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विश्व की गौरवशाली नारियां

लालबहादुर सिंह चौहान

प्रकाशक : आत्माराम एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4634
आईएसबीएन :81-7043-405-X

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विश्व की गौरवशाली नारियां नामक इस पुस्तक में कतिपय महानतम् महिलाओं के जीवन पर प्रकाश डाला गया है जिन्होंने विश्व इतिहास में स्मृत जीवन-मूल्यों की पुनः प्रतिष्ठा की.....

Vishva ki gauravshali nariyan

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में नारियाँ अपनी अग्रणी भूमिका अदा कर अपने व्यक्तित्व तथा प्रतिभा का परिचय दे रही हैं। वे आज वकील बैरिस्टर, न्यायाधीश, राजदूत, मजिस्ट्रेट, प्रशासनिक अधिकारी, पायलट, राज्यपाल, मंत्री, मुख्यमंत्री, कुलपति, सर्जन, फिजिशियन, इंजीनियर, छाताधारी, सेनाधिकारी तथा प्रधानमंत्री जैसे पदों को सुशोभित कर रही हैं।
‘विश्व की गौरवशाली नारियाँ’ नामक इस पुस्तक में कतिपय महानतम महिलाओं के जीवन पर प्रकाश डाला गया है। जिन्होंने विश्व इतिहास में विस्मृत जीवन-मूल्यों की पुनः प्रतिष्ठा की, राजनीति, समाजनीति और रणनीति में जिन्होंने नए कीर्तिमान स्थापित किए और जिन्होंने कुशल नेतृत्व और अपने सुकृत्यों से जगत के नारी समाज का सिर ऊँचा किया है।
आशा है भावी पीढ़ी विशेषकर महिलाएं इसे पढ़कर प्रेरणा अवश्य ग्रहण करेंगी।

प्राक्कथन

भारतीय संस्कृति एवं समाज में नारी को जितना अधिक गौरवपूर्ण स्थान दिया गया है, उतना विश्व की किसी भी अन्य संस्कृति एवं समाज में प्रदत्त नहीं किया गया। भारत में नारी को विलासिता की सामग्री नहीं, अपितु संस्कृति का उच्च आदर्श एवं दैवी शक्ति का प्रतीक माना गया है। भारतीय संस्कृति में नारी त्याग, विश्वास तथा श्रद्धा की पात्र रही है। विश्व में भारतीय संस्कृति की महानता का मूल कारण नारीत्व का उच्च तथा महान् आदर्श ही रहा है।

आज अंतर्राष्ट्रीय जगत में भी महिलाओं के गुणों का मूल्यांकन करके उनके उत्थान तथा विकास के लिए नई-नई योजनाएं आरंभ की गई हैं। आधुनिक युग में देश-विदेश की महिलाओं की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। वे हजारों वर्षा की दासता से मुक्त हुई हैं। उन्होंने पुरातन रीति-रिवाजों व अंधविश्वास के विरुद्ध विद्रोह कर दिया है। आज समाज से लगभग सभी क्षेत्रों में महिलाओं ने अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त कर लिया है। वे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी अग्रणी भूमिका अदा कर अपने व्यक्तित्व तथा प्रतिभा का परिचय दे रही हैं। वे आज वकील, बैरिस्टर, न्यायाधीश, राजदूत, मजिस्ट्रेट, प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस अधिकारी, पायलट, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, कुलपति, सर्जन, फिजीशियन, इंजीनियर, छाताधारी, सेनाधिकारी तथा प्रधानमंत्री जैसे गौरवशाली पदों को सुशोभित कर रही हैं।

‘विश्व की गौरवशाली नारियां’ नामक इस पुस्तक में मैंने कतिपय उन महानतम महिलाओं के जीवन पर प्रकाश डाला है जिन्होंने विश्व इतिहास में विस्तृत जीवन-मूल्यों की पुनः प्रतिष्ठा की; राजनीति, समाजनीति और रणनीति में जिन्होंने नए कीर्तिमान स्थापित किए और जिन्होंने कुशल नेतृत्व और अपने सुकृत्यों से जगत के नारी समाज का सिर ऊंचा किया है।
मुझे आशा व विश्वास है कि भावी पीढ़ी विशेषकर महिलाएं इसे पढ़कर प्रेरणा अवश्य ग्रहण करेंगी।

