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रवि कहानी

अमिताभ चौधरी

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :85
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 474
आईएसबीएन :81-237-3061-6

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नेशनल बुक ट्रस्ट की सतत् शिक्षा पुस्तकमाला सीरीज़ के अन्तर्गत एक रोचक पुस्तक


इसी दौरान उन्होंने ढेर सारे गीतभी लिखे। ड्रेसड्रेन में पहुंचने के बाद एक दिन वहां जर्मन भाषा में उनकालिखा नाटक ''डाकघर'' खेला गया। वहां से वे चेकोस्लोवाकिया की राजधानीप्राग पहुंचे। प्राग से वियेना, इसके बाद हंगरी के बुडापेस्ट में रवीन्द्रनाथ गए। वहां पर बालातोन झील के उस पार उन्होंने एक पेड़ लगाया।

इतने ज्यादा सफर के कारण रवीन्द्रनाथ बीमार पड़ गए। इसके बावजूद वे युगोस्लावियागए। बेलग्रेड में उनकी जबर्दस्त आवभगत हुई। बेलग्रेड से वे बुलगारिया पहुंचे। वहां की राजधानी सोफिया में भी उनका सम्मान हुआ। सोफिया सेरोमानिया की राजधानी बुखारेस्ट गए। हर जगह उनका स्वागत हुआ। बुखारेस्ट से इस्ताम्बूल, उसके बाद ग्रीस, जहां रवीन्द्रनाथ ने एथेन्स की पुरानी यादगारइमारतों को देखा। आखिरकार वे जहाज से भारत रवाना हुए। विदेश सफर करते हुए रवीन्द्रनाथ बेहद थक चुके थे। रवीन्द्रनाथ, मिस्र के एलेकजेन्ड्रिया भीगए, वहां से कैरो। अजायबघर में रखी ममी और दूसरी शिल्पकलाओं को देखकर उन्होंने प्रभावित होकर लिखा-''इन यादगारों को देखकर मैं मन ही मन सोचताहूं कि यूं तो मनुष्य बाहर से साढ़े तीन हाथ का ही होता है मगर अंदर से वह कितना बड़ा होता है।'' रवीन्द्रनाथ की भेंट मिस्र के बादशाह फहद से हुई।फहद ने विश्वभारती को बड़ी संख्या में अरबी किताबें उपहार में दी।

रवीन्द्रनाथ को भारत लौटते ही, दिल्ली में स्वामी श्रद्धानंद के परलोक सिधारने कादुःखद समाचार मिला। रवीन्द्रनाथ ने देश के लोगों से धीरज रखकर समस्या का कोई हल ढूंढ़ने के लिए कहा। उन्होंने स्वामी श्रद्धानंद पर शांतिनिकेतनमें एक भाषण भी दिया।

कवि के अंदर धीरे-धीरे राजनीति का जोश कमहोता जा रहा था। रवीन्द्रनाथ फिर से अपने लेखन कार्य में पूरी तौर से लग गए। ''नटीर पूजा'' नाटक खेले जाने के बाद रवीन्द्रनाथ ने ''नटराजऋतुरंगशाला'' नाटक लिखा। इसके साथ ''वृक्ष वंदना।'' पेड़ और लताओं पर लिखी उनकी कविताएं बाद में ''वनवाणी'' नामक किताब में शामिल हुई। उन्हीं दिनोंरवीन्द्रनाथ ने नृत्य पर आधारित गीत लिखे। कवि की रचनाओं में जैसे नटराज की कला नजर आने लगी। तभी तो वे यह बात लिख सके-''इस दुनिया के कण-कण मेंनृत्य की छाया, झिलमिलाती, नजर आती।''

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