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अमर चित्र कथा हिन्दी >> आम्रपाली और उपगुप्त

आम्रपाली और उपगुप्त

अनन्त पई

प्रकाशक : इंडिया बुक हाउस प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :31
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4789
आईएसबीएन :81-7508-479-0

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आम्रपाली की कथा महापरिनिब्बाण सूत्र में आती है।

Amrapali Aur Upgupat A Hindi Book by Anant Pai आम्रपाली और उपगुप्त - अनन्त पई

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

आम्रपाली और उपगुप्त

भगवान् बुद्ध का मत था कि एक व्यक्ति की मुक्ति की अपेक्षा जन-जन का उद्धार अधिक महत्त्वपूर्ण है। सर्व-साधारण के हित के लिए ही उन्होंने संघ की स्थापना की। संघ को वास्तव में शोधकों का संगठन कह सकते हैं।

शुरू में संघ में स्त्रियों को शामिल नहीं किया जाता था। किंतु प्रिय शिष्य आनंद द्वारा स्त्रियों की पैरवी करने पर बुद्ध ने उन्हें संघ में स्थान देने की छूट दे दी। आम्रपाली तथा वासवदत्ता ऐसी दो स्त्रियां हैं जिन्होंने भोग और ऐश्वर्य का त्याग करके संन्यास लिया।

आम्रपाली की कथा महापरिनिब्बाण सूत्र में आती है। आम्रपाली ने अपना उद्यान भगवान् बुद्ध को भेंट किया था। गुप्तकाल में जब फाहियान भारत आया था तब भी वह उद्यान मौजूद था।

उपगुप्त बुद्ध के शिष्य थे। उनका मत था कि अहिंसा का तात्पर्य इतना ही नहीं है कि हिंसा को त्याग दो अपितु मानव का हित करना भी आवश्यक है। वासवदत्ता को जब समाज ने ठुकरा दिया और उसका कोई सहारा नहीं रहा तब उपगुप्त उसे अपने आश्रम में ले आये। दया और करुणा को वे सबसे बड़ा गुण मानते थे।
ये हि कथाएँ अमर चित्र कथा में प्रस्तुत हैं किंतु उनके बीभत्स भाग हमने निकाल दिये हैं।

 

प्राचीन वैशाली पर शासन करने वाले लिच्छवी सौंदर्य के उपासक थे। बड़े सुंदर-सुंदर उद्यान उन्होंने लगाये थे।
उद्यानों की देखभाल के लिए श्रेष्ठतम माली उन्होंने रखे थे।
एक दिन—

कौन है आम के पेड़ के नीचे ? कोई सुंदरी ! ऐसा अनुपम रूप !
वह उसके पास गया
आप कौन हैं, देवि ? क्या नाम है आपका ? कहाँ से आयी हैं ? कहाँ जायेंगी ?
मैं अनाम हूँ। मैं कहीं से नहीं आयी और जाने को कोई ठौर नहीं।


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