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भारत की लोक कथा निधि - भाग 2

शंकर

प्रकाशक : सी.बी.टी. प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1998
पृष्ठ :105
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 466
आईएसबीएन :81-7011-098-x

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ज्ञानवर्धक एवं रोचक कहानियों का संग्रह

Bharat Ki Lok Katha Nidhi Part-2 - A hindi Book by - Shankar - भारत की लोक कथा निधि भाग-2 - शंकर

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

प्रस्तावना

हमारी मातृभूमि, जिसे हम भारत माता भी कहते हैं, एक दादी की तरह है। बहुत बूढ़ी और उतनी ही समझदार। उन्हें सैकड़ों कहानियाँ आती हैं। हमारी दादी कहती हैं कि बड़ी-बड़ी पोथियाँ सबके काम की नहीं होतीं। लेकिन उन पोथियों में जो अक्लमंदी की बातें हैं वे कहानियों की मदद से जल्दी समझ में आ जाती हैं।

ऐसी कहानियों को लोककथा कहते हैं। ये कथाएं इतनी पुरानी हैं कि कोई भी नहीं बता सकता कि उन्हें पहले-पहल किसने कहा होगा। लोक कथाएं एक कान से दूसरे कान में, एक देश से दूसरे देश में जाती रहती हैं। एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने पर इन कथाओं का रूप रंग भी बदलता जाता है। एक ही कहानी अलग-अलग जगहों में अलग-अलग ढंग से कही-सुनी जाती हैं। इस तरह लोक कथाएं हमेशा नई बनी रहती हैं।

भारत में दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा लोक कथायें हैं। इनमें से बहुत सी कथाएं एक मोटी पोथी में जमा की गई हैं। उस पोथी का नाम है, कथा-सरित्सागर। 'कथाओं की नदियों से बना हुआ सागर !
अच्छी कथायें मूल्यवान वस्तुओं की तरह होती हैं और मूल्यवान वस्तुओं को सुरक्षित जगह पर ही रखा जाता है। ऐसी सुरक्षित जगह "निधि" कहलाती है। इसलिए अच्छी-अच्छी कथाओं की पुस्तक भी एक प्रकार की निधि है।

अजगर


बहुत वर्ष पहले एक राजा की दो रानियाँ थीं।
बड़ी रानी शोभा बहुत अच्छे स्वभाव की दयावान स्त्री थी। छोटी रानी रूपा बड़ी कठोर और दुष्ट थी।
बड़ी रानी शोभा के एक पुत्री थी, नाम था देवी। रानी रूपा के भी एक बेटी थी, नाम था तारा।
रानी रूपा बड़ी चालाक और महत्वाकाँक्षी स्त्री थी। वह चाहती थी कि राज्य की सत्ता उसके हाथ में रहे। राजा भी उससे दबा हुआ था।
रानी रूपा बड़ी रानी और उसकी बेटी से नफरत करती थी। एक दिन उस ने राजा से कह दिया कि रानी शोभा और देवी को राजमहल से बाहर निकाल दिया जाये।
राजा रानी रूपा की नाराजी से डरता था। उसे लगा कि उसे वही करना पड़ेगा जो रूपा चाहती है। उस ने बड़ी रानी और उस की बेटी को राजमहल के बाहर एक छोटे से घर में रहने के लिए भेज दिया। लेकिन रानी रूपा की घृणा इससे भी नहीं हटी।
उस ने देवी को आज्ञा दी कि वह प्रतिदिन राजा की गायों को जंगल में चराने के लिए ले जाया करे।
रानी शोभा यह अच्छी तरह जानती थी कि यदि देवी गायों को चराने के लिए गई तो रानी रूपा उन्हें किसी और परेशानी में डाल देगी। इसलिए उसने अपनी लड़की से कहा कि वह रोज सुबह गायों को जंगल में चरने के लिए ले जाया करे और शाम के समय उन्हें वापिस ले आया करे।

देवी को अपनी माँ का कहना तो मानना ही था, इस लिए वह रोज़ सुबह गायों को जंगल में ले जाती। एक शाम जब वह जंगल से घर लौट रही थी तो उसे अपने पीछे एक धीमी सी आवाज़ सुनाई दी-
‘‘देवी, देवी, क्या तुम मुझसे विवाह करोगी ?’’

देवी डर गई। जितनी जल्दी हो सका उसने गायों को घर की ओर हाँका।
दूसरे दिन भी जब वह घर लौट रही थी तो उस ने वही आवाज़ पुन: सुनी। वही प्रश्न उससे फिर पूछा गया।
रात को देवी ने अपनी माँ को उस आवाज़ के बारे में कहा। माँ सारी रात इस बात पर विचार करती रही। सुबह तक उस ने निश्चय कर लिया कि क्या किया जाना चाहिए।
‘‘सुनो बेटी,’’ वह अपनी लड़की से बोली- ‘‘मैं बता रही हूँ कि यदि आज शाम के समय भी तुम्हें वही आवाज़ सुनाई दे तो तुम्हें क्या करना होगा।’’
‘‘बताइये माँ,’’ देवी ने उत्तर दिया।

‘‘तुम उस आवाज़ को उत्तर देना,’’ रानी शोभा ने कहा, ‘‘कल सुबह तुम मेरे घर आ जाओ, फिर मैं तुम से विवाह कर लूँगी।’’
‘‘लेकिन माँ,’’ देवी बोली- ‘‘हम उसे जानते तक नहीं।’’
‘‘मेरी प्यारी देवी,’’ माँ ने दु:खी होकर कहा- ‘‘जिस स्थिति में हम जीवित हैं उस से ज्यादा बुरा और क्या हो सकता है। हमें इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेना चाहिए। ईश्वर हमारी सहायता करेगा।’’
उस संध्या को जब देवी गायों को लेकर लौट रही थी उसे वही आवाज़ फिर सुनाई दी।
आवाज़ कोमल और दु:ख भरी थी।

‘‘देवी, देवी क्या तुम मुझ से विवाह करोगी ? क्या तुम मुझ से विवाह करोगी ?’’ आवाज़ बोली।
देवी रुक गई। उस ने पीछे मुड़कर देखा लेकिन उसे कोई नहीं दिखाई दिया। वह हिचकिचायी। वह वहाँ से भाग जाना चाहती थी लेकिन फिर उसे माँ के शब्द याद आ गये। वह जल्दी से बोली- ‘‘हाँ, यदि तुम कल सुबह मेरे घर आ जाओ तो मैं तुम से विवाह कर लूँगी।

तब वह बड़ी तेजी से गायों को हाँकती हुई घर चली गई।
अगले दिन सुबह रानी शोभा जरा जल्दी उठ गई। उस ने जाकर बाहर का दरवाजा खोला, देखने के लिए कि कोई प्रतीक्षा तो नहीं कर रहा।
वहाँ कोई भी न था। अचानक उसे एक धक्का सा लगा और वह स्तब्ध रह गई। एक बड़ा अजगर कुण्डली मारे सीढ़ियों पर बैठा था।
रानी शोभा सहायता के लिए चिल्लायी। देवी और नौकर भागे-भागे आये कि क्या बात है।
तभी एक आश्चर्यजनक बात हुई। अजगर बोला :-
‘‘नमस्कार,’’ उसका स्वर बहुत विनम्र था- ‘‘मुझे निमन्त्रित किया गया था इसलिये मैं आया हूँ। आपकी लड़की ने मुझसे वायदा किया था कि यदि मैं सुबह घर आ सकूँ तो वह मुझ से विवाह कर लेगी। मैं इस लिये आया हूँ।


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