पर्यावरण एवं विज्ञान >> भारत के दुर्लभ पौधे भारत के दुर्लभ पौधेसुधांशु कुमार जैन
|
5 पाठकों को प्रिय 33 पाठक हैं |
दुर्लभ पौधों की जानकारी न केवल ज्ञानवर्धक व रोचक है बल्कि उनके संरक्षण में भी सहायक है...
Bharat ke Durlabh Paudhe - A hindi Book by - Sudhanshu Kumar Jain भारत के दुर्लभ पौधे - सुधांशु कुमार जैन
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
विश्व के पौधों की लगभग 2,50,000 जातियाँ पायी जाती हैं। अकेले भारत देश में पुष्पहीन तथा पुष्पी पौधों की लगभग 49,000 जातियाँ पाई जाती हैं। इनमें पुष्पी पौधों की अनेक जातियाँ लुप्त हो जाने के कगार पर हैं और कुछ तो कई दशक पूर्व लुप्तप्रायः हो चुकी हैं,
अतः पौधों का संरक्षण आवश्यक हो गया है। कुछ पौधे सीमित क्षेत्रीय न होते हुए भी अत्यधिक दोहन तथा अनेक प्राकृतिक व अन्य कारणों से दुर्लभ हैं। दुर्लभ पौधों की जानकारी ज्ञानवर्धक व रोचक होने के साथ-साथ संरक्षण में भी सहायक है। यह पाठक का पर्यावरण संरक्षण के एक अल्पज्ञात पहलू से परिचय कराती है। प्रस्तुत पुस्तक में ऐसे 122 दुर्लभ पौधों का वर्णन किया गया है और लगभग 50 पौधों के चित्र व रेखाचित्र भी दिये गये हैं।
लेखक सुधांशु कुमार जैन बोटेनिकल सर्वे ऑफ इंडिया के निदेशक रह चुके हैं। अनेक वर्षों से वे भारत की वनस्पति पर शोध कर रहे हैं। उन्होंने अनेक आदिम जाति क्षेत्रों में औषधि और खाद्य आदि में प्रयुक्त पौधों का अध्ययन किया है। उन्होंने लगभग दस पुस्तकें और दो सौ शोध पत्र लिखे हैं, जिनमें औषधीय जड़ी-बूटियां, सर्वेक्षण, वनस्पति नामकरण, पौधों का संरक्षण तथा लुप्तप्रायः पौधे शामिल हैं। इनकी एक पुस्तक ‘औषधीय पौधे’ का प्रकाशन नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा किया जा चुका है।
सह लेखक रामलखन सिंह सिकरवार एक वनस्पतिज्ञ हैं। इन्होंने कई वर्षों तक शोध-सहायक के रूप में लेखन के साथ कार्य किया है। हिन्दी में लगभग दस वर्षों से लेखन कार्य कर रहे हैं। उनके कई शोध पत्र तथा गैर-तकनीकी की भाषा में हिन्दी, अंग्रेजी में कई पुस्तकें व लेख प्रकाशित हैं। सम्प्रति : चित्रकूट के दीनदयाल उपाध्याय संस्थान में कार्यरत।
अतः पौधों का संरक्षण आवश्यक हो गया है। कुछ पौधे सीमित क्षेत्रीय न होते हुए भी अत्यधिक दोहन तथा अनेक प्राकृतिक व अन्य कारणों से दुर्लभ हैं। दुर्लभ पौधों की जानकारी ज्ञानवर्धक व रोचक होने के साथ-साथ संरक्षण में भी सहायक है। यह पाठक का पर्यावरण संरक्षण के एक अल्पज्ञात पहलू से परिचय कराती है। प्रस्तुत पुस्तक में ऐसे 122 दुर्लभ पौधों का वर्णन किया गया है और लगभग 50 पौधों के चित्र व रेखाचित्र भी दिये गये हैं।
