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रवि कहानी

अमिताभ चौधरी

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :85
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 474
आईएसबीएन :81-237-3061-6

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नेशनल बुक ट्रस्ट की सतत् शिक्षा पुस्तकमाला सीरीज़ के अन्तर्गत एक रोचक पुस्तक


उसके बाद वे तेहरान से मोटर के जरिए इराक गए रास्ते में अखामनीय दारायूस की बेहिस्तानशिलालिपि देखी। वहां से बगदाद पहुंचे। वहां बादशाह फैजल से भेंट हुई। बगदाद में भी उनका सम्मान हुआ। उसके बाद वे वहां के रेगिस्तान में बंजारोंके तंबुओं में भी गए। बंजारों ने रवीन्द्रनाथ को दावत खिलाई, उन्हें अपना युद्ध नृत्य दिखाया। रवीन्द्रनाथ उनके आवभगत से बहुत खुश हुए। उन्हें काफीपहले लिखी कविता की पंक्ति याद आई-'काश अगर मैं अरब का बंजारा होता।' बगदाद से वे हवाई जहाज से कलकत्ता लौटे।

लौटते ही उन्हें एक बड़ा झटका लगा। रवीन्द्रनाथ के एकमात्र नाती, उनकी सबसे छोटी बेटी मीरा देवी काबेटा, नीतेन्द्रनाथ की जर्मनी में असमय मृत्यु हो गई थी। रवीन्द्रनाथ शोक में डूब गए।

कलकत्ता विश्वविद्यालय ने उन्हीं दिनों उन्हेंरामतनु लाहिड़ी प्रोफेसर के पद पर नियुक्त किया। कवि ने विश्वविद्यालय में कमला व्याख्यान दिया। शांतिनिकेतन में लौटकर वे गद्यछंद में कविता लिखनेलगे। उनकी कविताओं की किताब ''पुनश्च'' नाम से छपी। उसी समय शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय के 57 वें जन्मदिन की सभा का आयोजन हुआ।

रवीन्द्रनाथ ने इस अवसर पर अपनी ''कालेर यात्रा'' (समय का सफर) नामक किताब शरतचंद्र कोभेंट की। उन्होंने लिखा-''समय की रथयात्रा की बाधा दूर करने का महामंत्र तुम्हारी प्रबल लेखनी के जरिए सफल हो। इस आशीर्वाद के साथ तुम्हारी लम्बीउम्र की कामना करता हूं।''

उन्हीं दिनों पुणे के यरवदा जेल मेंकैद गांधी जी अनशन कर रहे थे। अंग्रेज सरकार ने हिन्दुओं और मुसलमानों को दो अलग मतदाता सूची में बांट दिया था। अब सवर्ण और जनजातियों को भी अलग करदिया। गांधी जी ने जेल से इस तरह के विभाजन का विरोध किया। उसी के विरोध में वे यह अनशन कर रहे थे। रवीन्द्रनाथ यह खबर पाकर 26 सितम्बर 1932 कोपुणे रवाना हुए।

उसी दिन खबर आई कि ब्रिटिश सरकार ने गांधी जी काप्रस्ताव मान लिया है। गांधी जी ने अनशन खत्म कर दिया। इस मौके पर रवीन्द्रनाथ जेल में मौजूद थे। उन्होंने गांधी जी को नींबू पानी पिलाकरअनशन तुड़वाया। गांधी जी के कहने पर उन्होंने उनका प्रिय गाना ''जीवन जब जाता है सूख'' गाकर भी सुनाया। कुछ दिन बाद ही 2 अक्टूबर को गांधी जी काजन्मदिन पड़ा।

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