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पत्रकारिताः एक परिचय

संदीप कुमार श्रीवास्तव

प्रकाशक : जय भारतीय प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4860
आईएसबीएन :81-85957-14-2

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पत्रकारिता पर आधारित पुस्तक...

Patrkarita- Ek Parichay

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

पत्रकारिता समाज में ऊर्जा भरने का एक आक्रामक साधन है। खतरनाक भी, उस्तरे की तरह- बंदर के हाथ में पड़ गया तो खैर नहीं। इसीलिए कोशिश यही होनी चाहिए कि हाथ सही हों। कुशल और सधे हुए। पत्रकारिता सूचना देती है और दिशा भी परन्तु आज स्थिति कुछ जटिल सी हो गयी है। यह समझना आसान नहीं रह गया है कि पत्रकारिता की भूमिका क्या है ? विज्ञान और प्रोद्योगिकी का प्रभाव इस विधा पर भी बहुत पड़ा है। मशीनों ने जहाँ इसकी धार तेज की है, वहीं भाषा को बेढंगा किया है।
गोपाल रंजन

संदीप श्रीवास्तव जी ने पत्रकारिता के लिए यह संक्रमण का काल है। दिशाएँ तलाशी जा रही है। रोबोट की दुनिया में दक्ष हाथों की अनदेखी हो रही है। मुनाफाखोरी ने भी उलझाव पैदा किये हैं, वायुमण्डल में जहर फैलाने का भी काम हो रहा है। श्रीवास्तव जी ने पत्रकारिता के सभी पक्षों को ध्यान में रखकर पत्रकारिता एक परिचय की रचना की। यह पुस्तक विद्यार्थियों और पत्रकारों के लिए विशेष उपयोगी होगी।
अशोक कुमार

पत्रकारिता: एक परिचय
प्रस्तावना

हमारे देश में पत्रकारिता को लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के रूप में माना जाता है। क्योंकि यह जन-जन की अभिव्यक्ति को मुखर रूप से व्यक्त करने का जनतांत्रिक तरीका है। पत्रकारिता के उस रूप को हम सभी जानते हैं, जब स्वतंत्रता का संघर्ष मिशन की भावना से कलम के योद्धाओं ने लड़ा था। स्वतंत्रता संघर्ष के इस दौर में पत्रकारिता का एकमात्र लक्ष्य आजादी हासिल करना और जनता में चेतना जागृत करना रहा। सभी देशों में पत्रकारिता को अभिव्यक्ति की स्वतांत्र्य भावना के परिप्रेक्ष्य में लिया जाता है। भारत में यद्यपि आजादी के पाँच दशक ही हुए हैं, फिर भी पत्रकारिता का क्षेत्र उत्तरोत्तर नए अवसरों और नई तकनीकी चुनौतियों से भरा क्षेत्र मानते हैं। पत्रकारिता में प्रवेश करने वाले विद्यार्थियों के लिए इसके परिचय, सिद्धांतों तथा संवैधानिक पहलुओं से अवश्य परिचय होना चाहिए।

शुरूआत में पत्रकारिता का अर्थ, क्षेत्र, इतिहास और उसके विकास पर चर्चा की गई है। इकाई दो में स्वतंत्रता से पूर्व भारत की पत्रकारिता मध्य प्रदेश का विशेष संदर्भ लेते हुए की गई है।
स्वतंत्रता के बाद प्रेस की भूमिका और स्वातंत्र्य पर विवरण भी है। इस में प्रेस से संबंधित कानूनों पर सिलसिलेवार प्रकाश डाला गया है। विद्यार्थियों से अपेक्षा है कि वे इन सामग्रियों का अध्ययन ठीक ढंग से करते हुए पत्रकारिता के मानदण्डों को समझने का प्रयास करें।

