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सोने की मुहरोंवाली थैली

अनन्त पई

प्रकाशक : इंडिया बुक हाउस प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4975
आईएसबीएन :81-7508-492-8

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सोने की मुहरोंवाली थैली की कथा...

Sone Ki Muharon Wali Thaili -A Hindi Book by Anant Pai - सोने की मुहरोंवाली थैली - अनन्त पई

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

 

खुरासान के सुल्तान हुसेन मिर्जा (1469-1506 ई.) के समय में पारसी के विद्वान हुसेन अली वायज ने पंचतंत्र का फारसी अनुवाद किया, जिसका नाम था ‘अन्वर-ए-सुहैली’। वायज ने पात्रों के नाम बदल दिये ताकि रचना फारसी की लगे। ये दो किस्से उसी अन्वर-ए-सुहैली से लिये गये हैं। मूल किस्से में गाय को मारने का उल्लेख है। हमारे इस रूपांतर में हमने गाय के स्थान पर ‘बकरी’ शब्द लिखा है।
अकबर और जहाँगीर के दरबार के प्रख्यात चित्रकारों ने ‘अन्वर-ए-सुहैली’ की कहानियों पर कई बार चित्र बनाये। इन पुरानी पांडुलिपियों में जितनी खूबसूरत लिखावट है, उतने ही खूबसूरत चित्र हैं. चित्र प्रारंभिक मुगल चित्र शैली के सुंदर उदाहरण हैं।
‘अन्वर-ए-सुहैली’ की तीन पांडुलिपियाँ उपलब्ध हैं। एक लंदन संग्रहालय में है और दो भारत में। उसमें से एक प्रिंस आफ वेल्स संग्रहालय बम्बई में, और दूसरी काशी में है।
सोने की मुहरोंवाली थैली
बहुत समय पहले की बात है।, एक बड़ा मेहनती किसान था।
उस बार उसकी फसल भी बड़ी अच्छी हुई।
आखिरकाल मेरी मेहनत सफल हुई !
उसने शहर की मंडी में काफी अच्छे मुनाफे से फसल बेची।
तीन सौ सोने की मुहरें ! इस मोटी रकम के बारे में किसी को भी नहीं बताऊंगा।


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