नेहरू बाल पुस्तकालय >> स्वराज्य की कहानी 1 स्वराज्य की कहानी 1शत्रुघ्न प्रसाद
|
5 पाठकों को प्रिय 194 पाठक हैं |
यह कहानी तब है कि जब भारत पर अंग्रेजों का राज्य था। एक दिन वे इस देश में व्यापार करने आये थे और बन बैठे शासक।...
Swaraj Ki Kahani A Hindi Book by Vishnu Prabhakar
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
स्वराज की कहानी
भाग-1
यह कहानी तब की है जब भारत पर अंग्रेजों का राज्य था। एक दिन वे इस देश में व्यापार करने आए थे और बन बैठे शासक। करीब दो सौ वर्षों तक उन्होंने राज्य किया। इस दौरान 1947 में स्वतन्त्र होने तक, कई तरीकों से भारत ने मुक्ति पाने की कोशिश की।
सन 1757 में, प्लासी के मैदान में, बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को अंग्रेजों ने हराया था। इस लड़ाई के महत्वपूर्ण परिणाम हुए। अंग्रेज अन्य राजाओं और नवाबों के राज्यों पर भी कब्जा करते रहे और धीरे-धीरे एक दिन सारे देश पर उनका शासन हो गया। शुरू-शुरू में अंग्रेज दिल्ली के मुगल बादशाहों के दरबार में साधारण दरबारियों की तरह से आते थे। उन्हें खिराज देते थे
। लेकिन धीरे-धीरे उनका रवैया बदलने लगा। बादशाह शाह आलम के जमाने में लार्ड वेलेज़ली कम्पनी का गवर्नर था। उसने एक दिन बादशाह के दरबार में कुछ तज़वीज़ें भेजीं। वज़ीर ने डरते-डरते बादशाह से कहा, ‘‘जहांपनाह ! कम्पनी के गवर्नर लार्ड बेलेज़ली ने कुछ तज़वीज़ें भेजी हैं ?
बादशाह ने कहा, कैसी तजवीजें है ? हम सुनना चाहते हैं।’’
वज़ीर घबरा गया । यकायक पढ नहीं सका। बादशाह बोले, ‘‘क्यों क्या बात है पढते क्यों नहीं ?’’
वज़ीर ने हिम्मत की और कहा, ‘‘जहांपनाह गुस्ताखी माफ हो, गवर्नर वेलेदज़ली ने लिखा है कि वे जहां- पनाह और शाही दरवार को मुंगेर के किले में रहने की तज़वीज करते हैं।’’
यह सुनकर बादशाह शाह आलम क्रोध से कांप उठा। बोला, ‘‘क्या कहा ? हम दिल्ली में नहीं रहेंगे, मुंगेर में रहेंगे ? गवर्नर हमें दिल्ली से हटाना चाहता है ? मुगलिया सल्तनत को दारउलखिलाफे (राजधानी) से से उठाना चाहता है ? वह हिन्दुस्तानी हुकूतम पर कब्जा करना चाहता है ?
जो दिल्ली पर हुकूमत करता है, वह हिन्दुस्तान पर हुकूमत करता है। हम बूढ़े है तो क्या ? हमारी रगों में तैमूरी खून भरा हुआ है। हम दिल्ली से बाहर नहीं जाएँगे यह हिन्दुस्तान के बादशाह की बेइज्जती है। इन तजवीजों को फाड़कर फेंक दो।
सन 1757 में, प्लासी के मैदान में, बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को अंग्रेजों ने हराया था। इस लड़ाई के महत्वपूर्ण परिणाम हुए। अंग्रेज अन्य राजाओं और नवाबों के राज्यों पर भी कब्जा करते रहे और धीरे-धीरे एक दिन सारे देश पर उनका शासन हो गया। शुरू-शुरू में अंग्रेज दिल्ली के मुगल बादशाहों के दरबार में साधारण दरबारियों की तरह से आते थे। उन्हें खिराज देते थे
। लेकिन धीरे-धीरे उनका रवैया बदलने लगा। बादशाह शाह आलम के जमाने में लार्ड वेलेज़ली कम्पनी का गवर्नर था। उसने एक दिन बादशाह के दरबार में कुछ तज़वीज़ें भेजीं। वज़ीर ने डरते-डरते बादशाह से कहा, ‘‘जहांपनाह ! कम्पनी के गवर्नर लार्ड बेलेज़ली ने कुछ तज़वीज़ें भेजी हैं ?
बादशाह ने कहा, कैसी तजवीजें है ? हम सुनना चाहते हैं।’’
वज़ीर घबरा गया । यकायक पढ नहीं सका। बादशाह बोले, ‘‘क्यों क्या बात है पढते क्यों नहीं ?’’
वज़ीर ने हिम्मत की और कहा, ‘‘जहांपनाह गुस्ताखी माफ हो, गवर्नर वेलेदज़ली ने लिखा है कि वे जहां- पनाह और शाही दरवार को मुंगेर के किले में रहने की तज़वीज करते हैं।’’
यह सुनकर बादशाह शाह आलम क्रोध से कांप उठा। बोला, ‘‘क्या कहा ? हम दिल्ली में नहीं रहेंगे, मुंगेर में रहेंगे ? गवर्नर हमें दिल्ली से हटाना चाहता है ? मुगलिया सल्तनत को दारउलखिलाफे (राजधानी) से से उठाना चाहता है ? वह हिन्दुस्तानी हुकूतम पर कब्जा करना चाहता है ?
जो दिल्ली पर हुकूमत करता है, वह हिन्दुस्तान पर हुकूमत करता है। हम बूढ़े है तो क्या ? हमारी रगों में तैमूरी खून भरा हुआ है। हम दिल्ली से बाहर नहीं जाएँगे यह हिन्दुस्तान के बादशाह की बेइज्जती है। इन तजवीजों को फाड़कर फेंक दो।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book