मनोरंजक कथाएँ >> बहादुर टॉम बहादुर टॉमश्रीकान्त व्यास
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मार्क ट्वेन का प्रसिद्ध उपन्यास टाम सॉयर का सरल हिन्दी रूपान्तर....
Bahadur Tom a hindi book by Srikant Vyas - बहादुर टॉम - श्रीकान्त व्यास
प्रस्तुत है पुस्तक के कुछ अंश
1
टॉम !
कोई उत्तर नहीं।
‘‘ओ टॉम ! आखिर हो क्या गया है इस लड़के को ? ओ टॉम !’’
बूढ़ी पाली मौसी ने अपना चश्मा नाक पर नीचे गिराकर, उसके ऊपर से कमरे के चारों ओर नजर दौड़ाई। फिर उन्होंने चश्मे को माथे पर चढ़ाकर चारों ओर देखा। चश्मे के अन्दर से शायद ही कभी उन्होंने देखने की कोशिश की हो। और सच तो यह है कि वह चश्मा आंख की कमजोरी के कारण नहीं, फैशन के लिए लिया गया था। वे थोड़ी देर तक उलझन में पड़ी रहीं, फिर कर्कश स्वर में तो नहीं, किन्तु स्वर को इतना तेज बनाकर जरूर बोलीं कि कम से कम कमरे में रखे फर्नीचर उनकी बात सुन सकें, ‘‘आज अगर मैं तुझे पकड़ पाऊं तो मैं.....’’
किन्तु वे अपनी बात पूरी नहीं कर सकीं, क्योंकि उन्होंने झुककर बिस्तर के नीचे भाड़ू पीटना शुरू कर दिया था।
किन्तु झाड़ू पीटकर वे बिस्तर के नीचे से एक बिल्ली के अतिरिक्त और कुछ नहीं निकाल सकीं।
‘‘ओफ, ऐसा लड़का तो मैंने कहीं देखा ही नहीं !’’
दरवाजे पर जाकर उन्होंने बाग में फैले टमाटर के पौधों और ‘जिम्पसन’ के वृक्षों के बीच भी देखा, मगर कहीं भी टॉम का पता न था। सो अपने स्वर को काफी ऊंचा करके चिल्लाई, ‘‘ओ....टॉम !’’
तभी उनके पीछे हल्की-सी आवाज हुई और उन्होंने, तुरंत मुड़कर धर दबोचा भागते हुए टॉम को। टॉम भाग नहीं सका। ‘‘हूं ! मुझे इस अलमारी का तो खयाल ही नहीं आया था। इसमें घुसकर क्या कर रहा था तू ?’’
‘‘कुछ भी तो नहीं।’’
‘‘कुछ नहीं ! जरा अपने हाथों और मुंह को तो देख ! यह क्या चुपड़ रखा है हाथ-मुंह में ?’’
‘‘मुझे कुछ पता नहीं, मौसी !’’
‘‘मगर मुझे पता है ! यह है मुरब्बा, है न ? सैकड़ों बार कह चुकी हूं तुझसे कि मुरब्बा न छुआ कर, वरना तेरी चमड़ी उधेड़कर रख दूंगी मारते-मारते ! ला, वह कोड़ा मुझे दे !’’
और कोड़ा हवा में नाच उठा। टॉम के मुंह पर हवाइयां उड़ने लगीं।
‘‘अरे बाप रे ! जरा अपने पीछे तो देखो मौसी !’’
मौसी तेजी से घूम गई और खतरे से बचने के लिए अपने स्कर्ट को झाड़ने लगी। बस, टॉम तेजी से भाग खड़ा हुआ। पलक झपकते ही चारदीवारी को एक छलांग में पार कर, वह गायब हो गया। क्षण-भर पाली मौसी आश्चर्य में पड़ी खड़ी रह गई, फिर स्नेहसिक्त हंसी फूट पड़ी उनके मुख से।
‘‘भाड़ में जाए यह लड़का ! पता नहीं क्यों, मैं कभी कुछ समझ ही नहीं पाती। जाने कितनी बार इस तरह के चकमे दिए होंगे इस लड़के ने मुझे, मगर मैं हूं कि अभी तक उसकी चालाकियों को समझ नहीं पाई। अरे, बूढ़ा तोता कहीं राम-राम पढ़ता है ! लेकिन यह चकमा देने के तरीके भी तो बहुत-से जानता है। एक बार जो तरीका इस्तेमाल कर लेता है, उसे दूसरी बार इस्तेमाल नहीं करता। फिर कोई कैसे जाने कि कब कौन-सी चालाकी चलने जा रहा है यह !....मैं जानती हूं कि इस बच्चे के प्रति अपने कर्तव्य का पूरी तरह पालन नहीं कर पा रही हूं मैं। पुस्तकों में लिखा है कि डंडे को अलग रखना बच्चे को खराब करना है। मगर वह बेचारी मेरी स्वर्गीया बहन का बच्चा है, और मैं अपने हृदय को इतना कठोर नहीं बना पाती कि उसकी पिटाई करूं। जब मैं उसे मनमानी करने देती हूं तो मेरी अन्तरात्मा मुझे कोसती है, और कभी उसे पीट देती हूं तो मेरा बूढ़ा हृदय दुख से भर उठता है। ओह ! स्त्री का जीवन कितना कुंठामय होता है।....मैं जानती हूं, आज दोपहर-भर वह ‘हूकी’ खेलेगा, और मैं बच्चू को दंड देने के लिए कल दिन-भर काम में लगाकर समझ लूंगी मेरा फर्ज पूरा हो गया। शनिवार के दिन उससे काम लेना कठोरता हो सकती है, क्योंकि सभी बच्चे शनिवार को छुट्टी मनाते हैं। मगर क्या करूं, मुझे उसके प्रति अपना कर्तव्य कुछ-न-कुछ तो निभाना ही है। अगर मैं ऐसा नहीं करूंगी तो लड़का बर्बाद हो जाएगा।
और टॉम सचमुच उस दिन दोपहर-भर ‘हूकी’ खेलता रहा।
घर लौटने पर वह दोपहर का खाना खा रहा था और बीच-बीच में मौका पाने पर चीनी- चुरा-चुराकर फांकता जा रहा था, तभी पाली मौसी ने उससे बड़े टेढ़े-मेढ़े सवाल पूछने शुरू कर दिए। वे उसे कुछ ऐसा उलझा देना चाहती थी कि वह स्वयं ही अपनी दिन-भर की शैतानियां बयान कर डाले। अन्य सरल हृदय व्यक्तियों की तरह पाली मौसी भी समझती थीं कि उनके जैसा कूटनीतिज्ञ शायद ही कोई और होगा, और यही समझकर टॉम को अपने प्रश्नों के जाल में फंसाने की कोशिश भी करती थीं। मगर टॉम भी पूरा घाघ था। पाली मौसी की हर चाल का आभास जैसे पहले से ही पा लेता था वह, और बड़ी सफाई से उनके जाल से बच निकलता था।
आज भी मौसी के प्रश्नों का बहुत संभल-संभलकर उत्तर दिया उसने, और उनकी हर चाल से कतराने की कोशिश करता रहा।
अंत में मौसी ने अपनी समझ से सबसे टेढ़ा प्रश्न किया, ‘‘क्यों टॉम, खेल में तेरी कमीज का कालर भी नहीं फटा, जिसे मैंने कल ही सिया था ? जरा अपनी जैकट तो खोल !’’
