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कतील शिफाई और उनकी शायरी

प्रकाश पंडित

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :125
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4992
आईएसबीएन :9789350643853

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कतील शिफाई की जिन्दगी और उनकी बेहतरीन शायरी गजलें, नज्में, शेर

Quatil Shifai Aur Unki Shayari

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

उर्दू के लोकप्रिय शायर

वर्षों पहले नागरी लिपि में उर्दू की चुनी हुई शायरी के संकलन प्रकाशित कर राजपाल एण्ड सन्ज़ ने पुस्तक प्रकाशन की दुनिया में एक नया कदम उठाया था। उर्दू लिपि न जानने वाले लेकिन शायरी को पसंद करने वाले अनगिनत लोगों के लिए यह एक बड़ी नियामत साबित हुआ और सभी ने इससे बहुत लाभ उठाया।
ज्यादातर संकलन उर्दू के सुप्रसिद्ध सम्पादक प्रकाशक पंडित ने किये हैं। उन्होंने शायर के सम्पूर्ण लेखन से चयन किया है और कठिन शब्दों के अर्थ साथ ही दिये हैं। इसी के साथ, शायर के जीवन और कार्य पर-जिनमें से समकालीन उनके परिचित ही थे-बहुत रोचक और चुटीली भूमिकाएं लिखी हैं, ये बेलती तश्वीरें हैं जो सोने में सुहागे का काम करती हैं।

 

क़तील शिफ़ाई

 

देखने में पहलवान, सुबह-सवेरे डंड पेलने के बाद शे’र लिखने के लिए बैठनेवाले क़तील शिफ़ाई की शायरी में झरनों का-सा संगीत, फूलों जैसी महक और महबूब की कमर जैसी लचक मिलती है। चन्द्रकान्ता नाम की फिल्म एक्ट्रेस ने, जो डेढ़ साल में ही उनका साथ छोड़ गई, उनकी शायरी में एक खास निखार और माधुर्य पैदा किया। उनकी शायरी प्रेम और वंचना के साथ क्रांति और मानवता की भी पुकार है।

 

क़तील

 

किसी शायर के शे’र लिखने के ढंग आपने बहुत सुने होंगे। उदाहरणतः ‘इकबाल’ के बारे में सुना होगा कि वे फ़र्शी हुक़्क़ा भरकर पलंग पर लेट जाते थे और अपने मुंशी को शे’र डिक्टेट कराना शुरू कर देते थे। ‘जोश’ मलीहाबादी सुबह-सबेरे लम्बी सैर को निकल जाते हैं और यों प्राकृतिक दृश्यों से लिखने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं। लिखते समय बेतहाशा सिगरेट फूँकने चाय की केतली गर्म रखने और लिखने के साथ-साथ चाय की चुस्कियाँ लेने के बाद (यहाँ तक कि कुछ शायरों के सम्बन्ध में यह भी सुना होगा कि उनके दिमाग़ की गिरहें शराब के कई पैग पीने के बाद) खुलनी शुरू होती हैं। लेकिन यह अन्दाज़ शायद ही आपने सुना हो कि शायर शे’र लिखने का मूड लाने के लिए सुबह चार बजे उठकर बदन पर तेल की मालिश करता हो और फिर ताबड़तोड़ डंड पेलने के बाद लिखने की मेज पर बैठता हो। यदि आपने नहीं सुना तो सूचनार्थ निवेदन है कि यह शायर ‘क़तील’ शिफ़ाई है।

‘क़तील’ शिफ़ाई के शे’र लिखने के इस अन्दाज़ को और उसके लिखे शे’रों को देखकर आश्चर्य होता है कि इस तरह लंगर–लँगोट कसकर लिखे गये शे’रों में कैसे झरनों का-सा संगीत फूलों की-सी महक और उर्दू की परम्परागत शायरी के महबूब की कमर-जैसी लचक मिलती है। अर्थात् ऐसे वक़्त में जबकि उसके कमरे से ख़म ठोकने और पैंतरें बदलने की आवाज़ आनी चाहिए, वहां के वातावरण में कुछ ऐसी गुनगुनाहट बसी होती है:

 

