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तुलसीदास
तुलसीदास
प्रकाशक :
इंडिया बुक हाउस |
प्रकाशित वर्ष : 2006 |
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ :
पेपरबैक
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पुस्तक क्रमांक : 4798
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आईएसबीएन :81-7508-499-5 |
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तुलसीदास के बारे में प्रचलित दंत कथाएँ......
Tuksidas A Hindi Book by Anant Pai OK
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
तुलसीदास
तुलसी की महान रचना जो भारतीय जीवन का संरक्षक है, युग युगों से दुःखी जन मानस के लिए प्रेरणा और शक्ति का स्रोत रहा है एवं देश की राष्ट्रीय एकता के सन्दर्भ में जबर्दस्त प्रभाव रहा है। इसकी रचना उस समय हुई थी, जबकि भारत एक विशाल क्षेत्र मुगलों के अधीन था।
हिन्दुओं में भी शैव औऱ वैष्णव तथा राम औऱ कृष्ण के भक्तों में निरन्तर संघर्ष छिड़ा रहता था। उन दिनों शक्ति और यौगिक धारा भी प्रचलित थी, जो भारतीय जन-जीवन से सर्वथा कटी हुई थी। ऐसे में तुलसीदास ने इन तमाम धाराओं को एकता के सूत्र में पिरोने का प्रयत्न किया।
तुलसीदास ने अपने राम के मुँह से कहलाया, ‘‘शिव द्रोही मम दास कहावा सो नर सपनेहुँ मोहि न भावा।’’उन्होंने केवल राम की मूर्ति के आगे सिर नहीं झुकाया, कृष्ण के आगे भी नतशिर हुए। उन्होंने ‘कृष्ण गीतावली’ की भी रचना की। उनकी रचनाओं और शिक्षाओं में गार्हस्थ्य धर्म की महत्ता् का प्रतिपादन हुआ और उन्होंने लोगों को तान्त्रिक विचारधारा के प्रभाव से विमुख किया।
तुलसीदास का जन्म उत्तर प्रदेश के राजापुर गाँव के एक गरीब परिवार में हुआ। जन्म के थोड़े दिनों बाद ही वह अनाथ हो गए। जब वह कुल सात साल के थे, उनकी धर्म-माता का भी देहान्त हो गया। विवाह के बाद अपनी पत्नी रत्ना के प्रति वे अतिशय अनुरक्त हो उठे ।
एक दिन घर लौट कर रत्ना को घर न पाकर, वह व्याकुल हो उठे और वह घनी-अन्धेरी रात में आँधी-पानी से जूझते हुए अपने ससुराल पहुंच गये।
लेकिन रत्ना ने उन्हें झिड़कते हुए कहा, अस्थिचर्म मय देह मम तामे ऐसी प्रीति। ऐसी जो रघुनाथ मँह होती न तो भवभीति। यहीं से उनके जीवन की दिशा बदल गयी।
इस पुस्तक में वर्णित कथा प्रचलित दंतकथाओं पर आधारित है।
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