बाल एवं युवा साहित्य >> एक सौ एक बाल कहानियाँ एक सौ एक बाल कहानियाँरामगोपाल वर्मा
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बच्चों के लिए प्रस्तुत हैं एक से एक श्रेष्ठ बाल कहानियाँ
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
बालकों के लिए साहित्य रचने का उद्देश्य है, बालकों में सुरुचि और
सुप्रवृत्ति पैदा करना है। किसी भी व्यक्तित्व का निर्माण बाल्यकाल में
एकत्रित की गई सुरुचियों एवं सुप्रवृत्तियों पर निर्भर है। बाल्यकाल में
सुरुचि के स्थान पर कुरुचि और सुप्रवृत्ति के स्थान पर कुप्रवृत्ति यदि
जन्म ले ले तो उस बालक का व्यक्तित्व सदैव कुमार्ग की ओर अग्रसर रहेगा।
दूसरी ओर यदि बाल्यकाल से ही उसमें सुरुचियाँ और सुप्रवृत्तियाँ जन्म ले
लेती हैं तो बड़ा होकर वह एक उच्च व्यक्तित्व निर्मित करने में सफल होगा।
बालक में रुचियाँ और कुरुचियाँ उन संस्कारों से जुड़ी हैं जो उसके रक्त में घुले-मिले हैं। फिर भी इन रुचियों और प्रवृत्तियों में परिवर्तन सम्भव है। इस परिवर्तन का सम्भावना उस परिवेश से है जिसमें बालक का लालन-पालन होता है। आज के परिवेश में फिल्में हैं, दूरदर्शन के रंगारंग कार्यक्रम हैं, मंच हैं, विद्यालय हैं, पाठ्य पुस्तकों में निहित ज्ञानवर्द्धक पाठ हैं, अध्यापक व माता-पिता की आदर्शात्मक बातें हैं, मित्रों के आकर्षण, संस्कारों का दबाव है, भूख-गरीबी जैसे अनेक भाव हैं, गाँवों की प्रकृति, शहरों की भीड़ है, खेलों का उत्कृष्ट रूप है और इन सबसे घिरा बालक का नन्हा से अबोध मन है। इन सब में कौन-सा रूप उसे कब भाएगा और मन पर असर छोड़ता हुआ उसकी प्रवृत्ति में जुड़ जाएगा, निश्चित कर पाना कठिन है। अब प्रश्न है इन सबके मध्य बाल-मन को सही दिशा देने के लिए हमें उसके सामने कौन-सा रूप प्रस्तुत करना है जो उसे एक उच्च व्यक्तित्व प्रदान कर सके। यही लेखक का समाज के और बाल-साहित्य के प्रति एक महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व है। निःसन्देह आज के साहित्यकार के सामने ऐसे बाल साहित्य की रचना एक चुनौती भरा काम है जो बालकों को परिवेश में फैले चमत्कारात्मक जाल से छुड़ाकर रोचकता के माध्यम से जीवन मूल्यों से जोड़ सके।
इस उत्तर दायित्वों को स्वीकारते हुए इस पुस्तक में निहित कहानियों की रचना लेखक द्वारा किया गया एक लघु प्रयास है। कहानियों के विषय मूलतः भारतीय परिवेश से ही एकत्रित किये गये हैं। भारतीय इतिहास, भारतीय संस्कृति, पशु-पक्षियों के व्यवहारानुसार घटनाओं का आदर्शात्मक रूप, मानवीय संबंध, पौराणिक एवं पंचतंत्र के कथानक इन कहानियों के विषय रहे हैं।
बालक में रुचियाँ और कुरुचियाँ उन संस्कारों से जुड़ी हैं जो उसके रक्त में घुले-मिले हैं। फिर भी इन रुचियों और प्रवृत्तियों में परिवर्तन सम्भव है। इस परिवर्तन का सम्भावना उस परिवेश से है जिसमें बालक का लालन-पालन होता है। आज के परिवेश में फिल्में हैं, दूरदर्शन के रंगारंग कार्यक्रम हैं, मंच हैं, विद्यालय हैं, पाठ्य पुस्तकों में निहित ज्ञानवर्द्धक पाठ हैं, अध्यापक व माता-पिता की आदर्शात्मक बातें हैं, मित्रों के आकर्षण, संस्कारों का दबाव है, भूख-गरीबी जैसे अनेक भाव हैं, गाँवों की प्रकृति, शहरों की भीड़ है, खेलों का उत्कृष्ट रूप है और इन सबसे घिरा बालक का नन्हा से अबोध मन है। इन सब में कौन-सा रूप उसे कब भाएगा और मन पर असर छोड़ता हुआ उसकी प्रवृत्ति में जुड़ जाएगा, निश्चित कर पाना कठिन है। अब प्रश्न है इन सबके मध्य बाल-मन को सही दिशा देने के लिए हमें उसके सामने कौन-सा रूप प्रस्तुत करना है जो उसे एक उच्च व्यक्तित्व प्रदान कर सके। यही लेखक का समाज के और बाल-साहित्य के प्रति एक महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व है। निःसन्देह आज के साहित्यकार के सामने ऐसे बाल साहित्य की रचना एक चुनौती भरा काम है जो बालकों को परिवेश में फैले चमत्कारात्मक जाल से छुड़ाकर रोचकता के माध्यम से जीवन मूल्यों से जोड़ सके।