पत्रकारिता और रिपोर्टिंग
समाचार परिभाषा

समाचार के संबंध में अनेक प्रकार के मत प्रचलित हैं। उसकी परिभाषा विभिन्न व्यक्तियों तथा स्थानों की दृष्टि पर आधारित है।
पश्चिमी देशों की दृष्टि में केवल माध्यम ही महत्त्वपूर्ण है। उसी को सबसे अधिक महत्त्व दिया जाता है।
15वीं शताब्दी में समाचार की परिभाषा का स्वभाव संबंधित व्यक्तियों के कारण बदलता रहा है। 17वीं शताब्दी में सबसे पहले एक आधुनिक समाचार पत्र निकला। इस समाचार में छपने वाली संसद की कार्यवाही के संबंध में उत्तेजक रिपोर्टिंग के कारण उस युग के लोगों के जीवन पर गहरी छाप पड़ी। इसका परिणाम यह हुआ कि उस दौर के प्रसिद्ध संसद सदस्य ‘एडमंड बर्क’ को यह टिप्पणी देने पर उत्साहित होना पड़ा कि ‘यह लोगों को मनचाहे’ कहने और देश की जनता को आजाद कराने का अधिकार किसने दिया ? क्या यह ‘चौथा शासन’ है ? (उस समय तक केवल तीन प्रशासकों को मान्यता मिली थी-दि हाऊस ऑफ क़ॉमन्स, दि हाऊस ऑफ लॉर्डस् और न्यायाधीश वर्ग) इस टिप्पणी की अनेक प्रकार के व्यक्तियों ने अनेक प्रकार की दृष्टि से अर्थ लगाने की कोशिश की है। पत्रकार वर्ग इसको जनता का चौथा शासन का नाम देता है।
हमारे देश में सम्राट अशोक के युग से पत्थरों पर समाचार छापे जाते थे तथा वे मुगल शासक अकबर के युग में ‘वाकिया नवीस’ के माध्यम से प्राप्त समाचार, सभी यही कहते हैं कि समाचार जनता के लिए उनकी आवश्यकतानुसार सूचना देना वाला होना चाहिए और प्राचीन काल में समाचारों का जो उद्देश्य था कुछ ऐसा ही था। किन्तु आज के आधुनिक युग में समाचार जनता के बीच एक से दूसरे मुख तक बड़ी तीव्र गति से प्रसारित होते हैं। हालांकि आज के युग में ‘जन संचार’ के क्षेत्र में बहुत ज्यादा प्रगति हो गयी है। प्रिन्ट माध्यम में भी और इलेक्ट्रानिक माध्यम में भी। इस प्रगति के बावजूद हमारे देश की जनता में आज भी उसी प्राचीन प्रथा का चलन है। जनसंख्या में समाचार का प्रसार व्यक्ति-व्यक्ति के माध्यम से ही होता है।

समाचार पत्रों के अधिकतर संपादक पाठकों की इच्छा के अनुसार समाचार की परिभाषा को निश्चित करने का प्रयास करते हैं। दूसरे में पाठक जिस चीज की माँग करता है, वहीं कुछ देने की संपादक वर्ग कोशिश करता है। चाहे वह स्थानीय समाचार हो, फीचर्स हों, क्रिकेट समाचार हों या और कोई समाचार। कुछ संपादक समाचार की परिभाषा इसी प्रकार करते हैं कि पाठकों को क्या ज्ञात होना चाहिए आज के जटिल आश्चर्यचकित करने वाले युग में पाठक के जीवन की सुखरूपता के लिए कौन-कौन-सी जानकारियां आवश्यक है, वे सब समाचार हैं।
इस प्रकार से ‘समाचार’ की कई प्रकार की परिभाषाएं प्रचलित हैं। ‘समाचार उसको भी कहते हैं, जो समाचार अधिक से अधिक जनसंख्या के लिए रूचिकारक तथा महत्वपूर्ण हों।’ दूसरे शब्दों में ‘समाचार’ घटना-तथ्य, तथा भिन्न-भिन्न प्रकार की सामाजिक गतिविधियों के संबंध में समय पर अधिक से अधिक जनसंख्या के लिए रूचिकारक हो। समाचार किसी भी ताजा घटना की ताजा जानकारी का अंश होता है, जो जनता पर अपना प्रभाव डालता है तथा उनके लिए रूचि पैदा करता है।
रूचिकारक समाचारों पर पाठक वर्ग अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त जरूर करते हैं विशेषतः अनोखी तथा आश्चर्यजनक घटनाओं के संबंध में वे बहुत रूचि लेते हैं।
आपको समाचार की यह परिभाषा की जानकारी तो अवश्य याद होगी-
यदि कुत्ता मनुष्य को काट खाए तो यह समाचार नहीं है, किंतु मनुष्य कुत्ते को काट खाए तो यह समाचार कहलाता है।
एक प्रसिद्ध संपादक ने ‘‘समाचार’’ की परिभाषा इस प्रकार की है, ‘‘जो कुछ घटित होता है, वह या उसका कोई भाग जनता का ध्यान आकर्षित करता है, वह ‘‘समाचार’’ है।
आप जोसेफ पुलिट्जर के नाम से अच्छी तरह परिचित होंगे। इन्हीं के नाम से अन्तरराष्ट्रीय ‘‘पुलिट्जर अवार्ड’’ संस्थापित किया गया है। उन्होंने समाचार की यह परिभाषा की है-‘‘समाचार वह है, जिसे-‘‘असली, अनोखी, विशेष, नाटकीय, रोमांचकारी, जिज्ञासा- जनक, चातुरीपूर्ण, विनोदी, विषम और योग्य कहा जाता है।’’