लेखक सुधांशु कुमार जैन बोटेनिकल सर्वे ऑफ इंडिया के निदेशक रह चुके हैं। अनेक वर्षों से वे भारत की वनस्पति पर शोध कर रहे हैं। उन्होंने अनेक आदिम जाति क्षेत्रों में औषधि और खाद्य आदि में प्रयुक्त पौधों का अध्ययन किया है। उन्होंने लगभग दस पुस्तकें और दो सौ शोध पत्र लिखे हैं, जिनमें औषधीय जड़ी-बूटियां, सर्वेक्षण, वनस्पति नामकरण, पौधों का संरक्षण तथा लुप्तप्रायः पौधे शामिल हैं। इनकी एक पुस्तक ‘औषधीय पौधे’ का प्रकाशन नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा किया जा चुका है।
सह लेखक रामलखन सिंह सिकरवार एक वनस्पतिज्ञ हैं। इन्होंने कई वर्षों तक शोध-सहायक के रूप में लेखन के साथ कार्य किया है। हिन्दी में लगभग दस वर्षों से लेखन कार्य कर रहे हैं। उनके कई शोध पत्र तथा गैर-तकनीकी की भाषा में हिन्दी, अंग्रेजी में कई पुस्तकें व लेख प्रकाशित हैं। सम्प्रति : चित्रकूट के दीनदयाल उपाध्याय संस्थान में कार्यरत।
भारत के दुर्लभ पौधे-विषय प्रवेश
भारत की प्राकृतिक संरचना
समृद्ध सांस्कृतिक विरासत तथा जैविक विविधता के कारण संसार में भारत की अपनी एक अलग पहचान है। इसका क्षेत्रफल 32,85,263 वर्ग किमी है, जो हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों से लेकर दक्षिण के उष्ण कटिबंधीय सघन वनों तक फैला हुआ है। इसके उत्तर में हिमालय पर्वत है, और दक्षिण में हिंद महासागर; इसके पूर्व में बंगाल की खाड़ी और पश्चिम में अरब सागर है। विश्व के इस सातवें विशालतम देश को पर्वत तथा समुद्र, शेष एशिया से अलग करते हैं। जिससे इसका अनोखा भौगोलिक अस्तित्व है।
यह उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है। यह 8041 और 37061 उत्तरी अक्षांश और 68071 और 970251 पूर्वी देशांतर में स्थिति है। इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण तक 3,214 किमी और पूर्व से पश्चिम तक 2,933 किमी है इसकी थल सीमा लगभग 15,200 किमी है। समुद्र तट की कुल लंबाई लगभग 7,500 किमी है। भारत के सीमावर्ती देशों में उत्तर-पश्चिम में पाकिस्तान और अफगानिस्तान है। उत्तर में नेपाल, भूटान और चीन है। पूर्व में म्यांमार और बंग्लादेश स्थित है।
भारत की थल भूमि को चार भागों में रख सकते हैं: विस्तृत क्षेत्र, सिंधु और गंगा के मैदान, रेगिस्तान क्षेत्र और दक्षिण प्रायद्वीप। हिमालय पर्वत की तीन श्रृंखलाएं हैं, जो लगभग सामानांतर फैली हैं। इनके बीच बड़े-बड़े पठार है घाटियां हैं इनमें कश्मीर और कुल्लू जैसी कुछ घाटियां उपजाऊ, विस्तृत और प्राकृतिक सौंदर्य से संपन्न हैं। सिंधु तथा गंगा के मैदान लगभग 2,400 किमी लंबे और 240 से 320 किमी तक चौड़े हैं।
दक्षिणी प्रायद्वीप के पठार में लगभग 460 से 1,220 मी तक ऊंचाई की पहाड़ियां हैं इसमें अरावली, विंध्य, सतपुरा, मैकल और अंजता। प्रायद्वीप के एक ओर पूर्वी घाट है जहां औसत ऊंचाई 610 मी के करीब और दूसरी ओर पश्चिमी घाट है, जहां की ऊंचाई साधारणतया 900 से 1,200 मी है, तो कहीं 2,400 मी से अधिक है, पश्चिमी घाट तथा अरब सागर के बीच समुद्र तट की एक संकरी पट्टी है, जबकि पूर्वी घाट की खाड़ी के बीच एक चौड़ा तटीय क्षेत्र है।
