लोगों की राय

मनोरंजक कथाएँ >> अलादीन औऱ जादुई चिराग

अलादीन औऱ जादुई चिराग

ए.एच.डब्यू. सावन

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4779
आईएसबीएन :81-310-0200-4

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

292 पाठक हैं

अलादीन की रोचक एवं मनोरंजक कहानी का वर्णन


“शाबास बेटा!” सौदागर खुशी से सुरंग के मुहाने पर खड़ा चिल्लाने लगा--"शाबास...लाओ अब वह चिराग मुझे दे दो।”
“अरे चचा जान! पहले मुझे बाहर तो निकालिये। यहाँ पर मेरा दम घुट रहा है।”
“अरे पहले मुझे चिराग तो दे दो।” सौदागर ने बेचैन होकर कहा-“बाहर तो मैं तुम्हें निकाल ही लूंगा।"
चिराग के लिये अपने चचा को इस प्रकार अड़ते देखकर अलादीन को सौदागर पर शक-सा होने लगा। वह सोचने लगा कि हो-न-हो इस चिराग में जरूर कोई रहस्य छिपा है-वरना उसके चचा पहले उसे बाहर निकालते और बाद में चिराम की बाबत बात करते।
अलादीन ने फिर से सौदागर से अपने आपको बाहर निकालने के लिये। कहा, लेकिन सौदागर ने उसे फिर वही रटारटाया जवाब दे दिया कि पहले तुम मुझे चिराग दो, फिर मैं तुम्हें बाहर निकालूंगा।”
अब तो अलादीन को पक्का यकीन हो चला कि हो-न-हो चिराग में जरूर कोई भेद है। उसने फैसला कर लिया कि वह किसी भी हालत में अपने चचा को चिराग पहले नहीं देगा। वह दो टूक स्वर में बोला-“चचा जान! मैं आपको चिराग तभी दूंगा, जब आप मुझे बाहर निकालेंगे। वरना आपको यह चिराग कभी नहीं मिलेगा।”
उसका दो टूक जवाब सुनकर सौदागर के तन-बदन में आग लग गयी। गुस्से में उसकी आंखें लाल हो गयीं तथा सारा शरीर कांपने लगा। दांतों को। पीसता हुआ वह बोला-“अरे मूर्ख, चिराग मुझे दे दे, वरना इस सुरंग को ही तेरी कब्र बना दूंगा।”
"कभी नहीं।” अलादीन ने सपाट-सा उत्तर दिया-"जब तक आप मुझे बाहर नहीं निकालेंगे, यह चिराग आपको नहीं मिलेगा।”
अब तो बेबसी के मारे सौदागर बुरी तरह झुंझला-सा गया- “अरे नामुराद लड़के! जिद मत कर वरना बेमौत मारा जायेगा।” वह दहाड़ा।
“जिद तो आप कर रहे हैं, चचा जान। लगता है आपको मेरे से ज्यादा यह चिराग प्यारा है।”
“मूर्ख लड़के! मैं तेरा चंचा नहीं हूँ। अगर जान बचाना चाहता है, तो चिराग मेरे हवाले कर दे, वरना...।”
“हरगिज नहीं।” अलादीन का लहजा और मजबूत हो गया।
"बस...बहुत हो गया। अब तू हमेशा के लिये इसी सुरंग में दफन हो जायेगा।”
इतना कहकर सौदागरं कुछ बुदबुदाने लगा और धीरे-धीरें सुरंग बंद होती चली गयी।
यह देखकर अलादीन बहुत बुरी तरह घबरा गया। वह ‘चचा जान... चचा जान...!' आवाजें देता रहा लेकिन सौदागर ने उसकी एक न सुनी। धीरे-धीरे सुरंग का दरवाजा पूरी तरह बंद हो गया।
अलादीन सचमुच में सुरंग में दफन हो चुका था। उसको अब कोई चारा नजर नहीं आ रहा था, कि अब सुरंग से बाहर किस तरह निकला जाये। सुरंग में पूरी तरह अंधेरा था, केवल वह अंगूठी ही रोशनी का माध्यम बनी हुई थी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book