समाचार मूल्यांकन

समाचार की परिभाषा उसकी विशेषताओं के अनुसार की जाती है। समयबद्धता, निकटता, रूचिकर, मनोरंजक, परिणामगर्भिता, अनोखापन आदि विशेषताओं के आधार पर परिभाषा होती है।
‘‘समाचार’’ का विषय एक समयबद्धता का विषय है। जर्नलिज्म (पत्रकारिता) यह शब्द लैटिन से आया है, जिसका अर्थ ‘‘दैनिक और पत्रकारिता’’ किसी भी घटना की ताजी और समय पर की जाने वाली रिपोर्टिंग को पत्रकारिता समझा जाता है।
निकटता का बहुत अधिक महत्व है। क्योंकि जनता को दूर-दूर के अंतरराष्ट्रीय घटनाओं से ज्यादा आसपास की घटी घटनाओं में अधिक रूचि होती है साधारण व्यक्तियों से अधिक प्रसिद्ध और विशेष व्यक्तियों तथा घटनाओं में भी रूचि रहती है। पाठक वर्ग हर दिन होने वाली छोटी-छोटी घटनाओं के बारे में ध्यान नहीं देता, जिसका कोई निर्णय न निकलता हो और इन घटनाओं के कारण हमारे जीवन पर कोई विशेष प्रभाव पड़ता हो। समाचार अगर निराला, अनोखा तथा आश्चर्यजनक हो तो वह पाठकों के लिए बहुत ही मनोरंजक होता है। इसके अतिरिक्त मनोरंजक घटनाएं समाचार का महत्वपूर्ण भाग होती हैं। मानव जाति की मनोवृत्ति है कि दूसरे लोगों के संबंध में उसे अधिक रूचि होती है। दूसरे व्यक्तियों के बारे में जानकारियां प्राप्त करने में सभी बहुत उत्साहित होते हैं। समाचार के इन गुणों के अलावा कुछ दूसरे गुण भी हैं, जिसे तात्कालिक लाभ और दीर्घकालिक लाभ कहा जाता है। तात्कालिक लाभ वाले समाचार वे होते हैं, जो पाठको पर तुरन्त अपना प्रभाव डालते हैं।
उदाहरण के तौर पर क्रिकेट मैच के परिणाम अथवा किसी दुःखदायक घटना का समाचार तात्कालिक प्रभाव वाला होता है। दीर्घकालिक लाभ वाले समाचार वे होते हैं, जैसे कर सुधार या कानूनी निर्णय तथा संसदीय संशोधन के समाचार जो कि दीर्घ समय तक पाठकों के जीवन को प्रभावित करते हैं।

समाचार के आवश्यक तत्व

यहाँ हम समाचारों के कुछ आवश्यक तत्त्वों की चर्चा करेंगे।

1.स्पष्टता-

आपके समाचार लेखन के लिए वाक्य छोटे-छोटे होने चाहिए। हर एक अनुच्छेद के भीतर तीन या चार पंक्तियों का अंतर देना चाहिए। लेखन शुद्ध और स्पष्ट करने से पाठकों में समाचार पत्र पढ़ने की रूचि पैदा हो सकती है।

2.उद्देश्य-

आप अपने लेखन में अपने विचारों को मत मिलाइए, दूसरे व्यक्तियों के विचारों का और घटनाओं का लेखन उद्देश्यबद्धता के साथ लिखें, जितनी घटना हो उतना ही लेखन। किसी पक्ष के लिए लेखन करना पाठकों से विश्वासघात करने के समान है।