यह उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है। यह 8041 और 37061 उत्तरी अक्षांश और 68071 और 970251 पूर्वी देशांतर में स्थिति है। इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण तक 3,214 किमी और पूर्व से पश्चिम तक 2,933 किमी है इसकी थल सीमा लगभग 15,200 किमी है। समुद्र तट की कुल लंबाई लगभग 7,500 किमी है। भारत के सीमावर्ती देशों में उत्तर-पश्चिम में पाकिस्तान और अफगानिस्तान है। उत्तर में नेपाल, भूटान और चीन है। पूर्व में म्यांमार और बंग्लादेश स्थित है।
भारत की थल भूमि को चार भागों में रख सकते हैं: विस्तृत क्षेत्र, सिंधु और गंगा के मैदान, रेगिस्तान क्षेत्र और दक्षिण प्रायद्वीप। हिमालय पर्वत की तीन श्रृंखलाएं हैं, जो लगभग सामानांतर फैली हैं। इनके बीच बड़े-बड़े पठार है घाटियां हैं इनमें कश्मीर और कुल्लू जैसी कुछ घाटियां उपजाऊ, विस्तृत और प्राकृतिक सौंदर्य से संपन्न हैं। सिंधु तथा गंगा के मैदान लगभग 2,400 किमी लंबे और 240 से 320 किमी तक चौड़े हैं।
दक्षिणी प्रायद्वीप के पठार में लगभग 460 से 1,220 मी तक ऊंचाई की पहाड़ियां हैं इसमें अरावली, विंध्य, सतपुरा, मैकल और अंजता। प्रायद्वीप के एक ओर पूर्वी घाट है जहां औसत ऊंचाई 610 मी के करीब और दूसरी ओर पश्चिमी घाट है, जहां की ऊंचाई साधारणतया 900 से 1,200 मी है, तो कहीं 2,400 मी से अधिक है, पश्चिमी घाट तथा अरब सागर के बीच समुद्र तट की एक संकरी पट्टी है, जबकि पूर्वी घाट की खाड़ी के बीच एक चौड़ा तटीय क्षेत्र है।
जलवायु
भारत की जलवायु आमतौर से उष्ण कटिबंधीय है। यहां मुख्यता चार ऋतुएं होती हैं, शीत ऋतु (जनवरी-फरवरी), गीष्म ऋतु (मार्च-मई) वर्षा ऋतु या दक्षिण-पश्चिमी मानसून का समय (जून-सितंबर) और मानसून पश्चात ऋतु शरद ऋतु (अक्टूबर-दिसंबर)।
जैव विविधता
उष्ण से लेकर उत्तर ध्रुवीय तक भिन्न प्रकार की जलवायु के कारण भारत में अनेक प्रकार की वनस्पतियां पाई जाती हैं, जो समान आकार के अन्य अधिकांश देशों में बहुत कम मिलती हैं। भारत को नौ वानस्पतिक क्षेत्रों में बांटा जा सकता है-पश्चिमी हिमालय, असम, भारतीय मरुस्थल, गंगा का मैदान, मध्य भारत, दक्कन मलाबार और अंडमान।
पश्चिमी हिमालय क्षेत्र कश्मीर से कुमाऊं तक फैला हुआ है। इस क्षेत्र के शीतोष्ण कटिबंधीय भाग में चीड़, देवदार जैसे कोणधारी वृक्षों (कोनीफर्स) और चौड़ी पत्ती वाले शीतोष्ण वृक्षों के वनों का बाहुल्य है। इससे ऊपर के क्षेत्र में देवदार, नीली चीड़, सनोवर और श्वेत देवदार के जंगल हैं। अलपाइन क्षेत्र शीतोष्ण क्षेत्र की ऊपरी सीमा से 4,750 मी या इससे अधिक ऊंचाई तक फैला हुआ है। इस क्षेत्र में श्वेत देवदार और अन्य भोजपत्र अन्य सदाबहार वृक्ष पाए जाते हैं।
