखचिल्ली’ विकास के मार्ग में एक बड़ा पथ-प्रदर्शक है। वह ऊँचा उठना चाहता है, पर व्यावहारिकता उसे नीचे ढकेल देती है। हम उस पर हँसते हैं, फिर भी वह हमें प्यारा है- उसके अन्दर हमारा कल्पना रूप जो समाया हुआ है !

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