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योग >> योग साधना एवं योग चिकित्सा रहस्य

योग साधना एवं योग चिकित्सा रहस्य

स्वामी रामदेवजी

प्रकाशक : दिव्य प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :174
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4832
आईएसबीएन :81-7525-497-1

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योग एक पूर्ण विज्ञान है, एक पूर्ण जीवन-शैली है एवं एक पूर्ण अध्यात्म-विद्या है। योग की लोकप्रियता का रहस्य यह है कि यह लिंग, जाति, वर्ग, सम्प्रदाय, क्षेत्र एवं भाषा-भेद की संकीर्णताओं से कभी आबद्ध नहीं रहा है। साधक, चिन्तक, वैरागी, अभ्यासी, ब्रह्मचारी, गृहस्थ कोई भी इसका सान्निध्य प्राप्त कर लाभान्वित हो सकता है। व्यक्ति के उत्थान एवं निर्माण में ही नहीं, बल्कि परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व के चहुँमुखी विकास में भी यह उपयोगी सिद्ध हुआ है।

Yog Sadhana Evam Yog Chikitsa Rahasya-A Hindi Book by Swami Ramdev

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

समर्पण
त्वदीयं तुभ्यमेव

क्रान्ति के अग्रदूत, महान् स्वतन्त्रता-सेनानी, जिनका सर्वस्व देश, धर्म एवं संस्कृति के उत्कर्ष के लिए पूर्णत: अर्पित था, जिन्होंने अंग्रेजी दासता से भारतमाता की विमुक्ति के निमित्त, स्वतन्त्रता की उद्घोषिका ‘विश्वज्ञान’ मासिक पत्रिका के संचालन- प्रकाशन द्वारा वीर क्रान्तिकारियों एवं समग्र युवा-वर्ग को राष्ट्रहित के लिए आत्मबलिदान करने को प्रेरक सन्देश दिया, लार्ड हर्डिंग बमकाण्ड के मुख्य अभियुक्त रासबिहारी बोस जैसे वीर क्रान्तिकारी पुरुष के संकट के दिनों जिनका आश्रय लिया, जिनका सम्पूर्ण तपोमय जीवन भगवत्-अराधना, योग-साधना एवं राष्ट्रदेव की सेवा में निवेदित था, उनके द्वार सन् 1932 ई. में संस्थापित हरिद्वार के कृपालुबाग आश्रम में स्थित ‘‘दिव्य योग मन्दिर’’ के मुख्य भूमण्डलीय जनता के आरोग्य-लाभ, अध्यात्म-ज्ञान एवं योग-प्रशिक्षण आदि सेवा कार्यों को सम्पन्न करते हुए मैं इस तुच्छ योगकृति को उन्हीं ब्रह्मलीन महर्षि पूज्यवाद राष्ट्रसन्त श्रद्धेय स्वामी श्रीकृपालुदेवजी महाराज की पावन दिव्य स्मृति में श्रद्धा-भक्ति-सहित समर्पित करता हूँ।

 

विनयावनत
स्वामी रामदेव

 

प्रकाशकीय

 

पूज्यपाद स्वामी रामदेवजी के इस महान्, अनमोल एवं लोकप्रिय पुस्तक-रत्न ‘योग-साधना एवं योग-चिकित्सा-रहस्य’ का अति अल्प समय में पच्चीसवें संस्करण योगसाधक एवं साधिकाओं के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हमें अतीत हर्षानुभूति हो रही है। सन् 2002 ई. में इस कृति का प्रथम संस्करण प्रकाशित हुआ था। उस समय अनुमान लगाना कठिन था कि अगामी दो वर्षों में ही लाखों लोग इसको सहर्ष स्वीकार कर हमारे उत्साह एवं सेवा कार्यों में सहभागी बनेंगे अब और भी उच्च कोटि के कागज पर बहुरंगी छपाई के साथ यह संस्करण निकाला जा रहा है। फोटो भी दोबारा खिंचवाकर दिये जा रहे हैं, जो पूर्व संस्करणों के चित्रों से अधिक स्पष्ट एवं आकर्षक हैं। इतने परिवर्तन संशोधन और मुद्रण-व्यय की वृद्धि के बावजूद पुस्तक के मूल्य पर ध्यान रखा गया है, जिससे अधिकतम लोग इससे लाभान्वित हो सकें।

