लोगों की राय

विविध >> रवि कहानी

रवि कहानी

अमिताभ चौधरी

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :85
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 474
आईएसबीएन :81-237-3061-6

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

456 पाठक हैं

नेशनल बुक ट्रस्ट की सतत् शिक्षा पुस्तकमाला सीरीज़ के अन्तर्गत एक रोचक पुस्तक


सुभाषचंद्र बोस भी रवीन्द्रनाथ के बहुत करीब थे। जब विलायत से पहली बार सुभाषचंद्रकलकत्ता लौट रहे थे तब उसी जहाज में रवीन्द्रनाथ भी थे। अपने देश की आजादी के लिए उन्हें क्या करना चाहिए, इस विषय पर उनकी रवीन्द्रनाथ से बात भीहुई थी। सुभाषचंद्र बोस को जब भी जरूरत पड़ती वे रवीन्द्रनाथ से सलाह लेने आ जाते। वे शांतिनिकेतन कई बार गए थे। एक बार रवीन्द्रनाथ ने भी उनकास्वागत शांतिनिकेतन में किया था। देश के भविष्य की योजनाओं पर रवीन्द्रनाथ से सलाह करने नेहरू जी और सुभाष चंद्र बोस शांतिनिकेतन आते-जाते रहते थे।सुभाषचंद्र बोस को दूसरी बार कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने के लिए रवीन्द्रनाथ ने अपनी ओर से काफी कोशिश की थी। पट्टामि सीतारमैया को हराकरसुभाषचंद्र बोस जब दूसरी बार कांग्रेस के सभापति बने तब दुर्भाग्य से कांग्रेस कार्य समिति के अधिकतर सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया। इससेकांग्रेस के कामकाज पर असर पड़ा। आखिरकार सुभाषचंद्र बोस ने अध्यक्ष पद छोड़ दिया। इस घटना से रवीन्द्रनाथ को बहुत दु:ख पहुंचा। उन्होंने जनता कीओर से सुभाषचंद्र बोस को सम्मानित करके उन्हें ''देशनायक'' की उपाधि दी। उन्होंने अपना ''ताश का देश'' नाटक भी सुभाषचंद्र बोस को भेंट किया था।

रवीन्द्रनाथ को जब खबर मिली थी कि बंगाल सरकार ने 1100 राजनीतिक बंदियों को रिहा करदिया है, तब उन्हें बहुत खुशी हुई। लेकिन उन्हीं दिनों उनके वैज्ञानिक दोस्त जगदीशचंद्र बोस की मृत्यु की खबर पाकर वे बहुत दु:खी हुए। उसके कुछदिन बाद ही उन्हें शरतचंद्र चटर्जी के परलोक सिधारने की खबर मिली। उनका दु:ख और बढ़ गया। उन्हीं दिनों सन् 1938 में शांतिनिकेतन में नेहरू जी केहाथों ''हिन्दी भवन'' और हिन्दी विभाग की शुरूआत हुई।

इसके बाद वे कलिम्पोंग गए। वहां से मैत्रेयी देवी के मेहमान होकर मंग्पू पहुंचे। उसबार नए साल के दिन वे पूरी दुनिया में बढ़ते जा रहे तनावों से बहुत चिंतित थे। पूरे यूरोप में दूसरे महायुद्ध की तैयारी चल रही थी। शांतिनिकेतन सेउन्होंने डा. अमियचंद्र चक्रवर्ती को एक चिट्ठी में लिखा - ''मेरे जीवन के अंतिम दिनों में मनुष्य का इतिहास किस बुरी तरह महामारी की चपेट में आकरउसका शिकार बनता जा रहा है, इसे देखना बड़ा कठिन है। एक तरफ राक्षसी होड़ लगी है तो दूसरी तरफ कायरता में भी कोई पीछे नहीं है। ऐसी कोई बड़ी अदालतनहीं रही जहां पहुंचकर मानवता की दुहाई दी जा सके।''

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book