-डॉ. लालबहादुर सिंह चौहान


एलीनोर रूज़वेल्ट


श्रीमती एलीनोर रूज़वेल्ट एक सफल प्रशासक, संगठनकर्ता, महत्त्वपूर्ण निर्णय लेनेवाली तथा संकट की घड़ी में भी स्थिर व तटस्थ रहने वाली महान महिला थीं। उनका एक-एक क्षण उपयोगी, मूल्यवान और जन-कल्याण को समर्पित था। समाज-कल्याण कार्यों में महत्त्वपूर्ण भाग लेने वालों में भी उन्हें सदैव स्मरण किया जाता रहेगा। वह जन-जन की प्रेरणा बन गईं थीं।

अन्ना एलीनोर रूज़वेल्ट का जन्म 11 अक्टूबर, सन् 1884 ई. को न्यूयार्क में हुआ था। वह अमेरिका के पच्चीसवें राष्ट्रपति थिओडोर रूज़वेल्ट की भतीजी थीं और इलियट व अन्ना रूज़वेल्ट की पुत्री। अन्ना और इलियट दोनों ही समृद्ध घरानों से संबंधित थे। पिता एक कुशल खिलाड़ी के रूप में विख्यात थे और माता अपने समय की अद्वितीय सुन्दरी थीं। अन्ना एलीनोर का बचपन बड़े लाड़-प्यार से व्यतीत हुआ था। जब अन्ना एलीनोर आठ वर्ष की बालिका थीं तभी उनकी मां का अकस्मात् निधन हो गया था और जब नौ वर्ष की हुईं तो उनके पिता चल बसे। इस प्रकार अन्ना एलिनोर को आठ-नौ साल की उम्र में ही मां-बाप के प्यार से वंचित होना पड़ा। फिर अन्ना एलीनोर का पालन-पोषण उनकी नानी ने किया। उनकी बाल्यवस्था की प्रारंभिक शिक्षा अधिकांशतः घर पर ही हुई। पंद्रह वर्ष की आयु में पढ़ने इंग्लैड गईं और वहां तीन साल रहकर उन्होंने अपना अध्ययन पूर्ण किया।

अठारह वर्ष की अवस्था में एलीनोर रूज़वेल्ट न्यूयार्क वापस आईं। कुछ समय रीविंगटन स्ट्रीट सेटिलमेंट हाउस में एलीनोर रूज़वेल्ट ने अध्यापन-कार्य किया था। 17 मार्च, सन् 1905 ई. को फ्रेंकलिन और एलीनोर का विवाह हो गया। विवाह के समय यह भावी राष्ट्रपति का एक साधारण विद्यार्थी था।

जब फ्रेंकलिन रूज़वेल्ट जनवरी, सन् 1911 ई. में न्यूयार्क स्टेट के सीनेटर निर्वाचित हुए तब एलीनोर की तीन संतानें थीं, तभीं उन्हें शासन व राजनीति के संपर्क में आने का प्रथम सुवअकर मिला। सन् 1913 ई. में जब फ्रेंकलिन रूज़वेल्ट जल-सेना के असिस्टेंट सेक्रेटरी नियुक्त हुए तो आम सरकारी अधिकारियों की पत्नियों की भांति श्रीमती एलीनोर रूज़वेल्ट का मुख्य कार्य स्वागत-सत्कार का हो गया। सन् 1920 ई. में डेमोक्रेटिक पार्टी की टिकट पर फ्रेंकलिन रुज़वेल्ट जब उपराष्ट्रपति के चुनाव में खड़े हुए तो श्रीमती रुज़वेल्ट को राजनीति का प्रशिक्षण लेने का पुनः अवसर उपलब्ध हुआ। परंतु उनकी रुचि का कार्य न था। उक्त चुनाव में पराजित होने के उपरांत फ्रेंकलिन रूज़वेल्ट ने अपनी कानून की प्रैक्टिस वकालत करनी प्रारंभ कर दी तथा श्रीमती एलीनोर रूज़वेल्ट ने टाइपिंग और शार्टहैंड सीखकर ‘लीग ऑफ वूमैन वोटर्स’ के बौर्ड में नौकरी कर ली। यहीं से उनका संपर्क महिला संस्थानों में स्थापित हुआ, जो दिनों-दिन धीरे-धीरे बढ़ता चला गया। उन्होंने लीग के प्रशासन के बजाय संगठन में अधिक रुचि ली।

