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मनोरंजक कथाएँ >> अलादीन औऱ जादुई चिराग

अलादीन औऱ जादुई चिराग

ए.एच.डब्यू. सावन

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4779
आईएसबीएन :81-310-0200-4

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अलादीन की रोचक एवं मनोरंजक कहानी का वर्णन


उसकी दर्जी की दुकान तो बाप के मरते ही बंद हो गयी थी। अब तो उसकी माँ दूसरों के घरों में झाडू-पौंछा करके अपना तथा अलादीन का पेट पाल रही थी। लेकिन अलादीन को इसकी भी परवाह न थी कि किस तरह उसकी माँ उसे पाल रही है? अपनी माँ की कमाई पर सिंकी रोटियां वह बेशमी से खाता था।
मुस्तफा तो मर गया, लेकिन अलादीन के भविष्य की चिन्ता का रोग उसकी पत्नी को लग गया। अब वह बेटे की आगे की जिन्दगी को सोचकर मन-ही-मन कुढ़ती रहती थी। वह सोचा करती थी-'न जाने अल्लाह ने उसके बेटे के नसीब में क्या लिखा है?'
उधर अब खुदा का खेल शुरू हुआ।
यह उस दिन की बात है जिस दिन अलादीन अपने साथियों के साथ कंचे खेल रहा था। तभी न जाने किस बात पर अलादीन का उनके साथ झगड़ा हो गया।
वहीं कुछ दूर खड़ा एक आदमी अलादीन का उसके साथियों से हुआ झगड़ा देख रहा था और साथ ही अलादीन की हरकतों पर अपनी पैनी नजरें दौड़ा रहा था।
अलादीन उन्हें कुछ कहने ही जा रहा था कि तभी वह आदमी उसके पास आया। देखने में वह कोई सौदागर जान पड़ता था। उसके जिस्म पर कीमती कपड़े थे। गले में सच्चे मोतियों की माला थी। उसकी रेशमी पगड़ी। पर सितारे जड़े हुए थे। उसके एक हाथ में रेशमी थैली थी जिसमें यकीनन अशर्फियाँ भरी हुई थीं। उसके ऊँट की खाल के जूतों पर भी सोने-चाँदी के तारों की बेहद खूबसूरत कढ़ाई की हुई थी। उसे देखने से ही मालूम होता था। कि वह एक अमीर आदमी है।
उसने अलादीन के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा-“बेटा, किसी ने मुझे बताया है कि तुम मुस्तफा दर्जी के बेटे अलादीन हो?"
अलादीन उसके हाथ रखने से चौंक गया और एकदम से उसकी ओर देखा। उसके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर वह थोड़ा घबराकर बोला-“जी... .जी...जी हाँ...मैं मुस्तफा दर्जी का बेटा अलादीन ही हूँ।"
“अलादीन...मेरे बेटे!” उस व्यक्ति ने अलादीन को अपने सीने से लगा लिया-“मेरे लाल! मेरे जिगर के टुकड़े...।”
“अरे...अरे...जनाब! आप हैं कौन...? छोड़िये मुझे...।” अलादीन एकदम हड़बड़ा गया और उसने खुद को छुड़ाने की कोशिश की।
उस आदमी ने उसे छोड़ दिया और बोला-“कितने अफ़सोस की बात है बेटे, कि मेरा खून होने के बाद भी तुम मुझे नहीं जानते-पहचानते। मगर इसमें तुम्हारा कोई कसूर नहीं है। मेरे बेटे! कसूर तो सारा मेरा है, मैं न तो मुस्तफा भाई से मुंहजोरी करता न वो मुझे घर से निकालते। बेटे, मैं तुम्हारा चचा हूँ। तुम्हारे बाप मुस्तफा का छोटा भाई।”
“छ...छोटा भाई!” अलादीन हैरानी से बोला-“अब्बू के छोटे भाई मेरे चचा?"
"हाँ बेटे, हाँ तुम्हारा बदनसीब चचा।”
"म...मगर अब्बू ने तो कभी भी आपके बारे में मेरे से कोई जिक्र तक नहीं किया।”
"कैसे करते मेरे बच्चे! तुम्हें कैसे बताते कि इस दुनिया में उनका एक नालायक भाई भी है? ज़िक्र तो मेरे बेटे! अच्छे लोगों को होता है, मुझ जैसे अलादीन और जादुई चिराग नालायकों को नहीं। खैर...छोड़ो। अब तुम यह बताओ कि मेरे भाई मुस्तफा कहाँ हैं? मैं उनसे मिलकर माफी माँगना चाहता हूँ और बाकी का जीवन तुम लोगों के साथ गुज़ारना चाहता हूँ।”
“अब तो यह मुमकिन नहीं है चचा जान!” अलादीन उदास होकर बोला।
“क्यों बेटे, ऐसा क्यों मुमकिन नहीं हो सकता?” उस आदमी ने चौंककर पूछा।
“क्योंकि अब्बू अब इस दुनिया में नहीं रहे। इसलिये वो भला आपको किस प्रकार माफ कर सकते हैं?"
“ये तुम क्या कह रहे हो?” सौदागर ने ऐसा जताया जैसे उसके सिर पर बम फूटा हो–“क्या मेरा भाई इस दुनिया में नहीं रहा? हाय रे! मेरी तो किस्मत ही फूटी है। हिम्मत जुटाकर आज मैं अपने भाई से माफी मांगने आया, तो वह इस दुनिया में नहीं रहा...या अल्लाह! ये तेरा कैसा इंसाफ है?” इतना कहकर वह सड़क पर खड़ा होकर जोर-जोर से दहाड़े मारकर रोने लगा।

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