योग एक पूर्ण विज्ञान है, एक पूर्ण जीवन-शैली है एवं  एक पूर्ण अध्यात्म-विद्या है। योग की लोकप्रियता का रहस्य यह है कि यह लिंग, जाति, वर्ग, सम्प्रदाय, क्षेत्र एवं भाषा-भेद की संकीर्णताओं से कभी आबद्ध नहीं रहा है। साधक, चिन्तक, वैरागी, अभ्यासी, ब्रह्मचारी, गृहस्थ कोई भी इसका सान्निध्य प्राप्त कर लाभान्वित हो सकता है। व्यक्ति के उत्थान एवं निर्माण में ही नहीं, बल्कि परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व के चहुँमुखी विकास में भी यह उपयोगी सिद्ध हुआ है। आधुनिक मानव-समाज जिस तनाव, अशान्ति, आतंकवाद, अभाव एवं अज्ञान का शिकार है, उसका समाधान केवल योग के पास है। योग मनुष्य को सकारात्मक चिन्तन के प्रशस्त पथ पर लाने की एक अद्भुत विद्या है, जिसे करोड़ों वर्ष पूर्व भारत के प्रज्ञावान् ऋषि-मुनियों ने आविष्कृत किया था। महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग के रूप में इसे अनुशासनबद्ध, सम्पादित एवं निष्पादित किया। इसी अष्टांग योग का उपदेश और अभ्यास पूज्य स्वामीजी अपने प्रवचन एवं योग-प्रशिक्षण में करते-कराते हैं। उनका निष्कर्ष है कि स्वस्थ व्यक्ति और सुखी समाज का निर्माण केवल योग की शरण में जाकर ही हो सकता है।

योग केवल कन्दराओं में जीवन जीने वाले वैरागियें, तपस्वियों, एवं योगाभ्यासियों की विद्या नहीं है, बल्कि सामान्य गृहस्थ के लिए भी उसकी अतीव आवश्यकता है। यह कितना आश्चर्य का विषय है कि दो सौ वर्ष पुरानी ऐलोपैथी चिकित्सा-पद्धति में फँसकर हम अपना आर्थिक, शारीरिक एवं मानसिक शोषण कराने को तो सहज में तैयार हो जाते हैं, लेकिन करोड़ों वर्षों से भी पुरानी उस योगविद्या के प्रति उदासीन रहते हैं, अनभिज्ञ रहते हैं, जो एक प्रामाणिक ही नहीं, वरन् निःशुल्क चिकित्सा-पद्धति भी है।

यदि योग सिर्फ एक रहस्यमयी विद्या होती, तो योगिराज कृष्ण युद्धभूमि में इसका उपदेश अर्जुन को क्यों देते ? योगाचार्य स्वामी रामदेवजी ने गहन गुफाओं में दम तोड़ रही इस विद्या को भारतीय जनमानस में स्थापित करके महान् उपकार का कार्य सम्पादित किया है। अत: वे देश के नहीं, अपितु विश्व के करोड़ों लोगों की श्रद्धा एवं आस्था के केन्द्र हैं।

योग एवं आयुर्वेद-सहित प्राचीन अध्यात्म विद्या की शून्य से शिखर तक के आरोहण की यात्रा में सबका जो सहयोग मिला, उससे हम सहज ही उत्साहित और आश्वस्त हैं। आशा हैं, आपके निरन्तर सहयोग, सद्भाव श्रद्धा एवं समर्पण से देव-संस्कृति का अभियान निरन्तर उत्कर्ष की ओर गतिशील होता रहेगा।


पच्चीवें संस्करण पर विशेष :

 

हमें अतीव प्रसन्नता है कि भारतीयों में प्राचीन ऋषि-परम्परा के प्रति गौरव व स्वाभिमान बढ़ता जा रहा है, निश्चित ही भारत-भाग्योदय का समय आ गया है। इसका प्रमाण है विगत मात्र तीन वर्षों में ही करोड़ों लोग योग को अपने जीवन में अपना कर दूसरों को योग मार्ग पर बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

अत्यल्प समय में ही इस ‘योग-साधना एवं योग- चिकित्सा रहस्य’ पुस्तक की बारह भाषाओं में लाखों की संख्या में छपना अपने आप में सुखद अनुभूति एवं संसार की आश्चर्यतम घटना या परमात्मा की लीला ही कही जा सकती है। पुनः प्रबुद्ध पाठकों का आभार एवं धन्यवाद करते हुए कहना चाहूँगा कि सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक जागरण के इस पुनीत अनुष्ठान में हमें आपका प्रेम एवं स्नेह उसी तरह सतत प्राप्त होता रहेगा, ऐसा हमें दृढ़ विश्वास है।


आचार्य बालकृष्ण


 

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