हास्य-व्यंग्य >> ए जी सुनिए ए जी सुनिएअशोक चक्रधर
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अशोक चक्रधर के द्वारा लिखी गई व्यंग्य पूर्ण कविताएँ एवं लेख
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
कुर्सी अक्रूर की हो
किसी क्रूर तक न जाय,
नेता सुराही और
हुस्नो-हूर तक न जाय।
जन जुल्म के चंगुल से रहें
चार हाथ दूर,
सिंदूर किसी मांग का
तंदूर तक न जाय।
वर्ग-विभाजन
दुनिया में
लोग होते हैं
दो तरहा के-
पहले वे
जो जीवन जीते हैं
पसीन बहा के !
दूसरे वे
जो पहले वालों का
बेचते हैं-
रूमाल,
शीतल पेय,
पंखे
और....
ठहाके।
लोग होते हैं
दो तरहा के-
पहले वे
जो जीवन जीते हैं
पसीन बहा के !
दूसरे वे
जो पहले वालों का
बेचते हैं-
रूमाल,
शीतल पेय,
पंखे
और....
ठहाके।
बात
बात होनी चाहिए
सारगर्भित
और छोटी !
जैसे कि
पहलवान की लंगोटी।
सारगर्भित
और छोटी !
जैसे कि
पहलवान की लंगोटी।
इच्छा-शक्ति
ओ ठोकर !
तू सोच रही
मैं बैठ जाऊंगी
रोकर,
भ्रम है तेरा
चल दूंगी मैं
फ़ौरन
तत्पर होकर।
ओ पहाड़!
कितना भी टूटे
हंस ले खेल बिगाड़,
मैं भी मैं हूं
नहीं समझ लेना
मुझको खिलवाड़।
ओ बिजली !
तूने सोचा
यूं मर जाएगी
तितली,
बगिया जल जाएगी
तितली रह जाएगी इकली।
कुछ भी कर ले
पंख नए
भीतर से उग आएंगे,
देखेगी तू
नन्हीं तितली
फिर उड़ान पर निकली।
ओ तूफ़ान !
समझता है
हर लेगा मेरे प्रान,
तिनका तिनका बिखराकर
कर देगा लहूलुहान !
इतना सुन ले
कर्मक्षेत्र में
जो असली इंसान,
उन्हें डिगाना
अपने पथ से
नहीं बहुत आसान।
ओ आंधी !
तूने भी
दुष्चक्रों की खिचड़ी रांधी,
जितना भैरव-नृत्य किया
मेरी जिजीविषा बांधी।
परपीड़ा सुख लेने वाली
तू भी इतना सुन ले
मेरे भी अंदर जीवित हैं
युग के गौतम-गांधी।
अरी हवा !
तू भी चाहे तो
दिखला अपना जलवा,
भोले नन्हें पौधे पर
मंडरा बन मन का मलवा।
कितनी भी प्रतिकूल बहे
पर इतना तू भी
सुन ले-
पुन: जमेगा
इस मिट्टी में
तुलसी का ये बिरवा।
तू सोच रही
मैं बैठ जाऊंगी
रोकर,
भ्रम है तेरा
चल दूंगी मैं
फ़ौरन
तत्पर होकर।
ओ पहाड़!
कितना भी टूटे
हंस ले खेल बिगाड़,
मैं भी मैं हूं
नहीं समझ लेना
मुझको खिलवाड़।
ओ बिजली !
तूने सोचा
यूं मर जाएगी
तितली,
बगिया जल जाएगी
तितली रह जाएगी इकली।
कुछ भी कर ले
पंख नए
भीतर से उग आएंगे,
देखेगी तू
नन्हीं तितली
फिर उड़ान पर निकली।
ओ तूफ़ान !
समझता है
हर लेगा मेरे प्रान,
तिनका तिनका बिखराकर
कर देगा लहूलुहान !
इतना सुन ले
कर्मक्षेत्र में
जो असली इंसान,
उन्हें डिगाना
अपने पथ से
नहीं बहुत आसान।
ओ आंधी !
तूने भी
दुष्चक्रों की खिचड़ी रांधी,
जितना भैरव-नृत्य किया
मेरी जिजीविषा बांधी।
परपीड़ा सुख लेने वाली
तू भी इतना सुन ले
मेरे भी अंदर जीवित हैं
युग के गौतम-गांधी।
अरी हवा !
