हास्य-व्यंग्य >> चुटपुटकुले चुटपुटकुलेअशोक चक्रधर
|
6 पाठकों को प्रिय 296 पाठक हैं |
ये चुटपुटकुले हैं हंसी के बुलबुले हैं जीवन के सब रहस्य इनसे ही तो खुले हैं, बड़े चुलबुले हैं, ये चुपपुटकुले हैं। मुस्काते दांतों की धवलता में धुले अशोक चक्रधर की तुकों में तुले ये चुटपुटकुले हैं जीवन के सब रहस्य इनसे ही तो खुले हैं।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
माना कि
कम उम्र होते
हंसी के बुलबुले हैं,
पर जीवन के सब रहस्य
इनसे ही तो खुले हैं,
ये चुटपुटकुले हैं।
ठहाकों के स्त्रोत
कुछ यहां कुछ वहां के,
कुछ खुद ही छोड़ दिए
अपने आप हांके।
चुलबुले लतीफ़े
मेरी तुकों में तुले हैं,
मुस्काते दांतों की
धवलता में धुले हैं,
ये कविता के
पुट वाले
चुटपुटकुले हैं।
कम उम्र होते
हंसी के बुलबुले हैं,
पर जीवन के सब रहस्य
इनसे ही तो खुले हैं,
ये चुटपुटकुले हैं।
ठहाकों के स्त्रोत
कुछ यहां कुछ वहां के,
कुछ खुद ही छोड़ दिए
अपने आप हांके।
चुलबुले लतीफ़े
मेरी तुकों में तुले हैं,
मुस्काते दांतों की
धवलता में धुले हैं,
ये कविता के
पुट वाले
चुटपुटकुले हैं।
अशोक चक्रधर
दया
भूख में होती है कितनी लाचारी,
ये दिखाने के लिए एक भिखारी,
लॉन की घास खाने लगा,
घर की मालकिन में
दया जगाने लगा।
दया सचमुच जागी
मालकिन आई भागी-भागी-
क्या करते हो भैया ?
भिखारी बोला
भूख लगी है मैया।
अपने आपको
मरने से बचा रहा हूं,
इसलिए घास ही चबा रहा हूं।
मालकिन ने आवाज़ में मिसरी घोली,
और ममतामयी स्वर में बोली—
कुछ भी हो भैया
ये घास मत खाओ,
मेरे साथ अंदर आओ।
दमदमाता ड्रॉइंग रूम
जगमगाती लाबी,
ऐशोआराम को सारे ठाठ नवाबी।
फलों से लदी हुई
खाने की मेज़,
और किचन से आई जब
महक बड़ी तेज,
तो भूख बजाने लगी
पेट में नगाड़े,
लेकिन मालकिन ले आई उसे
घर के पिछवाड़े।
भिखारी भौंचक्का-सा देखता रहा
मालकिन ने और ज़्यादा प्यार से कहा—
नर्म है, मुलायम है। कच्ची है
इसे खाओ भैया
बाहर की घास से
ये घास अच्छी है !
ये दिखाने के लिए एक भिखारी,
लॉन की घास खाने लगा,
घर की मालकिन में
दया जगाने लगा।
दया सचमुच जागी
मालकिन आई भागी-भागी-
क्या करते हो भैया ?
भिखारी बोला
भूख लगी है मैया।
अपने आपको
मरने से बचा रहा हूं,
इसलिए घास ही चबा रहा हूं।
मालकिन ने आवाज़ में मिसरी घोली,
और ममतामयी स्वर में बोली—
कुछ भी हो भैया
ये घास मत खाओ,
मेरे साथ अंदर आओ।
दमदमाता ड्रॉइंग रूम
जगमगाती लाबी,
ऐशोआराम को सारे ठाठ नवाबी।
फलों से लदी हुई
खाने की मेज़,
और किचन से आई जब
महक बड़ी तेज,
तो भूख बजाने लगी
पेट में नगाड़े,
लेकिन मालकिन ले आई उसे
घर के पिछवाड़े।
भिखारी भौंचक्का-सा देखता रहा
मालकिन ने और ज़्यादा प्यार से कहा—
नर्म है, मुलायम है। कच्ची है
इसे खाओ भैया
बाहर की घास से
ये घास अच्छी है !
नन्ही सचाई
एक डॉक्टर मित्र हमारे
स्वर्ग सिधारे।
असमय मर गए,
सांत्वना देने
हम उनके घर गए।
उनकी नन्ही-सी बिटिया
भोली-नादान थी,
जीवन-मृत्यु से
अनजान थी।
हमेशा की तरह
द्वार पर आई,
देखकर मुस्कुराई।
उसकी नन्ही-सचाई
दिल को लगी बेधने,
बोली—
अंकल !
भगवान जी बीमार हैं न
पापा गए हैं देखने।
स्वर्ग सिधारे।
असमय मर गए,
सांत्वना देने
हम उनके घर गए।
उनकी नन्ही-सी बिटिया
भोली-नादान थी,
जीवन-मृत्यु से
अनजान थी।
हमेशा की तरह
द्वार पर आई,
देखकर मुस्कुराई।
उसकी नन्ही-सचाई
दिल को लगी बेधने,
बोली—
अंकल !
