हास्य-व्यंग्य >> चुटीली चिकौटियाँ चुटीली चिकौटियाँमधुप पांडेय
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चुटीली चिकौटियाँ...
वक़्त की नब्ज़ को पकड़कर, समय के साथ बहुत तेज़ी से परिवर्तित हो रहे समाज को अपने अंगीकार करके, विभिन्न सामाजिक विद्रूपताओं को सहज और सरल बनाकर, मुस्कुराहट के साथ सलीक़े से प्रस्तुत करने वाले कवि का नाम मधुप पांडेय है। मधुपजी अपनी कविताओं के माध्यम से समस्याओं को केवल प्रस्तुत ही नहीं करते वरन् समाधान के बिन्दु पर ले जाकर छोड़ते हैं। हिन्दी हास्य-व्यंग्य के क्षेत्र में मधुप पांडेय की उपस्थिति का एक ख़ास मतलब होता है। यह मतलब इसलिए खास हो जाता है क्योंकि वह हिन्दी हास्य-व्यंग्य की परम्परा को भली-भांति जानने वाले, एक पढ़े-लिखे और संवेदनशील रचनाकार हैं। उनकी कविताओं को सुनते समय जिस आनन्द की अनुभूति होती है, वही आनन्द उनकी कविताओं को पढ़ते समय भी आता है। उनकी कविताओं में जीवन के विभिन्न इन्द्रधनुषी रंगों का लेखा-जोखा है। लोक हृदय और मानव स्वभाव के विभिन्न संवेगों की मानवीय अभिव्यक्ति है। जीवन के साथ उनका गहरा रागात्मक सम्बन्ध उनकी कविताओं में विभिन्न रूपों में प्रकट होता है।
-डॉ. प्रवीण शुक्ल
हास्य की सहज, सरल और बोधगम्य कविताएँ लिखने वाले कवि
आज का दौर विसंगतियों का दौर है। यह ऐसा समय है, जिसमें लोगों की कथनी और करनी में लगातार अंतर बढ़ता जा रहा है। इस अंतर ने समाज में विद्रूपताओं को जन्म दिया है। इन विद्रूपताओं ने हमारे सामाजिक ढांचे को पूरी तरह बदल दिया है। वक़्त के साथ-साथ हमारी मान्यताएं भी बहुत तेजी के साथ बदलती जा रही है। वक़्त की नब्ज़ पकड़कर, समय के साथ बहुत तेजी से परिवर्तित हो रहे समाज को अपने भीतर अंगीकार करके, विभिन्न सामाजिक विद्रूपताओं को सहज और सरल बनाकर, मुस्कुराहट के साथ सलीके से प्रस्तुत करने वाले कवि का नाम मधुप पांडेय है। मधुप जी अपनी कविताओं के माध्यम से समस्याओं को केवल प्रस्तुत ही नहीं करते वरन् समाधान के बिन्दु पर ले जाकर छोड़ते हैं। हिन्दी हास्य-व्यंग्य के क्षेत्र में मधुप पांडेय की उपस्थिति का एक खास मतलब होता है। यह मतलब इसलिए ख़ास होता जाता है क्योंकि वह हिन्दी हास्य-व्यंग्य की परम्परा को भली-भांति जानने वाले, एक पढ़े-लिखे और संवेदनशील रचनाकार हैं। उनकी कविताओं को सुनते समय जिस आनन्द की अनुभूति होती है, वही आनन्द उनकी कविताओं को पढ़ते समय भी आता है। उनकी कविताओं में जीवन के विभिन्न संवेगों की मानवीय अभिव्यक्त है। जीवन के साथ उनका गहरा रागात्मक संबंध उनकी कविताओं में विभिन्न रूपों में प्रकट होता है। मुझे लगता है कि मधुप जी इस कार्य को इसलिए महत्वपूर्ण तरीके से कर पाये हैं क्योंकि उन्होंने अपने जीवन को पूरी शिद्दत के साथ जिया है। साहित्य जीवन का अनुवाद है और अनुवाद वही कर सकता है जो रचना के मूल रूप से भली-भांति परिचित हो।