‘वूमैन ट्रेड यूनियन’ (Women Trade Union) और ‘स्टेट डेमोक्रेटिक पार्टी’ के वूमैन डिवीजन (Women Division) में चार वर्षों तक श्रीमती एलीनोर रूज़वेल्ट ने कार्य किया। उन्हीं दिनों नौजवानों का पार्टटाइम काम देने के लिए हाइड पार्क में ‘बाल किल फर्नीचर’ वर्क शाप तथा दुकान श्रीमती रूज़वेल्ट ने प्रारंभ की। किसी से मिलकर उन्होंने एक प्राइवेट स्कूल चलाया। जिसमें वह वाइस प्रिंसिपल थीं। श्रीमती एलीनोर रूज़वेल्ट उस स्कूल में अर्थशास्त्र व समाजशास्त्र विषयों का अध्यापन करती थीं। उन्होंने अनेक सामाजिक संस्थाओं में भी सक्रिय भाग लिया। इस प्रकार श्रीमती रूज़वेल्ट राजनीति और समाज-सेवा दोनों में साथ-साथ कर्मठता से भाग लेती थीं। सन् 1920 ई. के चुनाव में रूज़वेल्ट पराजित हो गए थे। इसके कुछ दिनों पश्चात वह पक्षाघात की बीमारी से पीड़ित हो गए। लकवा के शिकार हुए अपने पति की श्रीमती रूज़वेल्ट ने बहुत सेवा-सुश्रूषा की और वह कालांतर में स्वस्थ हो गए। सन् 1928 ई. में फ्रेंकलिन रूज़वेल्ट न्यूयार्क के गवर्नर बने और श्रीमती एलीनोर रूज़वेल्ट डेमोक्रेटिक पार्टी के वूमेन विंग की इंचार्ज बनाई गईं। इस नाते उन्होंने विंग का राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार किया। अब रूज़वेल्ट दंपत्ति एक राजनीतिक टीम थे।

4 मार्च, सन् 1933 ई. को फ्रेंकलिन रूज़वेल्ट अमेरिका के बत्तीसवें राष्ट्रपति निर्वाचित हुए और ‘फर्सट लेडी’ के रूप में श्रीमती एलीनोर रूज़वेल्ट का ‘व्हाइट हाउस’ के बारह वर्षीय जीवन का प्रारंभ हुआ। इस नई जिम्मेदारी के आ जाने से श्रीमती रूज़वेल्ट को अपने स्कूल का, पत्रिकाओं के संपादन का, संस्थाओं के कई पदों का और बहुत सारे अन्य काम भी छोड़ने पड़े। उन्हें कामर्शियल रेडियो प्रोग्राम भी बंद करने पड़े, परंतु समाज-कल्याण की संस्थाओं से उनका और अधिक संपर्क बढ़ गया।

व्हाइट हाउस में ‘फर्स्ट लेडी’ होने के नाते श्रीमती एलीनोर रूज़वेल्ट ने कई परंपराएं स्थापित कीं। प्रथम दिन ही महिला-पत्रकारों की कांफेंस बुलाकर उन्होंने सबको आश्चर्यचकित कर दिया। व्हाइट हाउस के इतिहास में यह अपने ढंग की प्रथम घटना थी जिसने श्रीमती रूज़वेल्ट को प्रथम दिवस से ही चर्चा का विषय बना दिया। एक नया कदम उन्होंने और उठाया। राष्ट्रपति फ्रेंकलिन रूज़वेल्ट को पद ग्रहण करने के बाद जन-संपर्क दौरा करना था, परंतु क्योंकि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था, इसलिए श्रीमती एलीनोर रूज़वेल्ट ने यह कार्य अपने ऊपर ले लिया और फिर दौरा करने के पश्चात् सभी स्थानों व योजनाओं के बारे में अपनी अनुभवजन्य रिपोर्ट तैयार करके राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत कर दी। अमेरिका के इतिहास में राष्ट्रपति के बिना अकेली पत्नी का दौरा करना प्रथम व अति अनोखी बात थी। इसकी खूब आलोचना जगह-जगह हुई परंतु इससे श्रीमती एलीनोर रूज़वेल्ट जनता के और सामने आ गईं।



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