पूर्वी हिमालय क्षेत्र सिक्किम से पूर्व की ओर से माना जाता है और इसके अंतर्गत दार्जिलिंग, कुर्सियांग और उसके साथ लगे क्षेत्र आते हैं। इस शीतोष्ण क्षेत्र में ओक, जायवृक्ष, द्विफल, बड़े फूलों वाले सदाबहार वृक्ष और छोटी बेंत के जंगल पाए जाते हैं।
असम क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र और सुरमा घाटियां तथा बीच की पहाड़ी श्रेणियां आती हैं। ये सदाबहार जंगल से ढकी हैं और बीच-बीच में घने बांस और लंबी घास के झुरमुट हैं।
भारतीय मरुस्थल क्षेत्र में पंजाब, पश्चिमी राजस्थान, और उत्तरी गुजरात के मैदान शामिल हैं। यह शुष्क तथा गर्म है और इसमें भी कुछ अनोखी प्राकृतिक छोटी वनस्तियां मिलती हैं। घने वन कम हैं।
गंगा के मैदानी क्षेत्र के अन्तर्गत अरावली श्रेणियों से लेकर बंगाल और उड़ीसा तक का क्षेत्र आता है। इस क्षेत्र का अधिकतर भाग कछारी मैदान है और इनमें गेहूं, चावल और गन्ने आदि की खेती होती है। केवल थोड़े-से भाग में विभिन्न प्रकार के वन हैं।
मध्य भारत क्षेत्र में संपूर्ण मध्य प्रदेश, उड़ीसा तथा गुजरात का कुछ भाग शामिल है। यहाँ उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वनों का बाहुल्य है।
पश्चिमी हिमालय क्षेत्र कश्मीर से कुमाऊं तक फैला हुआ है। इस क्षेत्र के शीतोष्ण कटिबंधीय भाग में चीड़, देवदार जैसे कोणधारी वृक्षों (कोनीफर्स) और चौड़ी पत्ती वाले शीतोष्ण वृक्षों के वनों का बाहुल्य है। इससे ऊपर के क्षेत्र में देवदार, नीली चीड़, सनोवर और श्वेत देवदार के जंगल हैं। अलपाइन क्षेत्र शीतोष्ण क्षेत्र की ऊपरी सीमा से 4,750 मी या इससे अधिक ऊंचाई तक फैला हुआ है। इस क्षेत्र में श्वेत देवदार और अन्य भोजपत्र अन्य सदाबहार वृक्ष पाए जाते हैं।
पूर्वी हिमालय क्षेत्र सिक्किम से पूर्व की ओर से माना जाता है और इसके अंतर्गत दार्जिलिंग, कुर्सियांग और उसके साथ लगे क्षेत्र आते हैं। इस शीतोष्ण क्षेत्र में ओक, जायवृक्ष, द्विफल, बड़े फूलों वाले सदाबहार वृक्ष और छोटी बेंत के जंगल पाए जाते हैं।
असम क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र और सुरमा घाटियां तथा बीच की पहाड़ी श्रेणियां आती हैं। ये सदाबहार जंगल से ढकी हैं और बीच-बीच में घने बांस और लंबी घास के झुरमुट हैं।
भारतीय मरुस्थल क्षेत्र में पंजाब, पश्चिमी राजस्थान, और उत्तरी गुजरात के मैदान शामिल हैं। यह शुष्क तथा गर्म है और इसमें भी कुछ अनोखी प्राकृतिक छोटी वनस्तियां मिलती हैं। घने वन कम हैं।
गंगा के मैदानी क्षेत्र के अन्तर्गत अरावली श्रेणियों से लेकर बंगाल और उड़ीसा तक का क्षेत्र आता है। इस क्षेत्र का अधिकतर भाग कछारी मैदान है और इनमें गेहूं, चावल और गन्ने आदि की खेती होती है। केवल थोड़े-से भाग में विभिन्न प्रकार के वन हैं।
मध्य भारत क्षेत्र में संपूर्ण मध्य प्रदेश, उड़ीसा तथा गुजरात का कुछ भाग शामिल है। यहाँ उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वनों का बाहुल्य है।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book