चौधवीं रात के चाँद की चाँदनी खेतियों पर हमेशा बिखरती रहे
ऊँघते रहगुज़ारों पे फैले हुए हर उजाले की रंगत निखरती रहे
नर्म ख्वाबों की गंगा बिफरती रहे
या
रात भर बूँदियाँ रक़्स करती रहीं,
भीगी मौसीक़ियों ने सवेरा किया
या
सोई सोई फ़जा आँख मलने लगी,
सेली-सेली हवाओं के पर तुल गए

 

और इसके साथ यदि आपको यह भी मालूम हो जाए कि ‘क़तील’ शिफ़ाई जाति का पठान है और एक समय तक गेंद-बल्ले, रैकट, लुंगियाँ और कुल्ले बेचता रहा है, चुँगीख़ाने में मुहर्रिरी और बस-कम्पनियों में बुकिंग-क्लर्की करता रहा है तो उसके शे’रों के लोच-लचक को देखकर आप अवश्य कुछ देर के लिए सोचने पर विवश हो जाएँगे। इस पर यदि कभी आपको उसे देखने का अवसर मिल जाए और आपको पहले से मालूम न हो कि वह ‘क़तील’ शिफ़ाई है, तो आज भी आपको वह शायर की अपेक्षा एक ऐसा क्लर्क नज़र आएगा जिसकी सौ सवा सौ की तनख्वाह के पीछे आधे दर्जन बच्चे जीने का सहारा ढूँढ़ रहे हों। उसका क़द मौज़ूँ है, नैन-नक़्श मौज़ूँ हैं। बाल काले और घुँघराले हैं। गोल चेहरे पर तीखी मूँछें और चमकीली आँखें हैं और वह हमेशा ‘टाई’ या ‘बो’ लगाने का आदी है। फिर भी न जाने क्यों पहली नज़र में वह ऐसा ठेठ पंजाबी नज़र आता है जो अभी-अभी लस्सी के कुहनी-भर लम्बे दो गिलास पीकर डकार लेने के बारे में सोच रहा हो।

पहली नज़र में वह जो भी नज़र आता हो, दो-चार नज़रों या मुलाक़ातों के बाद बड़ी सुन्दर वास्तविकता खुलती है-कि वह डकार लेने के बारे में नहीं, अपनी किसी प्रेमिका के बारे में सोच रहा होता है-उस प्रेमिका के बारे में जो उसे विरह की आग में जलता छोड़ गई, या उस प्रेमिका के बारे में जिसे इन दिनों वह पूजा की सीमा तक प्रेम करता है। प्रेम और पूजा की सीमा तक प्रेम उसने अपनी हर प्रेमिका से किया है और उसकी हर प्रेमिका ने वरदान-स्वरूप उसकी शायरी में निखार और माधुर्य पैदा किया है, जैसे ‘चन्द्रकान्ता’ नाम की एक फिल्म ऐक्ट्रेस ने किया है जिससे उसका प्रेम केवल डेढ़ वर्ष तक चल सका और जिसका अन्त बिलकुल नाटकीय और शायर के लिए अत्यन्त दुखदायी सिद्ध हुआ। लेकिन ‘क़तील’ के कथनानुसार :
यदि यह घटना न घटी होती तो शायद अब तक मैं वही परम्परागत गज़लें लिख रहा होता, जिनमें यथार्थ की अपेक्षा बनावट और फैशन होता है। इस घटना ने मुझे यथार्थवाद के मार्ग पर डाल दिया और मैंने व्यक्तिगत घटना को सांसारिक रंग में ढालने का प्रयत्न किया। अतएव उसके बाद जो कुछ भी मैंने लिखा है वह कल्पित कम और वास्तविक अधिक है।
चन्द्रकान्ता से प्रेम और विछोह से पहले ‘क़तील’ शिफ़ाई आर्तनाद क़िस्म की परम्परागत शायरी करता था और ‘शिफ़ा’ कानपुरी नाम के एक शायर से अपने कलाम पर इस्लाह लेता था (इसी सम्बन्ध से वह अपने को ‘शिफ़ाई’ लिखता है)। फिर उसने अहमद नदीम क़ासमी से मैत्रीपूर्ण परामर्श लिये। लेकिन किसी की इस्लाह या परामर्श तब तक किसी शायर के लिए हितकर सिद्ध नहीं हो सकते जब तक कि स्वयं शायर के जीवन में कोई प्रेरक वस्तु न हो। लगन और क्षमता का अपना अलग स्थान है, लेकिन इस दिशा की समस्त क्षमताएँ मौलिक रूप से उस प्रेरणा ही के वशीभूत होती हैं,
 जिसे ‘मनोवृत्तान्त’ का नाम दिया जा सकता है।

