मनोरंजक कथाएँ >> सबक सबकउषा यादव
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इसमें एक बाल कहानी का वर्णन किया गया है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
सबक
कितने शौक से उस कुत्ते के पिल्ले को घर लाया था आशु। बड़े उत्साह से नाम
रखा था-जैकी।
झबरे बालों वाला जैकी उसे प्रिय भी बहुत था। एकदम कंचे जैसी चमकदार, गोल-गोल आँखों से जब उसकी ओर देखता, आशु का मन खुशी से झूम उठता। सुबह स्कूल जाते वक्त मम्मी के साथ-साथ उछलता-कूदता जैकी भी उसे दरवाजे तक छोड़ने आता था। दोपहर में जब आशु स्कूल से लौटता, जैकी पिछले दो पाँवों पर खड़ा होकर उसकी टाँगों से लिपट जाता। ऐसे स्वर में भूँकता, जैसे शिकायत कर रहा हो, ‘‘कहाँ चले गए थे तुम मुझे छोड़कर ?’’
जब तक आशु पीठ पर प्यार से हाथ न फेर ले, जैकी महाशय पीछा छोड़ने को तैयार न होते।
मम्मी हँसकर कहती सारा समय यह तुम्हारी राह देखता रहता है। दरवाजे पर जरा-सा खटका होता नहीं है कि चौंककर कान खड़े कर लेता है। कुछ भी हो, आखिर है तो तुम्हारा ही दोस्त !’’
सचमुच जैकी आशु का प्यारा दोस्त था, जब नन्हा-सा महीने-भर का पिल्ला था, तभी उसे दादी माँ की अनिच्छा के बावजूद घर लाया था आशु। देवेश अंकल की कुतिया के चार पिल्लों में यही सबसे ज्यादा तेज-तर्रार और तन्दुरुस्त था सो इसे एक नजर देखते ही आशु का जी ललचा उठा था। झिझकते हुए बोला था वह ‘‘अंकल, प्लीज, यह पपी आप मुझे दे सकेंगे ?’’
‘‘क्यों नहीं बेटे।’’ अंकल हँस दिए थे, ‘‘शौक से ले ले जाओ इसे। पर पालने में मेहनत बहुत करनी पड़ेगी । इसके लिए तैयार हो न ?’’
झबरे बालों वाला जैकी उसे प्रिय भी बहुत था। एकदम कंचे जैसी चमकदार, गोल-गोल आँखों से जब उसकी ओर देखता, आशु का मन खुशी से झूम उठता। सुबह स्कूल जाते वक्त मम्मी के साथ-साथ उछलता-कूदता जैकी भी उसे दरवाजे तक छोड़ने आता था। दोपहर में जब आशु स्कूल से लौटता, जैकी पिछले दो पाँवों पर खड़ा होकर उसकी टाँगों से लिपट जाता। ऐसे स्वर में भूँकता, जैसे शिकायत कर रहा हो, ‘‘कहाँ चले गए थे तुम मुझे छोड़कर ?’’
जब तक आशु पीठ पर प्यार से हाथ न फेर ले, जैकी महाशय पीछा छोड़ने को तैयार न होते।
मम्मी हँसकर कहती सारा समय यह तुम्हारी राह देखता रहता है। दरवाजे पर जरा-सा खटका होता नहीं है कि चौंककर कान खड़े कर लेता है। कुछ भी हो, आखिर है तो तुम्हारा ही दोस्त !’’
सचमुच जैकी आशु का प्यारा दोस्त था, जब नन्हा-सा महीने-भर का पिल्ला था, तभी उसे दादी माँ की अनिच्छा के बावजूद घर लाया था आशु। देवेश अंकल की कुतिया के चार पिल्लों में यही सबसे ज्यादा तेज-तर्रार और तन्दुरुस्त था सो इसे एक नजर देखते ही आशु का जी ललचा उठा था। झिझकते हुए बोला था वह ‘‘अंकल, प्लीज, यह पपी आप मुझे दे सकेंगे ?’’
‘‘क्यों नहीं बेटे।’’ अंकल हँस दिए थे, ‘‘शौक से ले ले जाओ इसे। पर पालने में मेहनत बहुत करनी पड़ेगी । इसके लिए तैयार हो न ?’’
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