नेहरू बाल पुस्तकालय >> मोर की पूंछ पर आंखें मोर की पूंछ पर आंखेंवायु नायडू
|
10 पाठकों को प्रिय 385 पाठक हैं |
राजस्थानी बाल साहित्य पर आधारित बच्चों के मनोरंजन की पुस्तक....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
मोर की पूंछ पर आंखें
एक बार जंगल के सारे जानवर अपना नेता चुनने के लिए इकट्ठा हुए। वहां
सियार, जंगली सूअर और सबसे ऊँचे कद के ऊंट जैसे मंत्री भी थे। लेकिन दूसरे
सभी जानवर खरगोश, हिरण, सांप, भालू और बंदर वगैरा चाहते थे कि उनका नेता
ऐसा होना चाहिए जो सबको साथ लेकर चल सके।
इतने में हथिनी चिंघाड़ी और सभी जानवर भागकर उस तालाब के पास पहुंच गए जहां वह खड़ी थी। उनका स्वागत पानी के फव्वारे से हुआ।
‘‘तुम हमारी नेता बनो,’’ उन्होंने हथिनी से कहा।
‘‘अरे नहीं !’’ उसने कहा। ‘‘मैं तो शाकाहरी हूँ। तुम्हें ऐसा नेता चाहिए जो दुश्मनों से लड़ सके।’’
तभी शेर दहाड़ा ! सारे जानवरों में कंपकंपी की लहर दौड़ गई। लेकिन जब वे उसके पास गए तो उसकी बदबूदार सांस से वे ठिठक गए। नहीं, शेर से बात नहीं बनेगी। उन्हें ऐसे नेता की जरूरत थी, जिसकी गंध अच्छी हो। वे वहां से भाग लिए। अब उन्हें यह चिन्ता सता रही थी कि शायद उन्हें कोई भी योग्य नेता नहीं मिलेगा।
जानवर जंगल के उस हिस्से में आए जहां पर एक बूढ़ा बरगद सब कुछ देखता था और ढेर सारी कहानियां सुनाता था। वहां जंगल की धरती पर, सूरज की किरणों से सुन्दर आकृतियां बनी हुई थीं।
मोर बरगद के पीछे से ठुमक कर आया। वह संसार का पहला मोर था। उसका शानदार बैंगनी रंग था और चमकते हुए रंग के पंखों वाली पूंछ पर कोई निशान नहीं था। उसने अपनी पूंछ के लंबे पंख फैला कर एक बड़ा घेरा बना लिया। वह एकदम राजा की तरह दिखता था।
इतने में हथिनी चिंघाड़ी और सभी जानवर भागकर उस तालाब के पास पहुंच गए जहां वह खड़ी थी। उनका स्वागत पानी के फव्वारे से हुआ।
‘‘तुम हमारी नेता बनो,’’ उन्होंने हथिनी से कहा।
‘‘अरे नहीं !’’ उसने कहा। ‘‘मैं तो शाकाहरी हूँ। तुम्हें ऐसा नेता चाहिए जो दुश्मनों से लड़ सके।’’
तभी शेर दहाड़ा ! सारे जानवरों में कंपकंपी की लहर दौड़ गई। लेकिन जब वे उसके पास गए तो उसकी बदबूदार सांस से वे ठिठक गए। नहीं, शेर से बात नहीं बनेगी। उन्हें ऐसे नेता की जरूरत थी, जिसकी गंध अच्छी हो। वे वहां से भाग लिए। अब उन्हें यह चिन्ता सता रही थी कि शायद उन्हें कोई भी योग्य नेता नहीं मिलेगा।
जानवर जंगल के उस हिस्से में आए जहां पर एक बूढ़ा बरगद सब कुछ देखता था और ढेर सारी कहानियां सुनाता था। वहां जंगल की धरती पर, सूरज की किरणों से सुन्दर आकृतियां बनी हुई थीं।
मोर बरगद के पीछे से ठुमक कर आया। वह संसार का पहला मोर था। उसका शानदार बैंगनी रंग था और चमकते हुए रंग के पंखों वाली पूंछ पर कोई निशान नहीं था। उसने अपनी पूंछ के लंबे पंख फैला कर एक बड़ा घेरा बना लिया। वह एकदम राजा की तरह दिखता था।
|
लोगों की राय
No reviews for this book