 चन्द्रकान्ता उसे छोड़ गई लेकिन उर्दू शायरी को एक सुन्दर विषय और उस विषय के साथ पूरा-पूरा न्याय करने वाला शायर ‘क़तील’ शिफ़ाई दे गई। अपने व्यक्तिगत गम और गुस्से के बावजूद तब ‘क़तील’ ने चन्द्रकान्ता को अपना काव्य-विषय बनाया-एक ऐसी नारी को जो अपना पवित्र नारीत्व खो चुकी थी और खो रही थी-तो न केवल उसने सामाजिक विवशताओं को स्थगित नहीं किया बल्कि एक सच्चे कलाकार की तरह यह खटक भी शामिल कर दी कि वह नारी इस भाव या अनुभव से वंचित नहीं कि जो कुछ वह कर रही है, अच्छा नहीं है। अच्छा क्या है ?-मुहब्बत की नाकामी ने ‘क़तील’ को इस सर्वव्यापी प्रश्न पर सोचने की प्रेरणा दी। समय, अनुभव और साहित्य की प्रगतिशील धारा से सम्बन्धित होने के बाद जिस परिणाम पर वह पहुँचा, उसकी आज की शायरी उसी की प्रतीक है। उसकी आज की शायरी समय के साज़ पर एक सुरीला राग है- वह राग, जिसमें प्रेम-पीड़ा, वंचना की कसक और क्रान्ति की पुकार, सभी कुछ विद्यमान है। उसकी आज की शायरी समाज, धर्म और राज्य के सुनहले कलशों पर मानवीय-बन्धुत्व के गायक का व्यंग्य है।
पंजाब के इस अलबेले गायक का जन्म दिसम्बर 1919 में तहसील
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 इस विषय पर लिखी गई ‘शम्मअ़-ए-अंजुमन’, ‘रास्ते का फूल’, ‘हरजाई’, ‘एल्बम’ आदि कुछ नज़्में इस संकलन में शामिल हैं। यहाँ भी ‘ऐक्ट्रेस’ नामक एक नज़्म के तेवर देखिए:

थरथराती रही चिराग की लौ  अश्क पलकों पे काँप-काँप गए
कोई आँसू न बन सका तारा  शब के साये नज़र को ढाँप गए
कट गया वक़्त मुस्कराहट में  क़हक़हे रूह को पसन्द न थे
वो भी आँखें चुरा गए आख़िर  दिल के दरवाज़े जिन पे बन्द न थे

सौंप जाता है मुझको तनहाई
जिस पे दिल एतबार करता है
बनती जाती हूं नख्ले-सहराई1

तूने चाहा तो मैंने मान लिया  घर को बाज़ार कर दिया मैंने
बेचकर अपनी एक-एक उमंग  तुझको ज़रदार2 कर दिया मैंने
अपनी बेचारगी पे रो-रोकर  दिल तुझे याद करता रहता है
कुमकुमों के3 सियाह उजाले में  जिस्म फ़र्याद करता रहता है
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1.मरूस्थल का पेड़. 2.धनाढ्य. 3.बिजली के हंडों के

हरीपुर ज़िला हज़ारा (पाकिस्तान) में हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा इस्लामिया मिडिल स्कूल, रावलपिंडी में प्राप्त की, उसके बाद गवर्नमेंट हाई स्कूल में दाखिल हुआ, लेकिन पिता के देहान्त और कोई अभिभावक न होने के कारण शिक्षा जारी न रह सकी और पिता की छोड़ी हुई पूँजी समाप्त होते ही उसे तरह-तरह के व्यापार और नौकरियाँ करने पड़े। साहित्य की ओर ध्यान इस तरह हुआ कि क्लासिकल साहित्य में पिता की बहुत रुचि थी और ‘क़तील’ के कथनानुसार, ‘‘उन्होंने शुरू में मुझे कुछ पुस्तकें लाकर दीं जिनमें ‘क़िस्सा चहार दरवेश’ ‘क़िस्सा हातिमताई’ आदि भी थीं। मैं अक्सर उन्हें पढ़ता रहता था जिससे मुझे भी लिखने का शौक़ हुआ। अतएव प्रारम्भ में मैंने कहानियाँ लिखनी शुरू कीं, लेकिन कहानियों में कठिनाई यह थी कि मुझे उन्हें नक़ल करते समय बड़ा कष्ट होता था। मैंने कहानियाँ लिखनी छोड़ दीं और नज़्में लिखने की कोशिश की।

