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रवि कहानी

अमिताभ चौधरी

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :85
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 474
आईएसबीएन :81-237-3061-6

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नेशनल बुक ट्रस्ट की सतत् शिक्षा पुस्तकमाला सीरीज़ के अन्तर्गत एक रोचक पुस्तक


भारत की राजनीति में इस समय सांप्रदायिकता ने बड़ी तेजी से अपने पैर पसारनेशुरू किए। हिन्दू-मुसलमानों के सामाजिक जीवन में उसका प्रभाव पड़ने लगा। महाराष्ट्र में लोकमान्य तिलक की अगुवाई में हिन्दू राष्ट्रीय आंदोलन काजन्म हुआ। शिवाजी उत्सव, गणपति पूजा आदि को मुद्दा बनाकर हिन्दूवादी चेतना को जगाया गया। गोरक्षिणी सभा का भी काम शुरू हुआ। उन्हीं दिनों मुसलमानोंमें धर्म के नाम पर गो वध करना और हिन्दुओं में धर्म की रक्षा के लिए गाय को बचाना, झगड़े का कारण बन गया। इस कारण गाय को मारने और उसे बचाने केसवाल पर दोनों धर्मों के बीच खून-खराबा होने लगा, जिससे काफी लोगों की जानें गईं। लेकिन रवीन्द्रनाथ ने उम्मीद नहीं छोड़ी थी। उन्होंने कहा था किइन घटनाओं से खासकर हिन्दुओं के सभी वर्गों के बीच आपस में एकजुटता बढ़ेगी।

पिछली सदी के आखिरी दशक में बंगीय साहित्य परिषद की शुरूआत हुई। उसी सालरवीन्द्रनाथ और कवि नवीनचंद्र सेन सहकारी सभापति बनाए गए। इसी समय उन्होंने देश के लोक साहित्य को इकट्ठा करने और उस पर कुछ खोज कार्य करनेके लिए पढ़े - लिखे लोगों से निवेदन किया। उन्होंने इसे लेकर ''साधना'' पत्रिका में कई लेख लिखे। इसी समय वे खुद भी बांग्ला लोकोक्ति तथा लोकगीतसंग्रह करने में जुट गए। चैतन्य लाइब्रेरी में ''महिलाओं की लोक कविताएं'' नाम से एक लेख पढ़कर उन्होंने पढ़े-लिखे लोगों का ध्यान इस ओर खींचा। लोकसाहित्य की खूबी और उसकी सहजता को उन्होंने लोगों के सामने उजागर किया।

जमींदारी की देखभाल और कलकला आते-जाते रहने के कारण रवीन्द्रनाथ अपनी थकान दूर करनेके लिए शांतिनिकेतन के अपने दो मंजिले मकान में रहने चले गए। वहां कुछ दिन आराम करने के बाद वे कलकत्ता लौटे। उसके बाद वे ''साधना'' पत्रिका का कामदेखने लगे। उसके अलावा उनका लेखन भी चलता रहा। ''साधना'' में उन्होंने काफी कहानियां और लेख लिखे। ''पंचभूत की डायरी'' भी लिखी। जमींदारी कीदेखभाल के साथ ही अपना व्यवसाय भी उन्होंने शुरू किया। जूट की खेती, गन्ना पेरने के लिए कोल्हू लगाने, भूसे की खरीद-फरोख्त आदि काम भी वे करने लगे।इसी बीच ''चित्रा'' कविता संग्रह की कई बेहतरीन कविताएं उन्होंने लिखीं। ''उर्वशी'' ''विजयिनी'', ''स्वर्ग हड़ते विदाय'' (स्वर्ग से विदा),''सिंधुपारे'' (सिंधु पार में), कविताएं इन्हीं दिनों लिखी गईं। इसके अलावा उन्होंने अपनी कहानियों में जिस तरह आम लोगों के बारे में लिखा है,''चैताली'' नामक कविता संग्रह में भी वैसा ही मिलता है।

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