मनोरंजक कथाएँ >> करामाती बिल्ला करामाती बिल्लाए.एच.डब्यू. सावन
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बच्चों के लिए रोचक एवं मनोरंजक कहानियाँ.....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
करामाती बिल्ला
बहुत पुरानी बात है—एक चक्कीवाला लंबी बीमारी के बाद मर गया।
वसीयत
में उसने बड़े लड़के के नाम छोड़ी चक्की, मंझले बेटे के नाम आया एक
गधा...और एक बिल्ला पड़ा बेचारे छोटे के पल्ले।
अब बड़कू तो चलाने लगा चक्की, मंझला अपने गधे के साथ सामान ढोने रोजी कमाने निकल पड़ा...और बेचारा छोटू एक पत्थर पर बैठ गया सिर पकड़कर...लगा अपने भाग्य को कोसने, ‘‘एक बिल्ला ! क्या करूं इस बेकार के बिल्ले का ?’’
बिल्ला उसका दुखड़ा सुन रहा था, वह बोला, ‘‘चिंता मत करो, छोटे मालिक। छोड़ो सिर पीटना...यह मत सोचो कि मैं उस टूटी चक्की मरियल गधे से कुछ कम हूं। बस, मुझे ला दो एक नवाबी लबादा, एक हैट जिसमें लगा हो पंख, एक थैला और एक जोड़ी जूते, और फिर देखो मेरा कमाल !’’
छोटे को कोई आश्चर्य नहीं हुआ। उस जमाने में बिल्लियां मनुष्यों की भांति बोला करती थीं। उसने बिल्ले को वह सब वस्तुएं ला दीं। अब सजा-धजा बिल्ला चल पड़ा, आत्मविश्वास से लबालब, यह कहता हुआ, ‘‘छोटे मालिक ! ऐसी रोनी सूरत मत बनाओ। बस देखते जाओ मैं क्या करता हूं।
टाटा-बाई-बाई-म्याऊं...म्याऊं !’’
बिल्ला निकला बड़ा तेज। उसने एक झपट्टे में धर लिया एक खरगोश, और उसे थैले में डाल राजा के किले में पहुंच गया। कुछ ही देर पश्चात वह राजा के सामने पेश हुआ। बड़े अदब से हैट उतारकर, झुककर बोला, ‘‘महाराज ! काराबास के सरदार ने यह मोटा-ताजा खरगोश आपकी सेवा में भेजा है।’’
‘‘अहा !’’ राजा बोला, ‘‘बहुत धन्यवाद।’’
‘‘कल फिर सेवा में हाजिर हूंगा,’’ कहकर बिल्ला चला गया। और सचमुच दूसरे दिन बिल्ला थैले में दो तीतर लेकर पेश हुआ,’’ महाराज, काराबास के वीर सरदार की ओर से एक और भेंट !’’ उसने घोषणा की।
अब बड़कू तो चलाने लगा चक्की, मंझला अपने गधे के साथ सामान ढोने रोजी कमाने निकल पड़ा...और बेचारा छोटू एक पत्थर पर बैठ गया सिर पकड़कर...लगा अपने भाग्य को कोसने, ‘‘एक बिल्ला ! क्या करूं इस बेकार के बिल्ले का ?’’
बिल्ला उसका दुखड़ा सुन रहा था, वह बोला, ‘‘चिंता मत करो, छोटे मालिक। छोड़ो सिर पीटना...यह मत सोचो कि मैं उस टूटी चक्की मरियल गधे से कुछ कम हूं। बस, मुझे ला दो एक नवाबी लबादा, एक हैट जिसमें लगा हो पंख, एक थैला और एक जोड़ी जूते, और फिर देखो मेरा कमाल !’’
छोटे को कोई आश्चर्य नहीं हुआ। उस जमाने में बिल्लियां मनुष्यों की भांति बोला करती थीं। उसने बिल्ले को वह सब वस्तुएं ला दीं। अब सजा-धजा बिल्ला चल पड़ा, आत्मविश्वास से लबालब, यह कहता हुआ, ‘‘छोटे मालिक ! ऐसी रोनी सूरत मत बनाओ। बस देखते जाओ मैं क्या करता हूं।
टाटा-बाई-बाई-म्याऊं...म्याऊं !’’
बिल्ला निकला बड़ा तेज। उसने एक झपट्टे में धर लिया एक खरगोश, और उसे थैले में डाल राजा के किले में पहुंच गया। कुछ ही देर पश्चात वह राजा के सामने पेश हुआ। बड़े अदब से हैट उतारकर, झुककर बोला, ‘‘महाराज ! काराबास के सरदार ने यह मोटा-ताजा खरगोश आपकी सेवा में भेजा है।’’
‘‘अहा !’’ राजा बोला, ‘‘बहुत धन्यवाद।’’
‘‘कल फिर सेवा में हाजिर हूंगा,’’ कहकर बिल्ला चला गया। और सचमुच दूसरे दिन बिल्ला थैले में दो तीतर लेकर पेश हुआ,’’ महाराज, काराबास के वीर सरदार की ओर से एक और भेंट !’’ उसने घोषणा की।
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