इस उत्तर दायित्वों को स्वीकारते हुए इस पुस्तक में निहित कहानियों की रचना लेखक द्वारा किया गया एक लघु प्रयास है। कहानियों के विषय मूलतः भारतीय परिवेश से ही एकत्रित किये गये हैं। भारतीय इतिहास, भारतीय संस्कृति, पशु-पक्षियों के व्यवहारानुसार घटनाओं का आदर्शात्मक रूप, मानवीय संबंध, पौराणिक एवं पंचतंत्र के कथानक इन कहानियों के विषय रहे हैं।
1
तितली और फूल
एक तितली थी। वह रोज़ सुबह-सुबह उठ जाती थी। उसके घर के पास बग़ीचा था। वह
उड़ती-उड़ती बगीचे में चली जाती। बग़ीचे में फूल थे। तितली को फूल अच्छे
लगते थे। वह एक फूल पर बैठती, वह दूसरे फूल पर बैठती, वह अनेक फूलों पर
बैठती।
बग़ीचे में एक छोटा फूल भी था। उसने तितली से पूछा, ‘‘तितली, तुम फूलों पर क्यों बैठती हो ?’’ तितली ने कहा, ‘फूल सुन्दर होते हैं। फूल मुझे मीठा रस देते हैं। मैं रस पी लेती हूँ। रस पी कर मैं भी सुन्दर बन जाती हूँ। तुम मुझे मीठा रस पिलाओगे ?’ छोटा फूल बोला ‘अभी मैं छोटा हूँ। कल बड़ा हो जाऊँगा। मैं कल तुम्हें रस दूँगा। तुम्हें और सुन्दर बनाऊँगा। तुम इन सुन्दर पंखों का क्या करती हो ?’
तितली ने कहा, ‘सुन्दर पंखों से उड़कर मैं बच्चों के पास जाती हूँ। बच्चों को मेरे सुन्दर पंख अच्छे लगते हैं। वे मुझे पकड़ते हैं। मैं भागती हूँ। दूर से ही उन्हें सुन्दर पंख दिखाती हूँ।’
फूल ने कहा, ‘वे बच्चे मेरे जैसे छोटे हैं ?’ तितली ने कहा, ‘हाँ। अच्छा अब मैं कल आऊँगी। कल तुम बड़े हो जाओगे न।’
अगले दिन तितली बग़ीचे में फिर आई। फूल ने तितली को रस दिया। फूल ने कहा, ‘तितली, तुम सचमुच सुन्दर हो। तुम इनसे भी सुन्दर हो। तुम नन्हें बच्चों का मन बहलाती हो। तुम बच्चों के मन को सुन्दर बनाती हो। मैं भी बच्चों के लिए खिलूँगा। उन्हें अपनी महक भी दूंगा। मुझे देखकर वे हसेंगे। पर मैं उड़ नहीं सकता।’ फूल उदास हो गया। तितली ने उसकी उदासी दूर की। वह बोली, ‘उदास मत हो, फूल भैया। मेरे सुन्दर पंख और तुम्हारी महक दूसरों के लिए ही है। तुम्हें कोई तोड़ भी ले, तुम तब भी मुसकुराते रहना। अपनी महक बिखेरते रहना। यही तो जीवन है।’ तितली यह कह कर उड़ गई। फूल की उदासी दूर हो गई।
अगले दिन तितली फूल के पास पहुँची। फूल मुरझा गया था। वह मर रहा था। फूल ने तितली को देखकर कहा, ‘उदास मत हो तितली बहन, मेरा जीवन छोटा होता है। अब मैं जा रहा हूँ।’ तितली की आँखों में आँसू आ गए। तितली ने रोकर कहा, ‘तुम्हारा जीवन छोटा कहाँ है। तुम्हें तो रहना चाहिए। तुम भी दूसरों को महक देते हो।’
फूल भी तितली को देखकर रो पड़ा। वह बोला, ‘तितली बहन, भगवान ने हमारा जीवन ने दो दिन का ही बनाया है। अच्छा तितली बहन, मेरा सांस रुक रहा है। मैं मर रहा हूँ।’
तितली ने फूल को सहारा दिया, पर फूल न बच सका। तितली और ज़ोर से रोने लगी। तितली भगवान से नाराज़ हो गई। वह रोती-रोती भगवान के मन्दिर में गई। उसने रोते-रोते भगवान से पूछा, ‘हे भगवान, बताओ तुमने सुन्दर फूल को क्यों मारा ? बोलो, भगवान, बोलो।’
भगवान नहीं बोले। तितली उदास हो गई। वह सोचने लगी, ‘भले ही जीवन छोटा हो, पर सुन्दर होना चाहिए।’
बग़ीचे में एक छोटा फूल भी था। उसने तितली से पूछा, ‘‘तितली, तुम फूलों पर क्यों बैठती हो ?’’ तितली ने कहा, ‘फूल सुन्दर होते हैं। फूल मुझे मीठा रस देते हैं। मैं रस पी लेती हूँ। रस पी कर मैं भी सुन्दर बन जाती हूँ। तुम मुझे मीठा रस पिलाओगे ?’ छोटा फूल बोला ‘अभी मैं छोटा हूँ। कल बड़ा हो जाऊँगा। मैं कल तुम्हें रस दूँगा। तुम्हें और सुन्दर बनाऊँगा। तुम इन सुन्दर पंखों का क्या करती हो ?’