मगर यह प्रश्न सुनकर टॉम के चेहरे पर रही-सही परेशानी भी गायब हो गई। उसने अपनी जैकेट का बटन खोल दिया। कालर ज्यों-का-त्यों सिला हुआ था।
मौसी हारकर बोली, ‘‘देख टॉम, मुझे अच्छी तरह पता है कि तू आज दिन-भर ‘हूकी’ खेला है और नदी में तैरा है। फिर भी आज मैं तुझे माफ किए देती हूं। लेकिन आगे के लिए याद रख, ऐसी हरकतें करेगा तो अच्छा नहीं होगा !’’
उन्हें इस बात का दुःख तो हो रहा था कि उनकी चाल नहीं चल सकी, किंतु इस बात की खुशी भी थी कि कम-से-कम टॉम का व्यवहार आज्ञाकारी लड़के की तरह तो था।
लेकिन तभी टॉम का छोटा भाई सिड बोल उठा, ‘‘मगर मौसी, तुमने तो इसका कालर सफेद डोरे से सिया था, पर इसका कालर इस समय काले डोरे से सिया देख रहा है।’’
‘‘हां, हां, मैंने तो सफेद डोरे से ही सिया था। क्यों रे टॉम ?’’
किंतु टॉम ने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया। वह कमरे के बाहर चला गया और जाते-जाते सिड को पिटाई करने की धमकी भी देता गया।
एक सुरक्षित स्थान पर पहुंचकर उसने अपनी जैकेट में भीतर की तरफ खोंसी दो बड़ी सुइयों को ध्यान से देखा। एक सुई में सफेद डोरा पड़ा हुआ था और दूसरी में काला। अपने-आप ही जैसे उसके मुंह से निकल गया-‘‘सिड बीच में न टपक पड़ता तो मौसी कुछ भांप न पातीं। डोरे की तरफ उनका ध्यान ही कहां गया था ! ...मुश्किल तो यह है कि मौसी कभी मेरे कपड़े काले डोरे से सी देती हैं, कभी सफेद से। और मैं हूं कि इस तरफ ध्यान ही नहीं दे पाता। मगर सिड को तो मैं इसका मजा चखाए बिना मानूंगा नहीं।’’
किंतु दो मिनट में ही वह इस सारे झगड़े को भूल गया। इसलिए नहीं कि उसकी परेशानियां किसी अन्य व्यक्ति की परेशानियों से कम बोझिल थीं, बल्कि इसलिए कि एक नई चीज में ध्यान लग गया था उसका, जिसके आगे सब-कुछ भूल जाना स्वाभाविक ही था। अभी-अभी उसने एक तरीके से सीटी बजाना सीखा था और एकांत में वह अच्छी तरह उसका अभ्यास कर लेना चाहता था। सो टॉम सीटी बजाता हुआ घर से निकल पड़ा।
गर्मी की शामें जरा लंबी होती हैं, सो अभी अंधेरा नहीं हुआ था। टॉम ने एकाएक सीटी बजाना बन्द कर दिया। उसके सामने एक अपरिचित लड़का खड़ा था—उससे कुछ लंबा और बहुत बढ़िया कपड़े पहने हुए। दोनों एक-दूसरे से बोले तो नहीं, पर एक-दूसरे को बुरी तरह घूरते हुए, दोनों गोलाई में घूमते रहे और फिर उनमें तू-तू, मैं-मैं शुरू हो गई, जो बढ़कर पहले हाथा-पाई और फिर उठा-पटक में परिवर्तित हो गई।
उस दिन काफी रात बीते, वह घर लौटा। जब बड़ी सावधानी से वह खिड़की पर चढ़ा तो उसने मौसी को अपनी ही घात में बैठी पाया। मौसी ने जब लड़ाई-झगड़े के कारण बुरी तरह फटे हुए उसके कपड़ों को देखा, तो उसकी शनिवार की छुट्टी को अत्यधिक कार्य-व्यस्त बना देने का उनका इरादा दृढ़ निश्चय में परिवर्तित हो गया।
कोई उत्तर नहीं।
‘‘ओ टॉम ! आखिर हो क्या गया है इस लड़के को ? ओ टॉम !’’
बूढ़ी पाली मौसी ने अपना चश्मा नाक पर नीचे गिराकर, उसके ऊपर से कमरे के चारों ओर नजर दौड़ाई। फिर उन्होंने चश्मे को माथे पर चढ़ाकर चारों ओर देखा। चश्मे के अन्दर से शायद ही कभी उन्होंने देखने की कोशिश की हो। और सच तो यह है कि वह चश्मा आंख की कमजोरी के कारण नहीं, फैशन के लिए लिया गया था। वे थोड़ी देर तक उलझन में पड़ी रहीं, फिर कर्कश स्वर में तो नहीं, किन्तु स्वर को इतना तेज बनाकर जरूर बोलीं कि कम से कम कमरे में रखे फर्नीचर उनकी बात सुन सकें, ‘‘आज अगर मैं तुझे पकड़ पाऊं तो मैं.....’’