 सबसे पहले पाठशाला के दिनों में मैंने एक नाअ़त (मुहम्मद साहिब की छन्दोबद्ध प्रशंसा) लिखी जिस पर मुझे काफ़ी प्रोत्साहन मिला और मैंने बाकायदा नज़्में लिखनी शुरू कर दीं। उन्हीं दिनों पिता का देहान्त हो गया फिर ताऊ चल बसे और एक वर्ष भी नहीं गुज़रा था कि फूफी भी उठ गईं। इन घटनाओं का मुझ पर गहरा असर हुआ और मैं बेहद भावुक हो गया। जब तक हरीपुर में रहा, परम्परागत क़िस्म की शायरी से जी बहलाता रहा लेकिन जब रावलपिंडी में आया तो साहित्य की नई धारा, जिसे प्रगतिशील धारा कहा जाता है, के अनुकरण में शैली के नए-नए प्रयोग किए। यहीं अहमद नदीम कासमी से मेरा पत्र-व्यवहार प्रारम्भ हुआ और कविता सम्बन्धी उनके परामर्शों ने मेरी बड़ी सहायता की, और जब मैं लाहौर आया (प्रसिद्ध मासिक पत्रिका ‘अदबे-लतीफ’ के सम्पादक की हैसियत से) तो मैंने वास्तविक अर्थों में कुछ नई चीज़ें दीं और यों शायर के रूप में बाकायदा तौर पर मेरा परिचय हुआ।

और फिर चन्द्रकान्ता के प्रेम और विछोह के बाद उस पर यह नया भेद खुला कि काव्य की परम्पराओं से पूरी जानकारी रखने, शैली में वृद्धि करने तथा नए विचार और नए शब्द देने के साथ-साथ केवल वही शायरी अधिक अपील कर सकती हैं जिसमें शायर का व्यक्तित्व या ‘मनोवृत्तान्त’ (जो अनिवार्य रूप से बाह्य परिस्थितियों से जन्म लेता और बनता है) विद्यमान हों।
इस प्रकार हम देखते हैं कि दूसरे महायुद्ध के बाद नई पीढ़ी के जो शायर बड़ी तेजी से उभरे और जिन्होंने उर्दू की ‘रोती-बिसूरती’ शायरी के सिर में अन्तिम कील ठोंकने, विश्व की प्रत्येक वस्तु को सामाजिक पृष्ठभूमि में देखने और उर्दू शायरी की नई डगर को अधिक-से-अधिक साफ, सुन्दर, प्रकाशमान बनाने में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, उनमें ‘क़तील’ शिफ़ाई का विशेष स्थान है। बल्कि संगीतधर्मी छंदों के चुनाव, चुस्त सम्मिश्रण और गुनगुनाते शब्दों के प्रयोग के कारण उसे शायरों के दल में से तुरन्त पहचाना जा सकता है।
अब तक ‘क़तील’ की कविताओं के चौदह संग्रह, छप चुके हैं। उसने बहुत ही सुन्दर तथा लोकप्रिय फ़िल्मी गीत भी लिखे हैं।

 

शायरी

 

 

‘क़तील’ अपनी ज़बाँ का़बू में रखना
सुख़न1 से आदमी पहचाना जाए

 

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1.काव्य।

 

क़तील शिफ़ाई

 

 

पैदाइश: 24 दिसंबर 1919 ई., हरिपुर, हज़ारा (सरहद)
क़याम लाहौर: जनवरी 1947 ई.
रचनाएँ: चौदह शेरी मजमूए: हरियाली, गजर, जलतरंग, रौज़न, झूमर, मुतरिबा, छतनार, गुफ़्तगू, पैराहन, आमोख्ता, अबाबील, बरगद, बरगद, घुँघरू और समंदर में सीढी़
पत्रकारिता: मासिक अदबे-लतीफ़, लाहौर; साप्ताहिक अदाकार, लाहौर; साप्ताहिक उजाला लाहौर; और मासिक संगे-मील पेशावर से संपादकीय संबद्धता के अलावा पाकिस्तान राइटर्स गिल्ड के दो बार सचिव।