तू भी चाहे तो
दिखला अपना जलवा,
भोले नन्हें पौधे पर
मंडरा बन मन का मलवा।
कितनी भी प्रतिकूल बहे
पर इतना तू भी
सुन ले-
पुन: जमेगा
इस मिट्टी में
तुलसी का ये बिरवा।
बढ़ता हुआ बच्चा
मैग्ज़ीन पढ़ रही है मां
बच्चा सो रहा है,
बच्चे के हाथ में भी
एक किताब है
पढे़ कैसे
वह तो सो रहा है।
हिचकियां ले रहा है
और बड़ा हो रहा है।
बढ़ता हुआ बच्चा
जब और और बढ़ेगा,
तो मां से भी ज़्यादा
किताबें पढ़ेगा।
मज़ा तो तब आएगा,
जब वो
किसी अनपढ़ मां को
पढ़ाएगा।
बच्चा सो रहा है,
बच्चे के हाथ में भी
एक किताब है
पढे़ कैसे
वह तो सो रहा है।
हिचकियां ले रहा है
और बड़ा हो रहा है।
बढ़ता हुआ बच्चा
जब और और बढ़ेगा,
तो मां से भी ज़्यादा
किताबें पढ़ेगा।
मज़ा तो तब आएगा,
जब वो
किसी अनपढ़ मां को
पढ़ाएगा।
आपकी नाकामयाबी
नन्हा बच्चा
जिस भी उंगली को पकड़े
कस लेता है,
और
अपनी पकड़ की
मज़बूती का
रस लेता है।
आप कोशिश करिए
अपनी उंगली छुड़ाने की।
नहीं छुड़ा पाए न !
वो आपकी नाकामयाबी पर
हंस लेता है।
और पकड़ की
मज़बूती का
भरपूर रस लेता है।
जिस भी उंगली को पकड़े
कस लेता है,
और
अपनी पकड़ की
मज़बूती का
रस लेता है।
आप कोशिश करिए
अपनी उंगली छुड़ाने की।
नहीं छुड़ा पाए न !
वो आपकी नाकामयाबी पर
हंस लेता है।
और पकड़ की
मज़बूती का
भरपूर रस लेता है।
पोपला बच्चा
बच्चा देखता है
कि मां उसको हंसाने की
कोशिश कर रही है।
भरपूर कर रही है,
पुरज़ोर कर रही है,
गुलगुली बदन में
हर ओर कर रही है।
मां की नादानी को
ग़ौर से देखता है बच्चा,
फिर कृपापूर्वक
अचानक...
अपने पोपले मुंह से
फट से हंस देता है।
सोचता है
ख़ूब फंसी
मां भी मुझमें ख़ूब फंसी,
फिर दिशाओं में गूंजती है
फेनिल हंसी।
मां की भी
पोपले बच्चे की भी।
कि मां उसको हंसाने की
कोशिश कर रही है।
भरपूर कर रही है,
पुरज़ोर कर रही है,
गुलगुली बदन में
हर ओर कर रही है।
मां की नादानी को
ग़ौर से देखता है बच्चा,
फिर कृपापूर्वक
अचानक...
अपने पोपले मुंह से
फट से हंस देता है।
सोचता है
ख़ूब फंसी
मां भी मुझमें ख़ूब फंसी,
फिर दिशाओं में गूंजती है
फेनिल हंसी।
मां की भी
पोपले बच्चे की भी।
डबवाली शिशुओं के नाम
आरजू, बंसी-एक साल !
निशा, अमनदीप, गुड्डी-दो साल !
मीरा, एकता, मरियम-तीन साल !
रेशमा, भावना, नवनीत- चार साल !
गोलू, गिरधर, बॉबी-पांच साल !
अवनीत कौर, हुमायूं-छ: साल !
राखी, विक्टर, सुचित्रा-सात साल !
अंकित, दीपक, रेहाना-आठ साल !
नौ साल के हीबा और विवेक !
और भी अनेकानेक....
डबवाली के बच्चो !
सूम समय के सामने
सभी सवाली हैं,
डबवाली की आंखें
डब डब वाली हैं।
अख़बार में मैंने पढ़ी
पूरी मृतक सूची,
अंतरात्मा कांप गई समूची।
अस्तित्व अग्नि में समो गया,
तीन मिनिट में तो
सब कुछ हो गया।
बसंत आने से पहले
बस अंत आ गया,
कोंपलों पर क़यामत का
पतझर कहर ढा गया।
आसमान से आग बरसी
और तुम
आसमान में चले गए,
हम अपनी ही भूलों से छले गए।
वापस लौट आओ बच्चो !
सच्चे दिल से पुकारता हूं
वापस लौट आओ बच्चो !
पूरे दिन
उपवास किए लेता हूं,
चलो पुनर्जन्म में
विश्वास किए लेता हूं।
तो लौटो
आज की रात से पहले,
लेकिन एक शर्त है कि कोख बदले।
बात को समझना कि
कही है किस संदर्भ में,
मसलन हुमायूं लौट आए,
लेकिन किसी हिन्दू मां के गर्भ में।
हुमायूं ! जब तू
मुस्लिम चेतना के साथ
किसी हिन्दू घर में पलेगा,
तब तुझे
क़ुरानख़ानी और अज़ान का स्वर
नहीं खलेगा।
तू एक ओर
अपने सनातन धर्म को
आदर देगा,
तो साथ में
पीरों को भी चादर देगा।
प्यारी रेहाना !
तू किसी सिख मां की
कोख में आना।
गुरु ग्रंथ साहब तुझे
नई रौशनी देंगे,
कि हम सब जिएंगे
न कि लड़ेंगे मरेंगे।
बंसी, दीपक, सुचित्रा, भावना !