तितली ने कहा, ‘सुन्दर पंखों से उड़कर मैं बच्चों के पास जाती हूँ। बच्चों को मेरे सुन्दर पंख अच्छे लगते हैं। वे मुझे पकड़ते हैं। मैं भागती हूँ। दूर से ही उन्हें सुन्दर पंख दिखाती हूँ।’
फूल ने कहा, ‘वे बच्चे मेरे जैसे छोटे हैं ?’ तितली ने कहा, ‘हाँ। अच्छा अब मैं कल आऊँगी। कल तुम बड़े हो जाओगे न।’
अगले दिन तितली बग़ीचे में फिर आई। फूल ने तितली को रस दिया। फूल ने कहा, ‘तितली, तुम सचमुच सुन्दर हो। तुम इनसे भी सुन्दर हो। तुम नन्हें बच्चों का मन बहलाती हो। तुम बच्चों के मन को सुन्दर बनाती हो। मैं भी बच्चों के लिए खिलूँगा। उन्हें अपनी महक भी दूंगा। मुझे देखकर वे हसेंगे। पर मैं उड़ नहीं सकता।’ फूल उदास हो गया। तितली ने उसकी उदासी दूर की। वह बोली, ‘उदास मत हो, फूल भैया। मेरे सुन्दर पंख और तुम्हारी महक दूसरों के लिए ही है। तुम्हें कोई तोड़ भी ले, तुम तब भी मुसकुराते रहना। अपनी महक बिखेरते रहना। यही तो जीवन है।’ तितली यह कह कर उड़ गई। फूल की उदासी दूर हो गई।
अगले दिन तितली फूल के पास पहुँची। फूल मुरझा गया था। वह मर रहा था। फूल ने तितली को देखकर कहा, ‘उदास मत हो तितली बहन, मेरा जीवन छोटा होता है। अब मैं जा रहा हूँ।’ तितली की आँखों में आँसू आ गए। तितली ने रोकर कहा, ‘तुम्हारा जीवन छोटा कहाँ है। तुम्हें तो रहना चाहिए। तुम भी दूसरों को महक देते हो।’
फूल भी तितली को देखकर रो पड़ा। वह बोला, ‘तितली बहन, भगवान ने हमारा जीवन ने दो दिन का ही बनाया है। अच्छा तितली बहन, मेरा सांस रुक रहा है। मैं मर रहा हूँ।’
तितली ने फूल को सहारा दिया, पर फूल न बच सका। तितली और ज़ोर से रोने लगी। तितली भगवान से नाराज़ हो गई। वह रोती-रोती भगवान के मन्दिर में गई। उसने रोते-रोते भगवान से पूछा, ‘हे भगवान, बताओ तुमने सुन्दर फूल को क्यों मारा ? बोलो, भगवान, बोलो।’
भगवान नहीं बोले। तितली उदास हो गई। वह सोचने लगी, ‘भले ही जीवन छोटा हो, पर सुन्दर होना चाहिए।’
2
प्यारा मुर्गा
मुर्ग़े ने बांग दी—कुकडूकूँ...... कुकडूकूँ.....। एकता की आँख
खुल गई। उसने खिड़की की ओर देखा। वहाँ एक मुर्ग़ा बैठा था। उसने मुर्गे से
कहा, ‘तुमने बहुत अच्छा किया, मुर्ग़े भाई। मुझे जगा दिया। अब
मैं समय पर स्कूल पहुंच जाऊँगी। कल भी आ जाना भैया। आ जाओगे न ! मेरी माँ
नहीं है। मुझे सुबह कोई नहीं जगाता। तुम रोज़ आ जाया करो। मुर्ग़ा
कुकडूकूँ....बोलकर उड़ गया।
अगले दिन भी मुर्ग़ा आया। एकता ने उठ कर एक बादाम निकाला। उसने मुर्ग़े को दिया। मुर्ग़ा बादाम खाकर उड़ गया। एकता तैयार होकर स्कूल चली गई।