किन्तु वे अपनी बात पूरी नहीं कर सकीं, क्योंकि उन्होंने झुककर बिस्तर के नीचे भाड़ू पीटना शुरू कर दिया था।
किन्तु झाड़ू पीटकर वे बिस्तर के नीचे से एक बिल्ली के अतिरिक्त और कुछ नहीं निकाल सकीं।
‘‘ओफ, ऐसा लड़का तो मैंने कहीं देखा ही नहीं !’’
दरवाजे पर जाकर उन्होंने बाग में फैले टमाटर के पौधों और ‘जिम्पसन’ के वृक्षों के बीच भी देखा, मगर कहीं भी टॉम का पता न था। सो अपने स्वर को काफी ऊंचा करके चिल्लाई, ‘‘ओ....टॉम !’’
तभी उनके पीछे हल्की-सी आवाज हुई और उन्होंने, तुरंत मुड़कर धर दबोचा भागते हुए टॉम को। टॉम भाग नहीं सका। ‘‘हूं ! मुझे इस अलमारी का तो खयाल ही नहीं आया था। इसमें घुसकर क्या कर रहा था तू ?’’
‘‘कुछ भी तो नहीं।’’
‘‘कुछ नहीं ! जरा अपने हाथों और मुंह को तो देख ! यह क्या चुपड़ रखा है हाथ-मुंह में ?’’
‘‘मुझे कुछ पता नहीं, मौसी !’’
‘‘मगर मुझे पता है ! यह है मुरब्बा, है न ? सैकड़ों बार कह चुकी हूं तुझसे कि मुरब्बा न छुआ कर, वरना तेरी चमड़ी उधेड़कर रख दूंगी मारते-मारते ! ला, वह कोड़ा मुझे दे !’’
और कोड़ा हवा में नाच उठा। टॉम के मुंह पर हवाइयां उड़ने लगीं।
‘‘अरे बाप रे ! जरा अपने पीछे तो देखो मौसी !’’
मौसी तेजी से घूम गई और खतरे से बचने के लिए अपने स्कर्ट को झाड़ने लगी। बस, टॉम तेजी से भाग खड़ा हुआ। पलक झपकते ही चारदीवारी को एक छलांग में पार कर, वह गायब हो गया। क्षण-भर पाली मौसी आश्चर्य में पड़ी खड़ी रह गई, फिर स्नेहसिक्त हंसी फूट पड़ी उनके मुख से।
‘‘भाड़ में जाए यह लड़का ! पता नहीं क्यों, मैं कभी कुछ समझ ही नहीं पाती। जाने कितनी बार इस तरह के चकमे दिए होंगे इस लड़के ने मुझे, मगर मैं हूं कि अभी तक उसकी चालाकियों को समझ नहीं पाई। अरे, बूढ़ा तोता कहीं राम-राम पढ़ता है ! लेकिन यह चकमा देने के तरीके भी तो बहुत-से जानता है। एक बार जो तरीका इस्तेमाल कर लेता है, उसे दूसरी बार इस्तेमाल नहीं करता। फिर कोई कैसे जाने कि कब कौन-सी चालाकी चलने जा रहा है यह !....मैं जानती हूं कि इस बच्चे के प्रति अपने कर्तव्य का पूरी तरह पालन नहीं कर पा रही हूं मैं। पुस्तकों में लिखा है कि डंडे को अलग रखना बच्चे को खराब करना है। मगर वह बेचारी मेरी स्वर्गीया बहन का बच्चा है, और मैं अपने हृदय को इतना कठोर नहीं बना पाती कि उसकी पिटाई करूं। जब मैं उसे मनमानी करने देती हूं तो मेरी अन्तरात्मा मुझे कोसती है, और कभी उसे पीट देती हूं तो मेरा बूढ़ा हृदय दुख से भर उठता है। ओह ! स्त्री का जीवन कितना कुंठामय होता है।....मैं जानती हूं, आज दोपहर-भर वह ‘हूकी’ खेलेगा, और मैं बच्चू को दंड देने के लिए कल दिन-भर काम में लगाकर समझ लूंगी मेरा फर्ज पूरा हो गया। शनिवार के दिन उससे काम लेना कठोरता हो सकती है, क्योंकि सभी बच्चे शनिवार को छुट्टी मनाते हैं। मगर क्या करूं, मुझे उसके प्रति अपना कर्तव्य कुछ-न-कुछ तो निभाना ही है। अगर मैं ऐसा नहीं करूंगी तो लड़का बर्बाद हो जाएगा।
और टॉम सचमुच उस दिन दोपहर-भर ‘हूकी’ खेलता रहा।
घर लौटने पर वह दोपहर का खाना खा रहा था और बीच-बीच में मौका पाने पर चीनी- चुरा-चुराकर फांकता जा रहा था, तभी पाली मौसी ने उससे बड़े टेढ़े-मेढ़े सवाल पूछने शुरू कर दिए। वे उसे कुछ ऐसा उलझा देना चाहती थी कि वह स्वयं ही अपनी दिन-भर की शैतानियां बयान कर डाले। अन्य सरल हृदय व्यक्तियों की तरह पाली मौसी भी समझती थीं कि उनके जैसा कूटनीतिज्ञ शायद ही कोई और होगा, और यही समझकर टॉम को अपने प्रश्नों के जाल में फंसाने की कोशिश भी करती थीं। मगर टॉम भी पूरा घाघ था। पाली मौसी की हर चाल का आभास जैसे पहले से ही पा लेता था वह, और बड़ी सफाई से उनके जाल से बच निकलता था।
आज भी मौसी के प्रश्नों का बहुत संभल-संभलकर उत्तर दिया उसने, और उनकी हर चाल से कतराने की कोशिश करता रहा।
अंत में मौसी ने अपनी समझ से सबसे टेढ़ा प्रश्न किया, ‘‘क्यों टॉम, खेल में तेरी कमीज का कालर भी नहीं फटा, जिसे मैंने कल ही सिया था ? जरा अपनी जैकट तो खोल !’’
