अमर चित्र कथा हिन्दी >> सुभाषचन्द्र बोस सुभाषचन्द्र बोसअनन्त पई
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भारत के अमर क्रान्तिकारियों में एक अग्रणी नाम आता है हमारे नेता सुभाषचन्द्र बोस का उन्हीं के विषय में इस पुस्तक में सचित्र वर्णन हुआ है.....
Subhash Chandra Bose A Hindi Book by Anant Pai
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
सुभाष चन्द्र बोस
भारत की आजादी के आन्दोलन में अनेक नेता उभरे और देश पर छा गये। उन्होंने अपना सबकुछ देश की आजादी के लिए दाँव पर लगा दिया।
नेताजी सुभाष चन्द्रबोस का कर्मठ और साहसी व्यक्तित्व उस युग में चमका, जिसमें गाँधीजी के शांतिपूर्ण और अहिंसक असहयोग के मार्ग को अपनाया गया था। परन्तु बंगाल ने अपना विरोध हिंसा से प्रकट करने की राह पकड़ी थी। सुभाष चन्द्र बोस उसी बंगाल के सपूत थे।
भारत में राष्ट्रीय जागरण की लहर दौड़ रही थी। नेताजी ने उसके लिए विदेशी सहायता और समर्थन का आयोजन किया कठिनाइयों के पहाड़ उनके रास्ते में खड़े थे। परिस्थियाँ बदल रही थीं और उनके वश में नहीं थीं, अतः संघर्ष में विजय उन्हें नहीं मिली। शायद उन्होंने अपनी जान भी गवाँई, परन्तु जो ध्येय उन्होंने सामने रखा था। वह सिध्द होकर रहा।
नेताजी ने आजाद हिन्द फौज के नाम अपने अंतिम दैनिक संन्देश में बड़े प्रभावशाली ढंग से यही बात कही थी। ‘‘भारतीयों की भावी पीढ़ियाँ, जो आप लोगों के महान बलिदान के फलस्वरूप गुलामों के रूप में नहीं, बल्कि आजाद लोगों के रूप में जन्म लेंगी। आप लोगों के नाम को दुआएँ देंगी। और गर्व के साथ संसार में घोषणा करेंगी। कि अन्तिम सफलता और गौरव के मार्ग को प्रसस्त करने वाले आप ही लोग उनके पूर्वज थे। जो मणिपुर आसाम और बर्मा की लड़ाई में लड़े और हार गये थे।’’
‘जय हिन्द’ के उनके जोशीले नारे ने सारे भारत को एकता के सूत्र में आबध्द किया था। वह नारा आज भी राष्ट्रीय महत्व के अवसरों पर हमें याद दिलाता रहता है कि हम एक हैं।
नेताजी सुभाष चन्द्रबोस का कर्मठ और साहसी व्यक्तित्व उस युग में चमका, जिसमें गाँधीजी के शांतिपूर्ण और अहिंसक असहयोग के मार्ग को अपनाया गया था। परन्तु बंगाल ने अपना विरोध हिंसा से प्रकट करने की राह पकड़ी थी। सुभाष चन्द्र बोस उसी बंगाल के सपूत थे।
भारत में राष्ट्रीय जागरण की लहर दौड़ रही थी। नेताजी ने उसके लिए विदेशी सहायता और समर्थन का आयोजन किया कठिनाइयों के पहाड़ उनके रास्ते में खड़े थे। परिस्थियाँ बदल रही थीं और उनके वश में नहीं थीं, अतः संघर्ष में विजय उन्हें नहीं मिली। शायद उन्होंने अपनी जान भी गवाँई, परन्तु जो ध्येय उन्होंने सामने रखा था। वह सिध्द होकर रहा।
नेताजी ने आजाद हिन्द फौज के नाम अपने अंतिम दैनिक संन्देश में बड़े प्रभावशाली ढंग से यही बात कही थी। ‘‘भारतीयों की भावी पीढ़ियाँ, जो आप लोगों के महान बलिदान के फलस्वरूप गुलामों के रूप में नहीं, बल्कि आजाद लोगों के रूप में जन्म लेंगी। आप लोगों के नाम को दुआएँ देंगी। और गर्व के साथ संसार में घोषणा करेंगी। कि अन्तिम सफलता और गौरव के मार्ग को प्रसस्त करने वाले आप ही लोग उनके पूर्वज थे। जो मणिपुर आसाम और बर्मा की लड़ाई में लड़े और हार गये थे।’’
‘जय हिन्द’ के उनके जोशीले नारे ने सारे भारत को एकता के सूत्र में आबध्द किया था। वह नारा आज भी राष्ट्रीय महत्व के अवसरों पर हमें याद दिलाता रहता है कि हम एक हैं।
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