सम्मान: मुतरिबा पर आदमजी एवार्ड, छतनार और पैराहन पर अबासीन आर्ट्स कौंसिल, सरहद के दो एवार्ड।
काबिले फ़ख्र बात: मगध बुद्ध विश्वविद्यालय से क़तील शिफ़ाई और उनके अदबी कारनामे के उनवान से आप पर डारेक्ट्रेट किया गया और महाराष्ट्र के बच्चों की उर्दू पाठ्यपुस्तक में आपकी बच्चों के लिए लिखी  हुई दो नज्में शामिल की गईं। पाकिस्तान में बहावलपुर विश्वविद्यालय और पंजाब विश्वविद्यालय की दो छात्राओं ने एम.ए. के लिए आप पर थीसिस लिखी।

विदेश यात्राएँ: सोवियत संघ, अमरीका, कनाडा, यू.के., हालैंड, नार्वे, फ्रांस, सऊदी अरब आदि।
फ़िल्मी सरगर्मिया: पाकिस्तान की पहली फ़िल्म ‘तेरी याद’ से नग्मानिगारी का आरंभ किया और अब तक यह सिलसिला जारी है। तक़रीबन अढ़ाई हज़ार गीत लिख चुके हैं।
फ़िल्म एवार्ड्स: पाकिस्तान सरकार का नेशनल फ़िल्म एवार्ड हासिल करने के अलावा दूसरी संस्थाओं की तरफ़ से बीस एवार्ड और दो स्वर्णपदक।

 

तीन कहानियाँ

 

 

कल रात इक रईस की बाँहों में झूमकर,
लौटी तो घर किसान की बेटी ब-सद मलाल1,
ग़ैज़ो-ग़जब से2 बाप का खूँ खौलने लगा,
दरपेश3 आज भी था मगर पेट का सवाल।

कल रात इक सड़क पे कोई नर्म-नर्म शै,
बेताब मेरे पाँव की ठोकर से हो गई,
मैं जा रहा था अपने खयालात में मगन,
हल्की-सी एक चीख़ फ़ज़ाओं में4 खो गई।

कल रात इक किसान के घर से धुआँ उठा,
बस्ती में ग़लग़ला5-सा हुआ-आग लग गई,
इस रंज से किसान का दिल पाश-पाश था,
रक्साँ6 थी चौधरी के लबों पर मगर हँसी।

 

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1.अत्यन्त दुख के साथ 2.क्रोधवश 3.सम्मुख 4.वातावरण 5.शोर 6.नृत्यशील

 

शम्मअ़-ए-अन्जुमन1

 

 

मैं ज़िन्दगी की हर-इक साँस को टटोल चुकी
मैं लाख बार मुहब्बत के भेद खोल चुकी
मैं अपने आपको तनहाइयों में तोल चुकी
मैं जल्वतों में2 सितारों के बोल बोल चुकी
-मगर कोई भी न माना

वफा़ के दाम3 बिछाए गए क़रीने से4
मगर किसी ने भी रोका न मुझको जीने से
किसी ने जाम चुराए हैं मेरे सीने से
किसी ने इत्र निचोड़ा मेरे पसीने से
-किसी को ग़ैर न जाना

मेरी नज़र की गिरह खुल गई तो कुछ भी न था
जो बाज़ुओं में कहीं तुल गई तो कुछ भी न था
मेरे लबों से5 शफ़फ़6 धुल गई तो कुछ भी न था
जवाँ रही, सो रही, घुल गई तो कुछ भी न था।
-कि लुट चुका था ख़ज़ाना

रही न साँस में ख़ुशबू तो भाग फूट गए
गया शबाब7 तो अपने पराए छूट गए
कोई तो छोड़ गए कोई मुझको लूट गए
महल गिरे सो गिरे, झोंपडे भी टूट गए
-रहा न कोई ठिकाना

 

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1.महफ़िल का दीपक (सुन्दरी) 2.सबके सामने। 3.जाल। 4.सुरीति से। 5.होंठों से। 6.उषा की लाली।
7.यौवन।

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