मगर यह प्रश्न सुनकर टॉम के चेहरे पर रही-सही परेशानी भी गायब हो गई। उसने अपनी जैकेट का बटन खोल दिया। कालर ज्यों-का-त्यों सिला हुआ था।
मौसी हारकर बोली, ‘‘देख टॉम, मुझे अच्छी तरह पता है कि तू आज दिन-भर ‘हूकी’ खेला है और नदी में तैरा है। फिर भी आज मैं तुझे माफ किए देती हूं। लेकिन आगे के लिए याद रख, ऐसी हरकतें करेगा तो अच्छा नहीं होगा !’’
उन्हें इस बात का दुःख तो हो रहा था कि उनकी चाल नहीं चल सकी, किंतु इस बात की खुशी भी थी कि कम-से-कम टॉम का व्यवहार आज्ञाकारी लड़के की तरह तो था।
लेकिन तभी टॉम का छोटा भाई सिड बोल उठा, ‘‘मगर मौसी, तुमने तो इसका कालर सफेद डोरे से सिया था, पर इसका कालर इस समय काले डोरे से सिया देख रहा है।’’
‘‘हां, हां, मैंने तो सफेद डोरे से ही सिया था। क्यों रे टॉम ?’’
किंतु टॉम ने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया। वह कमरे के बाहर चला गया और जाते-जाते सिड को पिटाई करने की धमकी भी देता गया।
एक सुरक्षित स्थान पर पहुंचकर उसने अपनी जैकेट में भीतर की तरफ खोंसी दो बड़ी सुइयों को ध्यान से देखा। एक सुई में सफेद डोरा पड़ा हुआ था और दूसरी में काला। अपने-आप ही जैसे उसके मुंह से निकल गया-‘‘सिड बीच में न टपक पड़ता तो मौसी कुछ भांप न पातीं। डोरे की तरफ उनका ध्यान ही कहां गया था ! ...मुश्किल तो यह है कि मौसी कभी मेरे कपड़े काले डोरे से सी देती हैं, कभी सफेद से। और मैं हूं कि इस तरफ ध्यान ही नहीं दे पाता। मगर सिड को तो मैं इसका मजा चखाए बिना मानूंगा नहीं।’’
किंतु दो मिनट में ही वह इस सारे झगड़े को भूल गया। इसलिए नहीं कि उसकी परेशानियां किसी अन्य व्यक्ति की परेशानियों से कम बोझिल थीं, बल्कि इसलिए कि एक नई चीज में ध्यान लग गया था उसका, जिसके आगे सब-कुछ भूल जाना स्वाभाविक ही था। अभी-अभी उसने एक तरीके से सीटी बजाना सीखा था और एकांत में वह अच्छी तरह उसका अभ्यास कर लेना चाहता था। सो टॉम सीटी बजाता हुआ घर से निकल पड़ा।
गर्मी की शामें जरा लंबी होती हैं, सो अभी अंधेरा नहीं हुआ था। टॉम ने एकाएक सीटी बजाना बन्द कर दिया। उसके सामने एक अपरिचित लड़का खड़ा था—उससे कुछ लंबा और बहुत बढ़िया कपड़े पहने हुए। दोनों एक-दूसरे से बोले तो नहीं, पर एक-दूसरे को बुरी तरह घूरते हुए, दोनों गोलाई में घूमते रहे और फिर उनमें तू-तू, मैं-मैं शुरू हो गई, जो बढ़कर पहले हाथा-पाई और फिर उठा-पटक में परिवर्तित हो गई।
उस दिन काफी रात बीते, वह घर लौटा। जब बड़ी सावधानी से वह खिड़की पर चढ़ा तो उसने मौसी को अपनी ही घात में बैठी पाया। मौसी ने जब लड़ाई-झगड़े के कारण बुरी तरह फटे हुए उसके कपड़ों को देखा, तो उसकी शनिवार की छुट्टी को अत्यधिक कार्य-व्यस्त बना देने का उनका इरादा दृढ़ निश्चय में परिवर्तित हो गया।
2
शनिवार की गर्म सुबह। हर तरफ जीवन मुस्करा रहा था, विहंस रहा था। हर व्यक्ति के हृदय में गीतों की धुनें गूंज रही थीं और नौजवान दिलों का संगीत तो उमड़-उमड़कर होंठों में छलक ही पड़ रहा था।
टॉम हाथ में सफेदी की बाल्टी और कूची लिए हुए घर से निकलकर चारदीवारी का निरीक्षण करने लगा। उसके चेहरे पर उदासी छा गई। चारदीवारी तीस गज लंबी और नौ फुट ऊंची थी। उसे ऐसा लगने लगा जैसे जीवन में कोई रस न हो, जैसे जीवन एक भार बन गया हो। एक आह भरकर उसने कूची को सफेदी में डुबोकर चारदीवारी के सबसे ऊपर वाले हिस्से में चलाया। कई बार चारदीवारी पर कूची चलाने के बाद टॉम निराश-सा एक वृक्ष की निचली डाल पर जा बैठा। तभी घर का नौकर जिम हाथ में बाल्टी लिए गुनगुनाता हुआ निकला। टाउन-पंप से पानी लाने में टॉम को हमेशा से घृणा थी, किंतु इस समय वह काम उसे घृणित नहीं लगा। कम-से-कम पंप पर कुछ लड़के-लड़कियों का साथ तो रहेगा, जो पानी पीने के लिए अपनी बारी का इंतजार करते हुए वहां हंसते-खेलते रहते हैं।
टॉम बोला, ‘‘सुन जिम, अगर मेरी जगह पुताई करने को तैयार हो, तो ला, मैं पानी ला दूं !’’