3.समानता-

रिपोर्टिंग करते समय समानता का पालन करना बहुत आवश्यक है। यदि आप किसी विवादास्पद विषय अथवा घटना की रिपोर्टिंग करने जा रहे हैं, तो आपका कर्तव्य है कि दोनों पहलुओं की रिपोर्टिंग करें। यदि कोई हड़ताल मनाई गई तो संवाददाता उस जगह पर जाते हुए हड़ताल कितनी सफल हुई, इसका लेखन यथार्थ के साथ करें। यदि किसी एक ही पक्ष का लेखन आप करेंगे तो आपके समाचार लेख में निष्पक्षता नहीं होगी। पाठकों का विश्वास इस प्रकार आप खो देंगे।

4.यथार्थ-

किसी भी समाचार में यथार्थता की बुनियादी जरूरत है। यदि आप यथार्थता को नजरअंदाज करेंगे तो आप पाठकों का विश्वास ग्रहण नहीं कर पाएंगे। इसलिए अपने लेख की जानकारियों तथा तथ्यों की बार-बार जांच करना आवश्यक है। नामों को, आंकड़ों तथा तथ्यों को शुद्धता के साथ लिखें। छोटी-छोटी गलतियों से बचे रहिए।

समाचार के स्रोत

संवाददाता को अपने क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए विश्वसनीय संपर्क स्थापित करना चाहिए। जितना अधिक से अधिक संपर्क हो उतना ही उसके लिए लाभदायक होता है। क्योंकि यही संपर्क उसके लिए जानकारियों के साधन हो सकते हैं। समाचार साधन मुख्यतः सार्वजनिक सभाएं, रेडियो के समाचार, दूरदर्शन के प्रोग्राम, पत्रकार-सम्मेलन, समाचार संक्षिप्त विवरण, इसके अतिरिक्त संवाददाता के अपने निजी संपर्क ही महत्वपूर्ण होते हैं। ये निजी संपर्क सरकारी अथवा गैर सरकारी अधिकारियों, व्यावसायिक वर्ग, मंत्रियों के सचिव, जनसंपर्क कार्यालय की सतह तक सीमित हो सकते हैं। इस तरह दो प्रकार के समाचार साधन होते हैं, एक तो वही सर्वसाधारण साधन जो सभी जनता के लिए उपलब्ध रहते हैं, दूसरे निजी संपर्क साधन जो व्यक्ति विशेष तक सीमित होते हैं।

कभी-कभी अपने व्यक्तिगत साधनों का उल्लेख अपनी रिपोर्टिंग में करना आवश्यक होता है और कभी-कभी उन्हें छुपाना भी पड़ता है। विवादास्पद समाचार लेखन में निजी समाचार साधनों को छुपाना ही उपयुक्त होता है। संवाददाता का यह कर्तव्य है कि समाचार लेख तथ्यों पर निर्धारित होना चाहिए। यदि आवश्यक पड़े तो अपने पास टेपरिकार्डर रखिए और दस्तावेज इकट्ठा कीजिए।
अपराध और खोजी रिपोर्टिंग करते समय साधनों की सुरक्षा करना पहला कर्तव्य है। खोजी पत्रकारिता में राजनीतिक व्यक्तियों से मुठभेड़ भी हो सकती है। क्योंकि जो जानकारियां वे छुपाना चाहते हैं, संवाददाता उनको पाठकों के सामने रखना चाहता है। इसलिए संवाददाता को अपने ‘‘साधनों’’ को पवित्र समझकर उनकी रक्षा करनी चाहिए। कानूनी व्यवस्था तथा सरकारी अधिकारियों की ओर से साधनों का पता बताने का पत्रकार पर दबाव भी आ सकता है, किन्तु पत्रकारिता का यह पहला उसूल है कि अपने साधनों ‘स्रोत’ को छुपाएं और उसकी रक्षा करें।

