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तेनालीरामन की कहानियाँ

सी. एल. एल. जयाप्रदा

प्रकाशक : सी.बी.टी. प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :72
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 462
आईएसबीएन :81-7011-951-0

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तेनालीरमन की कहानियाँ आज भी लोग बड़े चाव से कहते-सुनते हैं।

Tenaliraman ki Kahaniyan - A hindi Book by - C. L. L. Jayaprada तेनालीरामन की कहानियाँ - सी. एल. एल. जयाप्रदा

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

तेनालीरामन सोलहवीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य के अष्ट दिग्गजों में से एक थे। वह कवि थे तथा अपने ज्ञान, हास्य-विनोद और तुरन्त बुद्धि के लिए प्रसिद्ध थे। कृष्णदेव राय के दरबार में उन्हें अक्सर ही अन्य दरबारियों की जलन से पैदा की गयी कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता था। तेनालीरमन हर बार ही अपनी सूझबूझ से इन परिस्थितियों से बखूबी बच निकलते थे। उन्हें कई बार राजा को भी मुसीबतों से बचाया और बड़े-बड़े घमण्डी विद्वानों और कवियों का मान मर्दन किया। तेनालीरमन की कहानियाँ आज भी लोग बड़े चाव से कहते-सुनते हैं।

जन्म और बचपन

तेनालीरामकृष्ण जो तेनालीरामन के नाम से विख्यात है, सोलहवीं शताब्दी में हुये थे। वह विजय नगर साम्राज्य के राजा कृष्णदेव राय के एक दरबारी कवि थे। गुर्लापडु गांव में जन्मे तेनालीरामन अपने माता-पिता की इकलौती सन्तान थे। तेनालीरामन जब बहुत छोटे थे तब उनके पिता की मृत्यु हो गयी। उनके मामा अपनी बहन और भांजे को तेनाली ले गये। तेनाली में राम लिंगेश्वर देव का विशाल मंदिर था। मामा ने अपने भांजे को देवता का नाम दे दिया।....

मौत के गड्ढे से बाहर

नगर में चूहे बहुत थे, इसीलिए राजा कृष्णदेव राय ने जनता से बिल्लियाँ पालने को कहा था। उन्होंने सबको एक-एक बिल्ली दी और उसका पालन-पोषण करने के लिए एक-एक दुधारू गाय और कुछ धन खजाने से दिया गया।

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