लोगों की राय

मनोरंजक कथाएँ >> अद्भुत द्वीप

अद्भुत द्वीप

श्रीकान्त व्यास

प्रकाशक : शिक्षा भारती प्रकाशित वर्ष : 2019
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5009
आईएसबीएन :9788174830197

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

161 पाठक हैं

जे.आर.विस के प्रसिद्ध उपन्यास स्विस फेमिली रॉबिन्सन का सरल हिन्दी रूपान्तर...


जब फ्रिट्‌ज किनारे आ गया तो मैंने देखा उसकी नाव असंख्य सीप और मोतियों से लदी हुई थी। उसने बताया कि ये सब उसने पड़ोस के एक टापू पर खोजे हैं। जैक, अर्नेस्ट और फ्रांसिस आश्चर्य से उन सीप और मोतियों को बड़ी देर तक निहारते रहे। मैं भी मन-ही-मन सोचने लगा कि काश, यह सब मैं योरोप के देशों में ले जा पाता, जहां इनकी कीमत हजारों और लाखों शिलिंग-पौंडों में आंकी जाती। लेकिन मेरी पत्नी एलिजाबेथ का ध्यान इन सब चीजों की ओर नहीं था। उसके दिल में सिर्फ ममता उमड़ रही थी और वह बार-बार फ्रिट्‌ज के मस्तक को चूमती हुई ईश्वर को धन्यवाद दे रही थी कि उसका प्यारा बच्चा सही-सलामत लौट आया था। एलिजाबेथ की ममता को देखकर मेरा भी मन फ्रिट्‌ज के प्रति अपार स्नेह और वात्सल्य से भर उठा।

एकान्त में जब फ्रिट्‌ज से मेरी बातें हुई तो उसने बताया, ''पापा, उस टापू पर मोतियों का बहुत बड़ा खजाना है, इतना बड़ा कि अगर हम वहां से यह सब चीजें किसी तरह योरोप ले जा सकें तो कुछ ही दिनों में हम मालामाल हो सकते हैं। इसी बीच एक ऐसी चीज का भी पता चला है जो इन सबसे बहुत अधिक मूल्यवान है। जब मैं मोतियों के लिए सीप खोलता था तो उनके अन्दर के कीड़े को लेने और झपटने के लिए झुंड की झुंड समुद्री चिड़िया मेरे चारों ओर जमा हो जातीं। तभी एकाएक मैंने देखा कि एक चिड़िया के पैर में एक कपड़े का टुकड़ा बंधा हुआ है। मेरे मन में एक कौतूहल-सा जाग उठा। साथ ही यह भय भी था कि वह डरकर कहीं भाग न जाए। इसलिए मैंने बडी सावधानी के साथ उसे लालच देने की कोशिश की और पास बुलाना चाहा। इस काम में मुझे अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ा। वह चिडिया मेरे पास आ गई। मैंने गोश्त का एक काफी बड़ा टुकड़ा उसके आगे डाल दिया। जब वह उसे खाने में तल्लीन हो गई तो मैंने धीरे से उसके पंखों में बंधा कपड़ा खोल लिया। कपड़े पर लिखा था, 'मुझे बचाओ! मेरा जहाज टूट गया है। साथ के बहुत-से लोग डूब गए हैं। कुछ लोग जीवन-नौका में बैठकर बच भी गए हैं। लेकिन मैं न तो डूबा ही, न जीवन-नौका में ही चढ़ पाया। मैं यहीं छूट गया हूं यहां-इस धुएं वाली चट्टान पर।' पापा, आप सोच सकते हैं कि यह सब पढ़कर उस समय मुझे कितना आश्चर्य और कितनी खुशी हुई होगी। मैंने देखा, चिड़िया के आगे का गोश्त खत्म ही होने वाला था। मैंने झटपट उसी कपड़े के दूसरी और दो वाक्य लिखे-'हिम्मत मत हारना! हम आ रहे हैं।' और उसके पैर में बांध दिया। जब मेरा यह काम पूरा हो गया तो मैंने बड़ी सावधानी से उसे आसमान में उड़ा दिया। उम्मीद है, मेरा संदेश अब तक उस आदमी को मिल गया होगा। चाहता तो मैं यह था कि उसी समय उसकी खोज में चल पड़ता, लेकिन मैंने सोचा कि पहले आपको इसकी सूचना दे देनी चाहिए।''

यह कहानी सुनकर मेरे मन में भी एक कौतूहल जाग उठा। मैंने फ्रिट्‌ज की बुद्धि की बड़ी तारीफ की और अगले ही दिन चल पड़ने को कह दिया। साथ ही हम दोनों ने यह भी तय किया कि अभी इस सारी घटना को गुप्त ही रखना चाहिए, क्योंकि पता नहीं वह चिड़िया उस जगह से कब उड़ी है और वह नाविक अभी तक जीवित भी है या नहीं। इसलिए बिना पूरी बात का पता चले लोगों में उत्सुकता जगाना ठीक नहीं रहेगा। इसलिए यह योजना बनी कि दूसरे दिन तड़के ही फ्रिट्‌ज अपनी नाव लेकर चुपचाप धुएं वाली चट्टान की खोज करने चल देगा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book