संवाददाता
संवाददाता के आवश्यक गुण

कभी भी कामयाब पत्रकार अथवा संवाददाता अपने आप जन्म नहीं लेता। वह पैदा नहीं होता, बल्कि पैदा किया जाता है, बनाया जाता है। पत्रकारिता में सफलता प्राप्त करने के लिए कुछ आवश्यक गुणों की आवश्यकता होती है, जिसके कारण वह किसी भी क्षेत्र में सफलताओं की सीढ़ियां चढ़ता रहता है। ये आवश्यक गुण कुछ इस प्रकार हैं- ईमानदारी, साहस, धैर्य, सावधानी, बुद्धिमत्ता, विद्वता, मित्रता, दया, भरोसा, सामाजिक दर्द, जिज्ञासु होना उसके लिए जरूरी है। निरीक्षक, समीक्षक, आलोचक दृष्टि, कल्पना शक्ति, दूरदृष्टि, चतुरता, मुस्तैदी, प्रसन्नता, चालाकी, आशावादिता, विनोदीवृत्ति, सुरक्षात्मक दृष्टि आदि उसके व्यक्तित्व के लिए बेहद जरूरी हैं।

बहुत सारे विद्यार्थी सोचते होंगे कि पत्रकारिता के प्रशिक्षण में ‘‘समाचार कैसे लिखे जाते हैं ?’’ केवल यही बताया जाता है। कुछ विद्यार्थी ऐसे भी होते हैं, जो साहित्यिक आकांक्षा से उत्प्रेरित होकर पत्रकारिता के क्षेत्र में पधारते हैं। किन्तु दुर्भाग्य से पत्रकारिता में केवल ‘‘लेखन’’ ही नहीं होता। इस क्षेत्र में अतिसुन्दर भाषा, शैली, मुहावरे और साहित्य संबंधी जानकारियों से अधिक कल्पना शक्ति, दूरदृष्टि ओर सोच-विचार करने की क्षमता महत्वपूर्ण होती है। पत्रकारिता से इस धरती पर जितने भी विषय है, उदाहरण के तौर पर अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, विज्ञान, रसायन विज्ञान, इतिहास, भूगोल शास्त्र आदि असंख्य विषयों का विषय होता है। जिन विद्यार्थियों का इन विषयों से परिचय नहीं हैं, उनको पत्रकारिता क्षेत्र में कदम बढ़ाने से पहले इन विषयों से अच्छी तरह परिचित होना चाहिए।

संवाददाता बहुत प्रभावशाली व्यक्ति होता है। समाचार पत्र में समाचार कैसे छापें, इसे निश्चित करने वाला कोई और नहीं होता, बल्कि संवाददाता ही इस बात को तय करता है। वैसे समाचार संगठन के दूसरे व्यक्ति भी होते हैं, परन्तु संवाददाता ही वह पहला व्यक्ति होता है, जो निर्णय लेता है कि किस घटना तथा समाचार को किस प्रकार रिपोर्ट करें ? दूसरे शब्दों में संवाददाता ही समाचार इकट्ठा करने और उसका सही ढंग से संगठन करने का कार्य करता है। यह भी सत्य है कि एक संवाददाता संपादक भी अच्छा होता है। एक अच्छा संवाददाता हर समय एक अच्छे संपादक के गुणों को धारण करने की कोशिश करता है।
पत्रकारिता के इस पेशे का सबसे बड़ा रोग है-‘सर्वद्वेषी’। एक पत्रकार को इस रोग से सतर्क रहना बहुत जरूरी है। लेकिन आलोचक की दृष्टि एक पत्रकार की सबसे बड़ी पूँजी है। पत्रकार की यह कोशिश होती है कि वह परिपक्व बने। उसका हर काम निर्दोष हो, यही उसकी आकांक्षा होती है।

