मनोरंजक कथाएँ >> अद्भुत द्वीप अद्भुत द्वीपश्रीकान्त व्यास
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जे.आर.विस के प्रसिद्ध उपन्यास स्विस फेमिली रॉबिन्सन का सरल हिन्दी रूपान्तर...
अर्नेस्ट की रुचि भाषाओं से बिक्कुल अलग हटकर कविता में थी। इसलिए वह हमारी मदद से फ्रेंच, जर्मनी तथा अंग्रेजी काव्य-साहित्य का अध्ययन करने लगा। पत्नी और नन्हें फ्रांसिस को भी मैंने कुछ भाषाओं की वर्णमाला का अभ्यास कराना शुरू करा दिया। बरसात जब तक रुकी, हम लोगों ने अपने-अपने अध्ययन में काफी प्रगति कर ली थी। मैं अच्छी तरह अंग्रेजी बोलने लगा था, जैक भी थोड़ा रुक-रुककर स्पेनिश और इटैलियन बोल लेता था और फ्रिट्ज टूटी-फूटी मलय समझने और बोलने लगा था। सबसे ज्यादा प्रगति की थी अर्नेस्ट ने। उसने बहुत-सी फ्रेंच, जर्मन और अंग्रेजी कविताएं मुंहजबानी याद कर ली थीं।
पन्द्रह दिन बाद आसमान खुला और बारिश खत्म हुई। तब मुझे ख्याल आया कि अब बाहर निकलकर देखना चाहिए कि घोंसले की क्या हालत है? सब्जियों की बाड़ी और दूसरे पौधे कैसे हैं? इसलिए हम लोग तैयार होकर घोंसले की ओर चल दिए। रास्ते में वह तालाब भी पड़ता था, जिसमें हमने बत्तखों के रहने की व्यवस्था की थी। सोचा, उधर से ही उन्हें भी देखते चलेंगे। लेकिन हम लोग मुश्किल से एक फर्लांग ही गए होंगे कि अचानक फ्रिट्ज ठिठक गया और चिल्ला पड़ा, ''पापा...पापा! अजगर।'' मैंने देखा उसका चेहरा भय से पीला पड़ गया था और पैर थरथरा रहे थे।
''क्या हुआ, फ्रिट्ज?'' अचानक मेरे मुंह से निकल गया।
''वह देखो,'' फ्रिट्ज ने तालाब के दूसरी ओर इशारा किया।
हमने देखा, हमसे लगभग एक फर्लांग दूर सांप जैसी कोई चीज से रही है। सचमुच वह सांप ही था! और सांप भी ऐसा-वैसा नहीं! अजगर!! उसका शरीर इतना भारी-भरकम और लम्बा-चौड़ा था कि उसे पहचानने में हमें तनिक भी परेशानी नही हुई। हम बड़ी आसानी से देख रहे थे कि वह अपना शरीर किस तरह सिकोड़ और फुला रहा है। इतने में ही उसने अपने फन को सीधा खड़ा कर दिया। उस समय उसकी ऊँचाई लगभग बीस फुट हो गई थी। मैंने सोचा, यह अच्छा मौका है। इसे मार देना ही अच्छा रहेगा। नहीं तो हम सबको दिन-रात खतरा बना रहेगा। न हम लोग आजादी से घूम-फिर सकेंगे, न हमारे जानवर ही। इसलिए झटपट मैंने अपनी बंदूक कंधे से उतार ली और निशाना साधने लगा। फ्रिट्ज, अर्नेस्ट और जैक से भी मैंने जल्दी करने को कहा। उन्होंने भी वैसा ही किया और अगले ही क्षण धांय-धांय...चार आवाजें हुई। लेकिन दुर्भाग्य से अजगर हमसे इतनी दूर था कि निशाना ठीक नहीं बैठा। वह चौकन्ना होकर उसी तालाब में रेंगकर जा छुपा, जिसमें हमारी बत्तखें थीं।
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