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रवि कहानी

अमिताभ चौधरी

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :85
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 474
आईएसबीएन :81-237-3061-6

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नेशनल बुक ट्रस्ट की सतत् शिक्षा पुस्तकमाला सीरीज़ के अन्तर्गत एक रोचक पुस्तक


उसी समय लंदन में भारत और ब्रिटेन के संबंधों को लेकर गोलमेज बैठक हुई। रवीन्द्रनाथ ने ''स्पेक्टर''के एक लेख में गांधी जी से निवेदन किया कि वे इस बैठक में जरूर भाग लें। हिन्दू और मुसलमान नेताओं का आपसी विरोध खत्म होने की कोई सूरत नजर नहीं आरही थी। कुछ नेताओं ने रवीन्द्रनाथ से उनके बीच सुलह कराने का अनुरोध किया। लेकिन रवीन्द्रनाथ ने काफी सोच विचारकर तथा उनसे बातें करके यहमहसूस किया कि यह काम उनका नहीं है।

यूरोप और अमरीका का सफर खत्मकरके भारत वापस लौटकर रवीन्द्रनाथ सोवियत रूस के कदमों पर चलकर सामुदायिक भंडारों के जरिए संघबद्ध जीवन की बात सोचने लगे। लेकिन किसी ने भी इसमेंअपनी रुचि नहीं दिखाई। आखिरकार अपना इरादा बदलकर वे गीत लिखने में जुट गए। उन गीतों को लेकर उन्होंने ''नवीन'' नाम से एक लोक नाटक लिखा। रवीन्द्रनाथके सत्तर साल पूरे हो जाने पर उनका धूमधाम से जन्मदिन मनाया गया। उसमें कवि ने कहा, ''मेरा सिर्फ एक ही परिचय है, कि मैं और कुछ नहीं, बस एक कविहूं। मैं दर्शन का जानकार कोई बहुत बड़ा पंडित, गुरू या नेता नहीं हूं, मैं तो विचित्र का दूत हूं।''

रवीन्द्रनाथ घूमने के लिए दार्जिलिंगगए। पूरा देश उस समय उथल-पुथल से गुजर रहा था। हिन्दू-मुसलमानों में विरोध ठना हुआ था। कवि ने उन दिनों ''हिन्दू-मुसलमान'' नामक लेख में लिखा-''जिसदेश में एकमात्र धर्मों का मेल ही अगर लोगों को करीब लाता हो, किसी और बंधन से लोगों के दिल न मिल पाते हो, तो वह देश अभागा नहीं तो और क्या है।जो देश खुद ही धर्म के जरिए अपनों में दरार डालने का काम करे, इससे ज्यादा खतरनाक, बात और क्या हो सकती है।''

शांतिनिकेतन लौटकर विश्वभारतीके लिए धन के जुगाड़ में रवीन्द्रनाथ भोपाल के राजदरबार में पहुंचे। वहां उनकी आवभगत तो खूब हुई, पर धन नहीं मिला। वापस लौटकर एक बुरी खबर पाकररवीन्द्रनाथ विचलित हो गए। मेदिनीपुर के हिजली जेल में राजनैतिक बंदियों पर संतरियों ने गोली चलाकर दो लोगों की हत्या कर दी थी। कलकत्ता की एकजनसभा में रवीन्द्रनाथ ने इस घटना की बेहद निंदा की।

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