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जीवनी/आत्मकथा >> राजा राममोहन राय

राजा राममोहन राय

विजित कुमार दत्त

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :71
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 496
आईएसबीएन :8123731264

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सन् 1809। पहली जनवरी, भागलपुर। दिन ढल रहा था। शाम के चार बजे थे।

Raja Rammoham Rai - A hindi Book by - vijit kumar datt राजा राममोहन राय - विजित कुमार दत्त

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

राजा राम मोहनराय
1

सन् 1809। पहली जनवरी, भागलपुर। दिन ढल रहा था। शाम के चार बजे थे।

उन दिनों सड़कें पक्की नहीं हुआ करती थीं। उन पर धूल उड़ा करती थी, पानी पड़ जाने से कीचड़ हो जाता था। इसी तरह धूल भरे रास्ते से एक पालकी चली आ रही थी।

 उन दिनों यातायात के लिए पालकी ही बड़े लोगों की सवारी हुआ करती थी। धूल उड़ रही थी।  पालकी धीमी गति से आगे बढ़ी जा रही थी- हइया हो, हइया हो। पालकी के साथ-साथ सेवक भी चल रहे थे। वे भी कहरों के साथ चाल से चाल मिलाए चल रहे थे। पालकी भागलपुर के पास आ पहुंची थी।

 रास्ते में कोई आदमी-जन नहीं था। होता भी किस तरह। रास्ते में निकलते ही तो गोरे साहबों की हुंकार सुनाई पड़ जाती। काला आदमी तो डर के मारे कांपता रहता। सलाम ठोंकता, लेकिन, उस पर भी रिहाई थोड़े न मिल पाती। शरीर पर एक दो कोड़े तो खाने ही पड़ जाते।

अगर किसी को कोई बहुत जरूरी काम होता तो वह रास्ता छोड़कर खेतों से होकर जाता।
मुगल शासन के समय से ही यह परंपरा चली आ रही थी। बादशाह ने अपनी प्रजा को हुक्म दिया था कि जब उन के कर्मचारी रास्ते से होकर जाएं तो उन्हें कोर्निश करें।

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