भगवान जी बीमार हैं न
पापा गए हैं देखने।
कितनी रोटी
गांव में अकाल था,
बुरा हाल था।
एक बुढ़ऊ ने समय बिताने को,
यों ही पूछा मन बहलाने को—
ख़ाली पेट पर
कितनी रोटी खा सकते हो
गंगानाथ ?
गंगानाथ बोला—
सात !
बुढ़ऊ बोला—
गलत !
बिलकुल ग़लत कहा,
पहली रोटी
खाने के बाद
पेट खाली कहां रहा।
गंगानाथ,
यही तो मलाल है,
इस समय तो
सिर्फ़ एक रोटी का सवाल है।
बुरा हाल था।
एक बुढ़ऊ ने समय बिताने को,
यों ही पूछा मन बहलाने को—
ख़ाली पेट पर
कितनी रोटी खा सकते हो
गंगानाथ ?
गंगानाथ बोला—
सात !
बुढ़ऊ बोला—
गलत !
बिलकुल ग़लत कहा,
पहली रोटी
खाने के बाद
पेट खाली कहां रहा।
गंगानाथ,
यही तो मलाल है,
इस समय तो
सिर्फ़ एक रोटी का सवाल है।
नेता जी लगे मुस्कुराने
एक महा विद्यालय में
नए विभाग के लिए
नया भवन बनवाया गया,
उसके उद्घाटनार्थ
विद्यालय के एक पुराने छात्र
लेकिन नए नेता को
बुलवाया गया।
अध्यापकों ने
कार के दरवाज़े खोले
नेती जी उतरते ही बोले—
यहां तर गईं
कितनी ही पीढ़ियां,
अहा !
वही पुरानी सीढ़ियां !
वही मैदान
वही पुराने वृक्ष,
वही कार्यालय
वही पुराने कक्ष।
वही पुरानी खिड़की
वही जाली,
अहा, देखिए
वही पुराना माली।
मंडरा रहे थे
यादों के धुंधलके
थोड़ा और आगे गए चल के—
वही पुरानी
चिमगादड़ों की साउण्ड,
वही घंटा
वही पुराना प्लेग्राउण्ड।
छात्रों में
वही पुरानी बदहवासी,
अहा, वही पुराना चपरासी।
नमस्कार, नमस्कार !
अब आया हॉस्टल का द्वार—
हॉस्टल में वही कमरे
वही पुराना ख़ानसामा,
वही धमाचौकड़ी
वही पुराना हंगामा।
नेता जी पर
पुरानी स्मृतियां छा रही थीं,
तभी पाया
कि एक कमरे से
कुछ ज़्यादा ही
आवाज़ें आ रही थीं।
उन्होंने दरवाजा खटखटाया,
लड़के ने खोला
पर घबराया।
क्योंकि अंदर एक कन्या थी,
वल्कल-वसन-वन्या थी।
दिल रह गया दहल के,
लेकिन बोला संभल के—
आइए सर !
मेरा नाम मदन है,
इससे मिलिए
मेरी कज़न है।
नेता जी लगे मुस्कुराने
नए विभाग के लिए
नया भवन बनवाया गया,
उसके उद्घाटनार्थ
विद्यालय के एक पुराने छात्र
लेकिन नए नेता को
बुलवाया गया।
अध्यापकों ने
कार के दरवाज़े खोले
नेती जी उतरते ही बोले—
यहां तर गईं
कितनी ही पीढ़ियां,
अहा !
वही पुरानी सीढ़ियां !
वही मैदान
वही पुराने वृक्ष,
वही कार्यालय
वही पुराने कक्ष।
वही पुरानी खिड़की
वही जाली,
अहा, देखिए
वही पुराना माली।
मंडरा रहे थे
यादों के धुंधलके
थोड़ा और आगे गए चल के—
वही पुरानी
चिमगादड़ों की साउण्ड,
वही घंटा
वही पुराना प्लेग्राउण्ड।
छात्रों में
वही पुरानी बदहवासी,
अहा, वही पुराना चपरासी।
नमस्कार, नमस्कार !
अब आया हॉस्टल का द्वार—
हॉस्टल में वही कमरे
वही पुराना ख़ानसामा,
वही धमाचौकड़ी
वही पुराना हंगामा।
नेता जी पर
पुरानी स्मृतियां छा रही थीं,
तभी पाया
कि एक कमरे से
कुछ ज़्यादा ही
आवाज़ें आ रही थीं।
उन्होंने दरवाजा खटखटाया,
लड़के ने खोला
पर घबराया।
क्योंकि अंदर एक कन्या थी,
वल्कल-वसन-वन्या थी।
दिल रह गया दहल के,
लेकिन बोला संभल के—
आइए सर !
मेरा नाम मदन है,
इससे मिलिए
मेरी कज़न है।
नेता जी लगे मुस्कुराने
पहला क़दम
अब जब
विश्वभर में सबके सब,
सभ्य हैं, प्रबुद्ध हैं
तो क्यों करते युद्ध हैं ?