तुम ईसाई या मुस्लिम माताएं तलाशना।
ताकि वहां हिन्दू चेतना के
दीपक का उजाला हो,
बंसी की तान पर
तस्बीह की माला हो।
भावना हो कुल मिलाकर प्यार की,
इसीलिए मैंने तुम सबसे गुहार की।
ओ विक्टर, विक्की, हीबा, हुमायूं
अवनीत, नवनीत, रेहाना, राखी और
एकता कौर !
नए घर में आकर
भले ही मत्था टेकना
बपतिस्मा कराना, जनेऊ धारना
या तुम्हारा अक़ीका हो, सुन्नत हो,
पर दूसरे धर्मों के लिए
आदर लेकर जन्मना
ताकि भारत एक जन्नत हो।
अजन्मे शिशुओ !
तब तुम बड़े होकर
लाशें नहीं पाटोगे,
हर हर महादेव
अल्ला हो अकबर
सत सिरी अकाल
बोले सो निहाल
ऐसे या इन जैसे नारों में
बस इंसानियत ही तलाशोगे।
भारत भूमि पर आने वाले
अजन्मे शिशुओं !
भ्रूण बनने से पहले
थोड़ी सी अकल लो,
जहां भी हो
मौक़ा पाते ही निकल लो।
पुनर्जन्म के संदर्भ बदल लो,
धर्मों से धर्मों के मर्मों को जोड़ना है
इस नाते फ़ौरन गर्भ बदल लो।
निशा, अमनदीप, गुड्डी-दो साल !
मीरा, एकता, मरियम-तीन साल !
रेशमा, भावना, नवनीत- चार साल !
गोलू, गिरधर, बॉबी-पांच साल !
अवनीत कौर, हुमायूं-छ: साल !
राखी, विक्टर, सुचित्रा-सात साल !
अंकित, दीपक, रेहाना-आठ साल !
नौ साल के हीबा और विवेक !
और भी अनेकानेक....
डबवाली के बच्चो !
सूम समय के सामने
सभी सवाली हैं,
डबवाली की आंखें
डब डब वाली हैं।
अख़बार में मैंने पढ़ी
पूरी मृतक सूची,
अंतरात्मा कांप गई समूची।
अस्तित्व अग्नि में समो गया,
तीन मिनिट में तो
सब कुछ हो गया।
बसंत आने से पहले
बस अंत आ गया,
कोंपलों पर क़यामत का
पतझर कहर ढा गया।
आसमान से आग बरसी
और तुम
आसमान में चले गए,
हम अपनी ही भूलों से छले गए।
वापस लौट आओ बच्चो !
सच्चे दिल से पुकारता हूं
वापस लौट आओ बच्चो !
पूरे दिन
उपवास किए लेता हूं,
चलो पुनर्जन्म में
विश्वास किए लेता हूं।
तो लौटो
आज की रात से पहले,
लेकिन एक शर्त है कि कोख बदले।
बात को समझना कि
कही है किस संदर्भ में,
मसलन हुमायूं लौट आए,
लेकिन किसी हिन्दू मां के गर्भ में।
हुमायूं ! जब तू
मुस्लिम चेतना के साथ
किसी हिन्दू घर में पलेगा,
तब तुझे
क़ुरानख़ानी और अज़ान का स्वर
नहीं खलेगा।
तू एक ओर
अपने सनातन धर्म को
आदर देगा,
तो साथ में
पीरों को भी चादर देगा।
प्यारी रेहाना !
तू किसी सिख मां की
कोख में आना।
गुरु ग्रंथ साहब तुझे
नई रौशनी देंगे,
कि हम सब जिएंगे
न कि लड़ेंगे मरेंगे।
बंसी, दीपक, सुचित्रा, भावना !
तुम ईसाई या मुस्लिम माताएं तलाशना।
ताकि वहां हिन्दू चेतना के
दीपक का उजाला हो,
बंसी की तान पर
तस्बीह की माला हो।
भावना हो कुल मिलाकर प्यार की,
इसीलिए मैंने तुम सबसे गुहार की।
ओ विक्टर, विक्की, हीबा, हुमायूं
अवनीत, नवनीत, रेहाना, राखी और
एकता कौर !
नए घर में आकर
भले ही मत्था टेकना
बपतिस्मा कराना, जनेऊ धारना
या तुम्हारा अक़ीका हो, सुन्नत हो,
पर दूसरे धर्मों के लिए
आदर लेकर जन्मना
ताकि भारत एक जन्नत हो।
अजन्मे शिशुओ !
तब तुम बड़े होकर
लाशें नहीं पाटोगे,
हर हर महादेव
अल्ला हो अकबर
सत सिरी अकाल
बोले सो निहाल
ऐसे या इन जैसे नारों में
बस इंसानियत ही तलाशोगे।
भारत भूमि पर आने वाले
अजन्मे शिशुओं !
भ्रूण बनने से पहले
थोड़ी सी अकल लो,
जहां भी हो
मौक़ा पाते ही निकल लो।
पुनर्जन्म के संदर्भ बदल लो,
धर्मों से धर्मों के मर्मों को जोड़ना है
इस नाते फ़ौरन गर्भ बदल लो।
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