अगले दिन छुट्टी थी। मुर्ग़ा आया। मुर्ग़े ने बांग दी। एकता उठ गई। वह मुर्गे को अपने कमरे में ले गई। एकता ने मुर्गे को सारे बादाम दे दिए। एकता ने एक भी बादाम नहीं खाया। उसे मुर्ग़ा बहुत अच्छा लग रहा था। वह उसके पंखों को छूती। उसकी चोंच को हाथ लगाती। उसने मुर्ग़े को गोद में उठा लिया। उसने मुर्ग़े को प्यार किया। दिन भर वह मुर्ग़े के साथ खेलती रही। मुर्ग़ा भी एकता को पसन्द करने लगा। उस दिन वह अपने घर नहीं गया।
एक दिन मुर्ग़ा नहीं आया। वह छुट्टी का दिन था। एकता उठी। उसने खिड़की की ओर देखा वहाँ मुर्ग़ा नहीं था। वह खिड़की की ओर बार-बार देखती। मुर्ग़ा नहीं आया। एकता की आँखों में आँसू आ गए। मुर्ग़ा क्यों नहीं आया। वह छत पर चढ़ गई। उसने चारों ओर देखा। मुर्ग़ा दिखाई नहीं दिया। वह रोने लगी। उसके हाथ में बादाम थे। वह किसको खिलाए ये बादाम ! पूरा दिन वह रोती रही।
शाम को वह मुर्ग़े को ढूंढ़ने घर से निकली। वह वहाँ गई जहाँ मुर्ग़ा रहता था। वहाँ मुर्ग़ा नहीं था। वहाँ मुर्गे के पंख पड़े थे। उसने पंखों को पहचान लिया। उसने पंखों को हाथ से उठा लिया। वह रोने लगी। उसके मुर्ग़े को किसी ने मार दिया।
अब कौन उसे जगाएगा ! वह बादाम किसे खिलाएगी !
अगले दिन भी मुर्ग़ा आया। एकता ने उठ कर एक बादाम निकाला। उसने मुर्ग़े को दिया। मुर्ग़ा बादाम खाकर उड़ गया। एकता तैयार होकर स्कूल चली गई।
अगले दिन छुट्टी थी। मुर्ग़ा आया। मुर्ग़े ने बांग दी। एकता उठ गई। वह मुर्गे को अपने कमरे में ले गई। एकता ने मुर्गे को सारे बादाम दे दिए। एकता ने एक भी बादाम नहीं खाया। उसे मुर्ग़ा बहुत अच्छा लग रहा था। वह उसके पंखों को छूती। उसकी चोंच को हाथ लगाती। उसने मुर्ग़े को गोद में उठा लिया। उसने मुर्ग़े को प्यार किया। दिन भर वह मुर्ग़े के साथ खेलती रही। मुर्ग़ा भी एकता को पसन्द करने लगा। उस दिन वह अपने घर नहीं गया।
एक दिन मुर्ग़ा नहीं आया। वह छुट्टी का दिन था। एकता उठी। उसने खिड़की की ओर देखा वहाँ मुर्ग़ा नहीं था। वह खिड़की की ओर बार-बार देखती। मुर्ग़ा नहीं आया। एकता की आँखों में आँसू आ गए। मुर्ग़ा क्यों नहीं आया। वह छत पर चढ़ गई। उसने चारों ओर देखा। मुर्ग़ा दिखाई नहीं दिया। वह रोने लगी। उसके हाथ में बादाम थे। वह किसको खिलाए ये बादाम ! पूरा दिन वह रोती रही।
शाम को वह मुर्ग़े को ढूंढ़ने घर से निकली। वह वहाँ गई जहाँ मुर्ग़ा रहता था। वहाँ मुर्ग़ा नहीं था। वहाँ मुर्गे के पंख पड़े थे। उसने पंखों को पहचान लिया। उसने पंखों को हाथ से उठा लिया। वह रोने लगी। उसके मुर्ग़े को किसी ने मार दिया।
अब कौन उसे जगाएगा ! वह बादाम किसे खिलाएगी !
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