लोगों की राय

विविध >> हमारा हस्तशिल्प

हमारा हस्तशिल्प

एम. वी. नारायण राव

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2002
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 486
आईएसबीएन :81-227-4174-x

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

51 पाठक हैं

आप चाहे? हस्तशिल्प वस्तुयें कहें,? दस्तकारी या घरेलू नक्काशी?- यह सभी मूल रूप से एक ही हैं।

Hamara Hastshilp - A hindi Book by - m. v. narayan rao हमारा हस्तशिल्प - एम. वी. नारायण राव

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

1
हमारी हस्तशिल्प वस्तुओं के विषय में

आप चाहे हस्तशिल्प वस्तुएं कहें, दस्तकारी या घरेलू नक्काशी-ये सभी मूल रूप से एक ही हैं। भारत में ये सब प्राचीन काल से और अनेक सदियों से स्थापित हैं और इनकी सुदृढ़ परंपरा रही है। ये वस्तुएं देखने में सुंदर होती हैं, इस्तेमाल करने में अनुकूल हैं और जनजीवन के लिए अर्थपूर्ण भी।

भारत में प्राचीन काल से ही इन हस्तशिल्प वस्तुओं के लिए काफी सम्मान का भाव रहा है। इन वस्तुओं की मांग रही है। इतना ही नहीं, दुनिया के अन्य देशों में भी इनकी बड़ी प्रसिद्धि रही है। कहते हैं कि रामायण युग में हस्तशिल्पियों और उनकी कलात्मक वस्तुओं का समाज में प्रमुख स्थान था।

यह एक प्राचीन विश्वास रहा है कि इन हस्तशिल्पियों और कारीगरों के आदि पुरुष साक्षात् विश्वकर्मा ही हैं। इसलिए उस जमाने का कारीगर अपनी विद्या और अपने हाथ से बनाई गई वस्तुओं को, विश्वकर्मा को ही अर्पित करके संतुष्ट हो जाता था। कुम्हार-जो मिट्टी के पात्रों का निर्माण करता था;

कसेरा, जो कांसे के सांचों से मूर्तियों का निर्माण करता था; सुनार-जो आभूषणों का निर्माण करता था; बढ़ई या काष्ठशिल्पी-जो लकड़ी के सामान का निर्माण करता था; जुलाहा-जो सुंदर, जरीदार कपड़ों को बुनता था- इन सभी का वेद और पुराणों में वर्णन मिलता है।


प्रथम पृष्ठ

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

लोगों की राय

No reviews for this book