समाचार संगठन में श्रेणियां और कार्य

कोई भी संवाददाता समाचार पत्र का महत्वपूर्ण सदस्य होता है। वह सबसे पहले संवाददाता है। वह समाचारों को इकट्ठा करता है और उसको शुद्ध तथा सुन्दर बनाता है। समाचार पत्र संस्था के दूसरे सदस्य संवाददाता की भेजी हुई रिपोर्ट को सही ढंग से छापने तथा पढ़ने को आतुर पाठकों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह तो सब ठीक है, किन्तु इसका अर्थ यही नहीं कि संवाददाता ही समाचार पत्र संगठन में सब कुछ है। दूसरे सदस्यों के बिना संवाददाता क्या अपने समाचारों को पाठकों तक पहुँचा सकता है, भला क्या यह संभव है ? किसी भी समाचार पत्र संगठन में संपादक का भी महत्वपूर्ण स्थान होता है। समाचारों का संपादन करना, समाचारों को संतुलन के साथ छापना यह कार्य संपादक करता है। एक ही प्रकार के समाचार छापने से पत्र में आकर्षण नहीं रहता, इसलिए हर किस्म के समाचारों को पत्र में जगह देनी होती है।
कोई भी पाठक वर्ग समाचार पत्र को जिस मूल्य पर भी खरीदता है, इससे समाचार की लागत से बहुत कम लाभ होता है। इस घाटे के लिए संगठन में कुछ सदस्य ऐसे भी होते हैं, जो विज्ञापन लाते हैं। इन विज्ञापनों से सभी सदस्यों का मासिक वेतन निकल आता है।
संगठन में कुछ सदस्य पाठकों तथा समाचार पत्र को समय पर पहुँचाने का कार्य करते हैं। इसके अतिरिक्त समाचार पत्र छापने वाले सदस्य भी संगठन के महत्वपूर्ण भाग होते हैं। इस प्रकार इन तीन श्रेणियों में काम होता है।
1.लिखाई। 2.छपाई। 3.बिक्री।
समाचार पत्र का यह कार्य यानी लिखाई, छपाई और बिक्री संगठन के सभी सदस्य संपादकीय विभाग, तकनीकी विभाग और व्यापार विभाग तीनों मिलकर करते हैं।

संपादकीय विभाग

कोई भी समाचार इकट्ठा होने के बाद संपादन का कार्य आरंभ होता है। संपादक समाचारों की भाषा की त्रुटियाँ दूर करते हुए, रूचिकारक और पठनीय बनाता है। संपादक विभाग का दूसरा कार्य मनोरंजक संपादकीय लेख और विशेष लेख लिखकर पाठकों का मनोरंजन करना होता है।

तकनीकी विभाग

जब संपादन की प्रक्रिया समाप्त होती है उसके बाद छपाई का तकनीकी कार्य आरंभ होता है। यह कार्य तकनीकी विभाग करता है। कम्प्यूटर पर समाचार पत्र का ब्लू प्रिन्ट बन जाने के बाद उसकी प्लेट बनायी जाती है, फिर आफसेट तथा रोटोग्रेव्होर छपाई मशीनों पर छपाई का काम आरंभ होता है।

व्यापार विभाग

इस भाग में विज्ञापन लेना और पाठक वर्ग निर्माण करना इसके अलावा सभी प्रकार का वित्तीय कार्य होता है। इस विभाग से सभी कर्मचारियों के वेतन भी दिये जाते हैं। छोटे-छोटे समाचार पत्रों में अलग-अलग विभाग नहीं होते। किन्तु बड़े समाचार पत्र संगठनों में हर विभाग स्वतंत्र रूप से कार्य करता है। विज्ञापन विभाग, तकनीकी विभाग, सम्पादकीय विभागों के अतिरिक्त सर्क्युलेशन विभाग और प्रबन्धक विभाग भी होते हैं, जो क्रमशः समाचार पत्र के सर्क्युलेशन और सभी विभागों का प्रबन्धन का कार्य किया जाता है।
समाचार पत्र संगठन के सब से ऊपर मालिक प्रशासक होता है। मालिक तथा प्रशासक कोई भी व्यक्ति, संघ, साझेदारी में या संयुक्त पूँजी पर निर्धारित हो सकता है। भारत में 90 प्रतिशत समाचार संस्थाओं में मालिक ही प्रशासक और संपादक बना रहता है। बड़े और मध्यम प्रकार के समाचार पत्रों में संपादन, वितरण वगैरह सभी कार्यों को संपादक ही करता है। मुख्य संपादक को सहायता देने के लिए कभी कभार सहायक तथा प्रबंधकीय संपादक भी होते हैं। मुख्य संपादक संपादकीय विभाग, व्यवसाय विभाग और तकनीकी विभाग इन तीनों विभागों पर नियन्त्रण करता है। किन्तु संपादकीय विभाग पूर्णतः मुख्य संपादक के नियोजन में ही कार्य करता है। इसको सहायता देने के लिए समाचार संपादक या सहायक समाचार संपादक होते है। संपादकीय विभाग दो विभागों में बँटा हुआ है- (1) रिपोर्टिंग विभाग। (2) संपादकीय विभाग। रिपोर्टिंग विभाग में अनेक प्रकार के संवाददाता काम करते हैं।