बड़े जोर से सिर हिलाकर जिम बोला, ‘‘नहीं मास्टर टॉम, नहीं ! मौसी ने मुझे हुक्म दिया है की सीधे पंप पर जाकर पानी ले आऊं। उन्होंने कहा है कि उन्हें शक है कि आप मुझसे पुताई करने को कहेंगे। इसलिए उन्होंने मुझे हुक्म दिया है मैं अपना काम करूं, बीच में कहीं रुकूं तक नहीं।’’
‘‘उन्होंने क्या कहा, क्या नहीं कहा, इसका खयाल न करो, जिम ! वे हमेशा ही इसी तरह की बातें बका करती हैं। लाओ, मुझे बाल्टी दो, मैं एक मिनट में पानी भर लाता हूं। वे कुछ जान भी न पाएँगी।’’
‘‘नहीं, मास्टर टॉम, मौसी मेरी बहुत बुरी तरह कुटम्मस करेंगी !’’
‘‘अरे, मौसी भला कभी किसी को मारती हैं, जो तुझे ही मारेंगी ? धमकियां वे जरूर बड़ी भयानक-भयानक देती हैं, मगर धमकियों से चोट तो लगती नहीं। सुन जिम, मैं तुझे कांच की गोलियां दूंगा। मान ले न मेरी बात !’’
जिम का मन डोलने लगा। और जब टॉम ने अपने अंगूठे का घाव दिखाने का लालच दिया, तो जिम इस लोभ का संवरण नहीं कर सका। बाल्टी जमीन पर रखकर उसने कूची ले ली। किंतु दूसरे ही क्षण जिम हाथ में बाल्टी लेकर तेजी से भागा। टॉम घबराकर कूची लेकर पुताई में लग गया और पाली मौसी विजयोल्लास से भरी हुई हाथ में स्लीपर लिए हुए, मैदान से घर की ओर चल दीं।
बड़े उदास-भाव से टॉम पुताई में लगा रहा। तभी बेन रोगर्स सेब खाता, स्टीमर चलाने की नकल करता, उछलता-कूदता आता दिखाई दिया। टॉम के निकट आकर उसने स्टीमर के कप्तान की हैसियत से स्टीमर रोकने का आदेश दिया और फिर स्टीमर रुकने की-सी आवाज मुंह से निकालता हुआ रुक गया।
टॉम पुताई में लगा रहा। उसने बेन की तरफ ध्यान भी नहीं दिया।
बेन क्षण-भर उसे देखता रहा, फिर बोला, ‘‘ओहो, तो जनाब, आप काम में लगे हैं !’’
टॉम ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने एक कलाकार की नजर से अभी-अभी पुते स्थल को देखा। फिर कूची को मजा लेते हुए चारदीवारी पर हल्के-से चलाया और फिर उस पुताई का निरीक्षण करने लगा पहले ही की तरह। बेन टॉम की बगल में खड़ा हुआ। सेब देखकर टॉम के मुंह में पानी भर आया, किंतु फिर भी वह अपने काम में ध्यान लगाए रहा।
बेन बोला, ‘‘कहो दोस्त, आज भी काम करना पड़ रहा है तुम्हें ?’’
‘‘अरे बेन ! मेरा तो ध्यान ही तुम्हारी तरफ नहीं गया।’’
‘‘मैं तो आज तैरने जा रहा हूं, टॉम ! तुम्हारी भी तो इच्छा हो रही होगी चलने की ! मगर तुम्हें काम करना है, है न ?’’
जरा देर टॉम विचारों में खोया खड़ा रहा, फिर बोला, ‘‘तुम इसे काम कहते हो ?’’
‘‘हां, काम नहीं तो और क्या है यह ?’’
टॉम ने फिर पुताई शुरू कर दी और लापरवाही से कहने लगा, ‘‘हो सकता है यह काम ही हो, हो सकता है यह काम न भी हो। मगर मैं तो केवल इतना जानता हूं कि टॉम सायर को इसमें मजा आ रहा है।’’
‘‘तो तुम्हारा मतलब यह है कि यह काम तुम्हें पसन्द है ?’’
‘‘पसंद है ? भई, न पसंद होने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता। किसी लड़के को रोज-रोज चारदीवारी की पुताई करने का मौका भला मिलता है कहीं ?’’ और वह उसी तरह कूची चलाता रहा।
अब तो सारा नक्शा ही बदल गया। बेन ने अपने सेब को कुतरना बन्द कर दिया। टॉम ने कूची इधर-उधर चलाई, फिर पीछे हटकर उसका निरीक्षण किया, फिर आगे बढ़कर एक-दो जगह कूची चलाई, फिर पीछे हटकर निरीक्षण करने लगा। बेन सब-कुछ देखता रहा। टॉम के काम में उसकी दिलचस्पी निरंतर बढ़ती जा रही थी।
अंत में बोला, ‘‘यार टॉम, जरा मुझे भी पुताई करने दे न भैया !’’
टॉम ने जरा सोचा। फिर बेन की बात मानने को हुआ, किंतु एकाएक उसने अपना निश्चय बदल दिया ! बोला, ‘‘नहीं, नहीं, बेन, तुमसे यह करते नहीं बनेगा। मौसी का कहना है कि इस चारदीवारी की पुताई बहुत अच्छी होनी चाहिए। घर के सामने सड़क की तरफ वाली चारदीवारी है न यह, यही मुश्किल है। अगर पीछे वाली चारदीवारी होती तो मैं तुझे जरूर पुताई कर लेने देता और मौसी भी ध्यान न देतीं, अगर कुछ गड़बड़ी भी हो जाती। मैं जानता हूं, बेन, हजार-दो-हजार लड़कों में शायद ही कोई ऐसा होता है जो ठीक से पुताई कर सके !’’
‘‘अच्छा, ऐसी बात है ! सुनो टॉम, जरा-सी पुताई कर लेने दो न ! मैं तुम्हारी जगह होता तो तुम्हारी बात जरूर मान लेता।’’
‘‘मैं भी तुम्हारी बात मानना चाहता हूं, बेन, मगर पाली मौसी....! देखो न जिम भी पुताई करना चाहता था, मगर मौसी ने उसे साफ मना कर दिया। सिड भी करना चाहता था, लेकिन उसे भी उन्होंने इजाजत नहीं दी। अब तुम्हीं सोचो, मैं कैसी उलझन में फंसा हूं। अगर मैं तुम्हें पुताई करने दूं और कुछ गड़बड़ी हो जाए...।’’
‘‘मैं बहुत सावधानी से पुताई करूंगा, टॉम ! थोड़ी-सी कर लेने दो यार ! अच्छा सुनो, टॉम, मैं अपने सेब में से थोड़ा-सा तुम्हें भी दे दूंगा।’’
‘‘नहीं बेन, नहीं, मुझे डर लगता है...।’’
‘‘मैं तुम्हें पूरा सेब दे दूंगा, टॉम !’’