मधुप जी के इस संग्रह की कविताओं से गुज़रते समय आप महसूस करेंगे कि उन्होंने अपनी कविताओं में शब्दों की फिजूलखर्ची नहीं की है। उन्होंने अपनी कविताओं को एक विशेष रचना प्रक्रिया से गुजरते हुए लिखा है। उन्हें अपनी कविता के माध्यम से जो कहना है वह उस विचार से सम्बन्धित विषय-वस्तु को पहले अपने मस्तिष्क में बिठाते हैं और फिर जिस प्रकार कोई अचूक निशानेबाज अपने ‘टारगेट’ पर निशाना साध देता है, उसी प्रकार अपनी कविताओं के शिल्प द्वारा, विषय वस्तु को उत्कृष्टता के शिखर पर ले जाकर उसकी प्रस्तावना प्रस्तुत कर देते हैं।
आज का दौर विसंगतियों का दौर है। यह ऐसा समय है, जिसमें लोगों की कथनी और करनी में लगातार अंतर बढ़ता जा रहा है। इस अंतर ने समाज में विद्रूपताओं को जन्म दिया है। इन विद्रूपताओं ने हमारे सामाजिक ढांचे को पूरी तरह बदल दिया है। वक़्त के साथ-साथ हमारी मान्यताएं भी बहुत तेजी के साथ बदलती जा रही है। वक़्त की नब्ज़ पकड़कर, समय के साथ बहुत तेजी से परिवर्तित हो रहे समाज को अपने भीतर अंगीकार करके, विभिन्न सामाजिक विद्रूपताओं को सहज और सरल बनाकर, मुस्कुराहट के साथ सलीके से प्रस्तुत करने वाले कवि का नाम मधुप पांडेय है। मधुप जी अपनी कविताओं के माध्यम से समस्याओं को केवल प्रस्तुत ही नहीं करते वरन् समाधान के बिन्दु पर ले जाकर छोड़ते हैं। हिन्दी हास्य-व्यंग्य के क्षेत्र में मधुप पांडेय की उपस्थिति का एक खास मतलब होता है। यह मतलब इसलिए ख़ास होता जाता है क्योंकि वह हिन्दी हास्य-व्यंग्य की परम्परा को भली-भांति जानने वाले, एक पढ़े-लिखे और संवेदनशील रचनाकार हैं। उनकी कविताओं को सुनते समय जिस आनन्द की अनुभूति होती है, वही आनन्द उनकी कविताओं को पढ़ते समय भी आता है। उनकी कविताओं में जीवन के विभिन्न संवेगों की मानवीय अभिव्यक्त है। जीवन के साथ उनका गहरा रागात्मक संबंध उनकी कविताओं में विभिन्न रूपों में प्रकट होता है। मुझे लगता है कि मधुप जी इस कार्य को इसलिए महत्वपूर्ण तरीके से कर पाये हैं क्योंकि उन्होंने अपने जीवन को पूरी शिद्दत के साथ जिया है। साहित्य जीवन का अनुवाद है और अनुवाद वही कर सकता है जो रचना के मूल रूप से भली-भांति परिचित हो।
मधुप जी के इस संग्रह की कविताओं से गुज़रते समय आप महसूस करेंगे कि उन्होंने अपनी कविताओं में शब्दों की फिजूलखर्ची नहीं की है। उन्होंने अपनी कविताओं को एक विशेष रचना प्रक्रिया से गुजरते हुए लिखा है। उन्हें अपनी कविता के माध्यम से जो कहना है वह उस विचार से सम्बन्धित विषय-वस्तु को पहले अपने मस्तिष्क में बिठाते हैं और फिर जिस प्रकार कोई अचूक निशानेबाज अपने ‘टारगेट’ पर निशाना साध देता है, उसी प्रकार अपनी कविताओं के शिल्प द्वारा, विषय वस्तु को उत्कृष्टता के शिखर पर ले जाकर उसकी प्रस्तावना प्रस्तुत कर देते हैं।
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