राष्ट्रीय संवाददाता

अब आइये यह देखें, राष्ट्रीय संवाददाता बनने के लिए किन गुणों की आवश्यकता होती है ? यह राष्ट्रीय स्तर के संवाददाता में सबसे महत्वपूर्ण गुण तो यह होना चाहिए कि वह खोजी वृत्ति का हो, इसके अतिरिक्त समीक्षा, निरीक्षण, आलोचना करने की क्षमता के साथ-साथ राष्ट्र के महत्वपूर्ण विषयों पर गहरी नजर रखने की क्षमता राष्ट्रीय संवाददाता में अवश्य होनी चाहिए।

विदेशी संवाददाता

यह संवाददाता बहुत ही वरिष्ठ होते हैं। भारत के 20,000 संवाददाताओं में सिर्फ 2 प्रतिशत संवाददाताओं को विदेशी राष्ट्रों में नियुक्त किया जाता है। संवाददाता के जीवन की सबसे बड़ी आकांक्षा विदेशों में नियुक्त विशेष संवाददाता बनना होता है। यह सबसे बड़ा सौभाग्य तथा इनाम है।

समाचार-लेखन

किसी भी प्रकार का लेखन विशेष शैली में लिखा जाता है। उपन्यास हो, आत्मचरित्र हो, निबंध हो या नाटक हो, कविता हो, हर प्रकार के लेखन की पद्धति तथा शैली का एक विशेष ढंग होता है।

समाचार का संगठन

समाचार लेखन विविध प्रकार से लिखे जाते हैं, संगठित किये जाते हैं। लेकिन समाचार लेखन के साधारणतः तीन भाग होते हैं-पहला भागः समाचार प्रवेश अथवा प्रारम्भिक कहलाता है। अंग्रेजी में इसे इन्ट्रो तथा लीड कहते हैं। मध्य भाग को कलेवर (बॉडी) और अंतिम भाग को निर्णय कहते हैं।
समाचार प्रवेश (इन्ट्रो) अनेक प्रकार से लिखा जाता है। साधारणतः इस भाग में समाचार सारांश होता है, जोकि छः प्रश्नों के उत्तर पर निर्भर होता है।
‘‘क्या ? कहाँ ? कब ? क्यों ? किसको ? और कैसे ?
इन छः ककारों को अंग्रेजी में 5 W+ 1 H कहा जाता है।
कलेवर (बॉडी) में समाचार लेख के सारांश का विस्तार दिया जाता है। कलेवर संक्षिप्त भी हो सकता है और विस्तृत भी। एक ही अनुच्छेद में लेखन में समाचार प्रवेश तथा कलेवर दोनों एकसाथ लिखे जाते हैं, अलग-अलग नहीं।
समाचार लेखन के अंतिम भाग में समाचार निर्णय लिखना आवश्यक नहीं होता। जो कुछ भी विचार प्रकट करना है, वह पहले ही अनुच्छेदों में यानी समाचार प्रवेश में ही कहा जाता है। लेकिन कुछ लेखों में निर्णय भी लिखा जाता है।

समाचार की रचना

एक ही समाचार का लेखन जो कि जटिल भी नहीं है, यदि लिखना हो, जिसमें केवल एक ही विषय तथा विचार का लोन करना हो, ऐसी घटनाओं अथवा समाचारों को ‘‘उल्टा त्रिकोण’’ पद्धति से लिखा जाता है। इस पद्धति में सबसे महत्वपूर्ण विषय या मुद्दे को पहली पंक्तियों में या वाक्यों में लिखा जाता है। कम महत्व वाले मुद्दों को कलेवर (बॉडी) में लिखा जाता है। उल्टी त्रिकोणी रचना में निर्णय का उल्लेख नहीं किया जाता। इस प्रकार की रचना में यह लाभ होता है कि आवश्यकतानुसार समाचार पत्र में जगह की तंगी को देखते हुए नीचे की ओर कांटा छांटा जा सकता है। कटाई-छटाई से समाचार का मुख्य अंग छूट नहीं जाता। दूसरा लाभ यह होता है कि पाठक यदि गड़बड़ी में पहले अनुच्छेद के कुछ ही वाक्य पढ़ लेता है तो वह समाचार के मुख्य अर्थ से वंचित नहीं रहता।
1. समाचार प्रवेश (इंट्रो)
2. कलेवर (बॉडी)
3. निर्णय