बड़े अनमने भाव से टॉम ने कूची छोड़ दी, किंतु उसका मन अत्यधिक प्रसन्नता और उत्साह से भर उठा था। क्षण-भर बाद ही वह अवकाश प्राप्त कलाकर टॉम छांह में एक पीपे पर जा बैठा और सेब खाता हुआ मन-ही-मन अन्य भोले-भाले लड़कों को मूंडने की योजना तैयार करने लगा। लड़के आते गए और टॉम के जाल में फंसते गए। वे आते टॉम को चिढ़ाने की गरज से, किंतु फंस जाते पुताई में। बेन को जब तक थकान महसूस होने लगी, तब तक टॉम ने बिली फिशर को पतंग के बदले में पुताई करने की इजाजत दे दी थी। और उसके थकने के बाद जानी मिलर को एक मरा हुआ चूहा देने के बदले में पुताई करने का मौका मिल गया। उस मरे हुए चूहे की पूंछ में एक डोरी बंधी हुई थी, ताकि उसे नचाया जा सके। घंटे-पर-घंटे बीतते गए और टॉम के पास भेंटों का अंबार लगता गया। सुबह का अकिंचन टॉम इस समय तक खासा मालदार बन चुका था। चाक के टुकड़े, कांच की गोलियां, पटाखे, कुत्ते का पट्टा, चाकू का हैंडिल, नीली टूटी हुई शीशी का टुकड़ा आदि अनेक बहुमूल्य वस्तुओं का ढेर लग गया था उसके चारों ओर। टॉम सारे लड़कों के साथ हंसता-बोलता मौज से बैठा रहा और चारदीवारी पर पुताई की तीन कोटिंग भी हो गयी। इस समय तक सफेदी खत्म न हो गयी होती, तो वह शायद गाँव के हर लड़के को दिवालिया बना देता।
टॉम मन-ही-मन सोचने लगा कि संसार वास्तव में उतना निस्सार नहीं है, जितना वह समझ रहा था। अनजाने ही उसने मानव-मन की एक बहुत बड़ी कमजोरी का पता लगा लिया था कि वह काम वही है जिसे मनुष्य को बिना रुचि के जबर्दस्ती करना पड़े।
टॉम पाली मौसी के पास विजय-गर्व से झूमता हुआ गया। बोला, ‘‘अब तो मैं खेलने जाऊं न, मौसी ?’’
‘‘अरे, अभी से ! कितनी पुताई कर डाली तूने, पहले यह तो बता ?’’
‘‘पूरी चारदीवारी पुत गई, मौसी।’’
‘‘क्यों झूठ बोलता है रे टॉम...यह तो मुझसे बर्दाश्त नहीं होता।’’
‘‘झूठ नहीं बोल रहा हूं, मौसी, चारदीवारी सचमुच पुत गई है।’’
इस तरह की बातों में मौसी ने विश्वास करना नहीं सीखा था। वे स्वयं अपनी आंखों से देखने गयीं। उन्होंने पूरी-की-पूरी चारदीवारी पुती हुई देखी, तो आश्चर्य से आंखें फाड़े देखती ही रह गयीं। विह्वल स्वर में बोलीं, मैंने तो कल्पना भी नहीं की थी कि तू इतनी जल्दी इतनी अच्छी पुताई कर सकेगा।...तो इसका मतलब है कि अगर तू चाहे तो काम भी कर सकता है, टॉम !’’ मगर तुरंत ही उन्होंने यह भी जोड़ दिया, ‘‘लेकिन काम करने का मन तो तेरा बहुत मुश्किल से ही कभी होता है।...अच्छा जा, खेल-कूद आ ! मगर देख समय से नहीं लौटेगा तो मैं तेरी कुटम्मस करूंगी।’’
टॉम से इतनी खुश हो गई थीं मौसी कि उसे अलमारी के पास ले जाकर एक बढ़िया-सा सेब छांटकर दिया।
टॉम दांतों से सेब कुतरता घर से निकल पड़ा।
जेफ थैकर के मकान के पास से गुजरते-गुजरते एकाएक टॉम रुक गया। बाग में एक नई लड़की खड़ी थी—अत्यधिक सुंदर, अत्यधिक सुकोमल ! उसकी नीली आंखों, सुनहरे बालों की लंबी-लंबी चोटियां, सफेद फ्राक और बड़े सुंदर डिजाइनों से कढ़े हुए घाघरे ने मिल-जुलकर जैसे विमोहित कर दिया उसे। क्षण-भर में ही एमी लारेंस उसकी हृदय की परतों में से निकलकर विस्मृति के कुहासे में खो गई। कभी वह सोचा करता था कि वह एमी को प्यार करता है।। महीनों उसका मन जीतने के लिए उसने यत्न किए थे। अभी हफ्ते-भर पूर्व ही उसने स्वीकार किया था कि वह भी टॉम को प्यार करती है, और तब उसने समझा था कि वह दुनिया में सबसे ज्यादा खुशनसीब लड़का है। किंतु अभी क्षण-भर में एमी ऐसे निकल गई उसके हृदय से, जैसे कोई अपरिचित हो वह।
वह इस नई लड़की को सराहना-भरी नजरों से देर तक एकटक देखता रहा, जब तक कि उसने टॉम को देख नहीं लिया। उसकी नजर पड़ते ही टॉम ऐसा करने की कोशिश करने लगा जैसे उसकी उपस्थिति की उसे कोई जानकारी ही न हो। उसकी प्रशंसा का पात्र बनने के प्रयत्न में वह तरह-तरह की बेवकूफी भरी हरकतें करने लगा। तभी उसने कनखियों से देखा, वह लड़की धीरे-धीरे घर की ओर बढ़ रही है। टॉम चारदीवारी के पास जाकर, टेक लगाकर खड़ा हो गया और उदास नजरों से धीरे-धीरे उसके घर की ओर बढ़ते हुए कदमों को देखता रहा। वह उम्मीद कर रहा था कि वह लड़की कुछ देर और रुक जाएगी किंतु वह बढ़ती गई, बढ़ती ही गई। क्षण-भर के लिए वह सीढ़ियों पर रुकी और दरवाजे की ओर बढ़ने लगी। उसके ड्योढ़ी पर पांव रखते ही टॉम के मुंह से एक लंबी सांस निकल गई। लेकिन तभी एकाएक सिर घुमाकर उसने टॉम को एक नजर देखा, और टॉम के चेहरे पर उल्लास की रेखाएं उभर आयीं।