कैसी विडंबना कि
आधुनिक कहाते हैं,
फिर भी देश लड़ते हैं
लहू बहाते हैं।
एक सैनिक दूसरे को
बिना बात मारता है,
इससे तो अच्छी
समझौता वार्ता है।
एक दूसरे के समक्ष
बैठ जाएं दोनों पक्ष
बाचतीत से हल निकालें,
युद्ध को टालें !
क्यों अशोक जी,
आपका क्या ख़याल है ?
मैंने कहा—
यही तो मलाल है।
बातचीत से कुछ होगा
आपका भरम है,
दरअसल,
ये बातचीत ही तो
लड़ाई का
पहला कदम है।
क्या किया फ़ोटोज़ का ?
सामने खड़ा था स्टाफ़ समूचा
आई. जी. ने रौब से पूछा—
पांच शातिर बदमाशों के
चित्र मैंने भेजे,
कुछ किया
या सिर्फ़ सहेजे ?
इलाक़े में
हो रही वारदातें,
‘क्या कर रही है पुलिस’
ये होती हैं बातें।
रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में
बढ़ रहे हैं खतरे,
और
खुलेआम घूम रहे हैं
जेबकतरे।
चोरी,
डकैती
सेंधमारी,
जेबकतरी
सिलसिला बन गया है रोज़ का,
सिर झुकाए खड़ा था
स्टाफ़ सारा,
आई. जी. ने हवा में
बेंत फटकारा-
कोई जवाब नहीं दिया,
बताइए
इस तरह
सिर मत झुकाइए।
क्या किया है
बताइए ।
वो उचक्के
पूरे शहर को मूंड रहे हैं....
एक थानेदार बोला—
सर !
तीन फ़ोटो मिल गए हैं
दो फ़ोटो ढूँढ़ रहे हैं।
विश्वभर में सबके सब,
सभ्य हैं, प्रबुद्ध हैं
तो क्यों करते युद्ध हैं ?
कैसी विडंबना कि
आधुनिक कहाते हैं,
फिर भी देश लड़ते हैं
लहू बहाते हैं।
एक सैनिक दूसरे को
बिना बात मारता है,
इससे तो अच्छी
समझौता वार्ता है।
एक दूसरे के समक्ष
बैठ जाएं दोनों पक्ष
बाचतीत से हल निकालें,
युद्ध को टालें !
क्यों अशोक जी,
आपका क्या ख़याल है ?
मैंने कहा—
यही तो मलाल है।
बातचीत से कुछ होगा
आपका भरम है,
दरअसल,
ये बातचीत ही तो
लड़ाई का
पहला कदम है।
क्या किया फ़ोटोज़ का ?
सामने खड़ा था स्टाफ़ समूचा
आई. जी. ने रौब से पूछा—
पांच शातिर बदमाशों के
चित्र मैंने भेजे,
कुछ किया
या सिर्फ़ सहेजे ?
इलाक़े में
हो रही वारदातें,
‘क्या कर रही है पुलिस’
ये होती हैं बातें।
रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में
बढ़ रहे हैं खतरे,
और
खुलेआम घूम रहे हैं
जेबकतरे।
चोरी,
डकैती
सेंधमारी,
जेबकतरी
सिलसिला बन गया है रोज़ का,
सिर झुकाए खड़ा था
स्टाफ़ सारा,
आई. जी. ने हवा में
बेंत फटकारा-
कोई जवाब नहीं दिया,
बताइए
इस तरह
सिर मत झुकाइए।
क्या किया है
बताइए ।
वो उचक्के
पूरे शहर को मूंड रहे हैं....
एक थानेदार बोला—
सर !
तीन फ़ोटो मिल गए हैं
दो फ़ोटो ढूँढ़ रहे हैं।
ख़लीफ़ा की खोपड़ी
दर्शकों का नया जत्था आया
गाइड ने उत्साह से बताया—
ये नायाब चीज़ों का
अजायबघर है,
कहीं परिन्दे की चोंच है
कहीं पर है।
ये देखिए
ये संगमरमर की शिला
एक बहुत पुरानी क़बर की है,
और इस पर जो बड़ी-सी
खोपड़ी रखी है न,
ख़लीफा बब्बर की है।
तभी एक दर्शक ने पूछा—
और ये जो
छोटी खोपड़ी रखी है
ये किनकी है ?
गाइड बोला—
है तो ये भी ख़लीफ़ा बब्बर की
पर उनके बचपन की है।
गाइड ने उत्साह से बताया—
ये नायाब चीज़ों का
अजायबघर है,
कहीं परिन्दे की चोंच है
कहीं पर है।
ये देखिए
ये संगमरमर की शिला
एक बहुत पुरानी क़बर की है,
और इस पर जो बड़ी-सी
खोपड़ी रखी है न,
ख़लीफा बब्बर की है।
तभी एक दर्शक ने पूछा—
और ये जो
छोटी खोपड़ी रखी है
ये किनकी है ?
गाइड बोला—
है तो ये भी ख़लीफ़ा बब्बर की
पर उनके बचपन की है।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book