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रवि कहानी
रवि कहानी
प्रकाशक :
नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया |
प्रकाशित वर्ष : 2005 |
पृष्ठ :85
मुखपृष्ठ :
पेपरबैक
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पुस्तक क्रमांक : 474
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आईएसबीएन :81-237-3061-6 |
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4 पाठकों को प्रिय
456 पाठक हैं
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नेशनल बुक ट्रस्ट की सतत् शिक्षा पुस्तकमाला सीरीज़ के अन्तर्गत एक रोचक पुस्तक
द्वारकानाथ के बड़े बेटे देवेन्द्रनाथ थे। अपनी जवानी भोग-विलास में बिताने पर भी बाद मेंउनका मन धर्म-दर्शन की ओर मुड़ गया। इसीलिए उन्हें लोग महर्षि कहते हैं। उन्होंने अपने लंबे जीवन में लोगों की भलाई के लिए काफी कुछ किया।ब्राह्मधर्म का प्रचार और प्रसार भी उन्हीं के हाथों हुआ। वे ही उसके सब कुछ थे।
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उन्होंने ''तत्वबोधिनी'' नाम से एक पत्रिका निकाली थी। समाज सुधारक होने के अलावाबांग्ला साहित्य में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। वे बहुत सुंदर बांग्ला गद्य लिखते थे। उनकी बढ़िया भाषा के कारण ही उनकी खुद की लिखीजीवनी बार-बार पढ़ी जाने लायक है। वे सिर्फ ब्राह्म समाज के नेता ही नहीं थे, हिंदू समाज के भी नेता थे। काफी लोग उन्हें ''महर्षि'' के साथ''राजर्षि'' कहना ज्यादा ठीक समझते थे। धर्म चर्चा के साथ-साथ वे समाज और परिवार की परेशानियों का समाधान भी आसानी से कर देते थे। उनकी पत्नी शारदासुंदरी, जो कई संतानों की माता थी, भी गुणवती महिला थी।
उनके बेटों में रवीन्द्रनाथ के अलावा द्विजेन्द्रनाथ, सत्येन्द्रनाथ औरज्योतिरिन्द्रनाथ उस समय के पढ़े-लिखे लोगों में अपनी खास हैसियत रखते थे। उनकी बेटी स्वर्णकुमारी भी उस जमाने की नामी लेखिका थी। इसके अलावा उनकेछोटे भाई गिरीन्द्रनाथ, पोते गगनेन्द्रनाथ और अवनीन्द्रनाथ ने कला जगत में नए युग की शुरूआत की। देवेन्द्रनाथ के एक और पोते बलेन्द्रनाथ भी बांग्लागद्य के जाने-माने लेखक थे। कुल मिलाकर जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी परिवार अपने जमाने में कलकत्ता का सबसे मशहूर परिवार था। साहित्य-संगीत-संस्कृति केअलावा धन-दौलत में भी वह परिवार किसी से पीछे नहीं था। इस परिवार के लोगों ने ही अपनी चाल-ढाल, पठन-पाठन, चिंतन-मनन के जरिए नए जमाने की शुरूआत की।
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