खाने के समय टॉम इतना खुश नजर आ रहा था कि मौसी भी सोचने लगीं कि आज इस लड़के को आखिर हो क्या गया है। सिड को मुंह चिढ़ाने के लिए उसे डांट भी पड़ी, किंतु उस पर कोई असर नहीं हुआ। मौसी की आंखों में धूल झोंककर चीनी चुराने की कोशिश में उंगलियों पर मार भी खानी पड़ी, किंतु फिर भी उल्लास में कोई कमी न हुई।
रात में साढ़े नौ-दस बजे के करीब टॉम फिर उस पार्क का चक्कर काटने लगा जहां वह अपरिचित सुंदरी रहती थी। वह फिर से खिड़की के नीचे जा लेटा। कल्पना करने लगा कि वह इसी तरह लेटा-लेटा मृत्यु की गहरी नींद सो जाएगा और सुबह उठकर वह उसे इस तरह पड़ा देखेगी। किंतु क्या उसके निर्जीव शरीर पर उसकी आंखों से एक बूंद आंसू भी ढुलक सकेगा ? क्या उसे इस तरह मृत देखकर उसके मन में आहों का एक भी उफान आ सकेगा ?
किंतु तभी खिड़की खुली और एक नौकरानी ने ढेर-सा पानी एक झोंके से बाहर फेंक दिया। शहीद बेचारे का सारा शरीर तर-ब-तर हो गया। वह एक झटके से उठ खड़ा हुआ और अंधकार में गायब हो गया।
टॉम हाथ में सफेदी की बाल्टी और कूची लिए हुए घर से निकलकर चारदीवारी का निरीक्षण करने लगा। उसके चेहरे पर उदासी छा गई। चारदीवारी तीस गज लंबी और नौ फुट ऊंची थी। उसे ऐसा लगने लगा जैसे जीवन में कोई रस न हो, जैसे जीवन एक भार बन गया हो। एक आह भरकर उसने कूची को सफेदी में डुबोकर चारदीवारी के सबसे ऊपर वाले हिस्से में चलाया। कई बार चारदीवारी पर कूची चलाने के बाद टॉम निराश-सा एक वृक्ष की निचली डाल पर जा बैठा। तभी घर का नौकर जिम हाथ में बाल्टी लिए गुनगुनाता हुआ निकला। टाउन-पंप से पानी लाने में टॉम को हमेशा से घृणा थी, किंतु इस समय वह काम उसे घृणित नहीं लगा। कम-से-कम पंप पर कुछ लड़के-लड़कियों का साथ तो रहेगा, जो पानी पीने के लिए अपनी बारी का इंतजार करते हुए वहां हंसते-खेलते रहते हैं।
टॉम बोला, ‘‘सुन जिम, अगर मेरी जगह पुताई करने को तैयार हो, तो ला, मैं पानी ला दूं !’’
बड़े जोर से सिर हिलाकर जिम बोला, ‘‘नहीं मास्टर टॉम, नहीं ! मौसी ने मुझे हुक्म दिया है की सीधे पंप पर जाकर पानी ले आऊं। उन्होंने कहा है कि उन्हें शक है कि आप मुझसे पुताई करने को कहेंगे। इसलिए उन्होंने मुझे हुक्म दिया है मैं अपना काम करूं, बीच में कहीं रुकूं तक नहीं।’’
‘‘उन्होंने क्या कहा, क्या नहीं कहा, इसका खयाल न करो, जिम ! वे हमेशा ही इसी तरह की बातें बका करती हैं। लाओ, मुझे बाल्टी दो, मैं एक मिनट में पानी भर लाता हूं। वे कुछ जान भी न पाएँगी।’’
‘‘नहीं, मास्टर टॉम, मौसी मेरी बहुत बुरी तरह कुटम्मस करेंगी !’’
‘‘अरे, मौसी भला कभी किसी को मारती हैं, जो तुझे ही मारेंगी ? धमकियां वे जरूर बड़ी भयानक-भयानक देती हैं, मगर धमकियों से चोट तो लगती नहीं। सुन जिम, मैं तुझे कांच की गोलियां दूंगा। मान ले न मेरी बात !’’
जिम का मन डोलने लगा। और जब टॉम ने अपने अंगूठे का घाव दिखाने का लालच दिया, तो जिम इस लोभ का संवरण नहीं कर सका। बाल्टी जमीन पर रखकर उसने कूची ले ली। किंतु दूसरे ही क्षण जिम हाथ में बाल्टी लेकर तेजी से भागा। टॉम घबराकर कूची लेकर पुताई में लग गया और पाली मौसी विजयोल्लास से भरी हुई हाथ में स्लीपर लिए हुए, मैदान से घर की ओर चल दीं।
बड़े उदास-भाव से टॉम पुताई में लगा रहा। तभी बेन रोगर्स सेब खाता, स्टीमर चलाने की नकल करता, उछलता-कूदता आता दिखाई दिया। टॉम के निकट आकर उसने स्टीमर के कप्तान की हैसियत से स्टीमर रोकने का आदेश दिया और फिर स्टीमर रुकने की-सी आवाज मुंह से निकालता हुआ रुक गया।
टॉम पुताई में लगा रहा। उसने बेन की तरफ ध्यान भी नहीं दिया।
बेन क्षण-भर उसे देखता रहा, फिर बोला, ‘‘ओहो, तो जनाब, आप काम में लगे हैं !’’