समान-तथ्य-लेखन

कुछ समाचार लेख ऐसे भी होते हैं, जो ‘‘उल्टे त्रिकोण’’ पद्धति तक सीमित नहीं रहते। कुछ लेखों में सभी मुद्दे महत्वपूर्ण होते हैं। किसी एक अनुच्छेद को काटना हानिकारक होता है। महत्व के अनुसार सविस्तार जानकारी लिखना आवश्यक होता है। इस प्रकार के लेख साधारणतः विशेष पद्धति से लिखे जाते हैं।

उदाहरण

इलाहाबाद। अगस्त 27 इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने विश्वविद्यालय में इस वर्ष से नौकरी दिलाने वाले तीन व्यावसायिक पाठ्यक्रम खोले जाएंगे। विश्वविद्यालय के प्रेस नोट में यह बात बतायी गयी है।
विश्वविद्यालय ने दो साल के पर्सनल मैनेजमेंट कोर्स के लिए 40 सीटों की अनुमति दी है, जिसे बिजनेस मैनेजमेंट के विभाग में चलाया जाएगा। प्रवेश की सूचना पहले हिस्से में जारी की गयी है।
मास्टर्स इन विजुअल के एक और कोर्स के लिए 25 सीटों की अनुमति दी गयी है। यह दो वर्षीय व्यावसायिक कोर्स आर्ट कॉलेज में चलाया जाएगा। प्रवेश संबंधी सूचना कल जारी की जाएगी।
तीन वर्षीय मास्टर्स इन कम्प्यूटर एप्लीकेशन के लिए 80 सीटों की व्यवस्था की गई है, अगले सप्ताह प्रवेश संबंधी सूचना जारी की जाएगी।
इन पाठ्यक्रमों में रूचि रखने वाले विद्यार्थी संबंधित विभागों से तुरन्त संपर्क करें।
इस समाचार लेखन पद्धति में पहले अनुच्छेद में तीन पाठ्यक्रमों का उल्लेख है। कलेवर में तीन पाठ्यक्रमों के संबंध में विस्तार पूर्वक जानकारी का उल्लेख जरूरी है। नहीं तो पाठक यह प्रश्न पूछेगा कि दूसरे कोर्स का क्या हुआ ? शेष कोर्सों की जानकारी कहाँ है ?
इस प्रकार से अनेक अवसरों पर समाचार प्रवेश के पहले अनुच्छेद के साथ-साथ समान महत्व वाले तथ्यों का विवरण देना अनिवार्य हो जाता है।

काल-क्रम के अनुसार समाचार की रचना

जब कभी समाचार लेखों के क्रमानुसार लिखित घटनाओं का विवरण दिया जाता है, तो इस प्रकार की घटनाओं के संगठन की समस्या केवल ‘‘कालक्रम’’ से ही दूर हो सकती है। कालक्रमानुसार समाचार का लेखन किस प्रकार किया जाता है। आइए देखें-

उदाहरण

इलाहाबाद। अगस्त 5 इलाहाबाद पुलिस ने बन्दूक की नोक पर बैंक लूट कर फरार होने वाले एक खतरनाक लुटेरे की तलाशी के लिए बड़े पैमाने की मुहिम शुरू की है, जो करीब 55 लाख रुपये लेकर फरार हुआ।
शहर से दूर फाफामऊ पर स्थित एस.बी.आई. की शाखा में एक घनी दाढ़ी वाला खतरनाक लुटेरा घुस गया। दोपहर के 1 बजकर 40 मिनट पर कैशियर मिस्टर आर. सिंह अपना हिसाब किताब बन्द कर रहे थे कि यकायक लुटेरे ने अन्दर घुसकर कैशियर पर बन्दूक तान दी। कैशियर की ओर एक थैला फेंकते हुए उसमें रुपये भरने को कहा।
घबराते हुए मिस्टर सिंह ने रुपये भरने के बाद लुटेरे को लौटा दिया। रुपये हथिया लेने के बाद कैशियर को चुप चुप कहते हुए नीचे बैठने का हुक्म देते हुये लुटेरा भाग खड़ा हुआ। थोडी़ देर के बाद कैशियर ने वाचमैन को चिल्लाते हुए आवाज दी, तब तक लुटेरा भाग चुका था।
1. समाचार प्रवेश इन्ट्रो
2. क्रमवार घटनाएं
3. अधिक जानकारी

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