टॉम ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने एक कलाकार की नजर से अभी-अभी पुते स्थल को देखा। फिर कूची को मजा लेते हुए चारदीवारी पर हल्के-से चलाया और फिर उस पुताई का निरीक्षण करने लगा पहले ही की तरह। बेन टॉम की बगल में खड़ा हुआ। सेब देखकर टॉम के मुंह में पानी भर आया, किंतु फिर भी वह अपने काम में ध्यान लगाए रहा।
बेन बोला, ‘‘कहो दोस्त, आज भी काम करना पड़ रहा है तुम्हें ?’’
‘‘अरे बेन ! मेरा तो ध्यान ही तुम्हारी तरफ नहीं गया।’’
‘‘मैं तो आज तैरने जा रहा हूं, टॉम ! तुम्हारी भी तो इच्छा हो रही होगी चलने की ! मगर तुम्हें काम करना है, है न ?’’
जरा देर टॉम विचारों में खोया खड़ा रहा, फिर बोला, ‘‘तुम इसे काम कहते हो ?’’
‘‘हां, काम नहीं तो और क्या है यह ?’’
टॉम ने फिर पुताई शुरू कर दी और लापरवाही से कहने लगा, ‘‘हो सकता है यह काम ही हो, हो सकता है यह काम न भी हो। मगर मैं तो केवल इतना जानता हूं कि टॉम सायर को इसमें मजा आ रहा है।’’
‘‘तो तुम्हारा मतलब यह है कि यह काम तुम्हें पसन्द है ?’’
‘‘पसंद है ? भई, न पसंद होने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता। किसी लड़के को रोज-रोज चारदीवारी की पुताई करने का मौका भला मिलता है कहीं ?’’ और वह उसी तरह कूची चलाता रहा।
अब तो सारा नक्शा ही बदल गया। बेन ने अपने सेब को कुतरना बन्द कर दिया। टॉम ने कूची इधर-उधर चलाई, फिर पीछे हटकर उसका निरीक्षण किया, फिर आगे बढ़कर एक-दो जगह कूची चलाई, फिर पीछे हटकर निरीक्षण करने लगा। बेन सब-कुछ देखता रहा। टॉम के काम में उसकी दिलचस्पी निरंतर बढ़ती जा रही थी।
अंत में बोला, ‘‘यार टॉम, जरा मुझे भी पुताई करने दे न भैया !’’
टॉम ने जरा सोचा। फिर बेन की बात मानने को हुआ, किंतु एकाएक उसने अपना निश्चय बदल दिया ! बोला, ‘‘नहीं, नहीं, बेन, तुमसे यह करते नहीं बनेगा। मौसी का कहना है कि इस चारदीवारी की पुताई बहुत अच्छी होनी चाहिए। घर के सामने सड़क की तरफ वाली चारदीवारी है न यह, यही मुश्किल है। अगर पीछे वाली चारदीवारी होती तो मैं तुझे जरूर पुताई कर लेने देता और मौसी भी ध्यान न देतीं, अगर कुछ गड़बड़ी भी हो जाती। मैं जानता हूं, बेन, हजार-दो-हजार लड़कों में शायद ही कोई ऐसा होता है जो ठीक से पुताई कर सके !’’
‘‘अच्छा, ऐसी बात है ! सुनो टॉम, जरा-सी पुताई कर लेने दो न ! मैं तुम्हारी जगह होता तो तुम्हारी बात जरूर मान लेता।’’
‘‘मैं भी तुम्हारी बात मानना चाहता हूं, बेन, मगर पाली मौसी....! देखो न जिम भी पुताई करना चाहता था, मगर मौसी ने उसे साफ मना कर दिया। सिड भी करना चाहता था, लेकिन उसे भी उन्होंने इजाजत नहीं दी। अब तुम्हीं सोचो, मैं कैसी उलझन में फंसा हूं। अगर मैं तुम्हें पुताई करने दूं और कुछ गड़बड़ी हो जाए...।’’
‘‘मैं बहुत सावधानी से पुताई करूंगा, टॉम ! थोड़ी-सी कर लेने दो यार ! अच्छा सुनो, टॉम, मैं अपने सेब में से थोड़ा-सा तुम्हें भी दे दूंगा।’’
‘‘नहीं बेन, नहीं, मुझे डर लगता है...।’’
‘‘मैं तुम्हें पूरा सेब दे दूंगा, टॉम !’’
बड़े अनमने भाव से टॉम ने कूची छोड़ दी, किंतु उसका मन अत्यधिक प्रसन्नता और उत्साह से भर उठा था। क्षण-भर बाद ही वह अवकाश प्राप्त कलाकर टॉम छांह में एक पीपे पर जा बैठा और सेब खाता हुआ मन-ही-मन अन्य भोले-भाले लड़कों को मूंडने की योजना तैयार करने लगा। लड़के आते गए और टॉम के जाल में फंसते गए। वे आते टॉम को चिढ़ाने की गरज से, किंतु फंस जाते पुताई में। बेन को जब तक थकान महसूस होने लगी, तब तक टॉम ने बिली फिशर को पतंग के बदले में पुताई करने की इजाजत दे दी थी। और उसके थकने के बाद जानी मिलर को एक मरा हुआ चूहा देने के बदले में पुताई करने का मौका मिल गया। उस मरे हुए चूहे की पूंछ में एक डोरी बंधी हुई थी, ताकि उसे नचाया जा सके। घंटे-पर-घंटे बीतते गए और टॉम के पास भेंटों का अंबार लगता गया। सुबह का अकिंचन टॉम इस समय तक खासा मालदार बन चुका था। चाक के टुकड़े, कांच की गोलियां, पटाखे, कुत्ते का पट्टा, चाकू का हैंडिल, नीली टूटी हुई शीशी का टुकड़ा आदि अनेक बहुमूल्य वस्तुओं का ढेर लग गया था उसके चारों ओर। टॉम सारे लड़कों के साथ हंसता-बोलता मौज से बैठा रहा और चारदीवारी पर पुताई की तीन कोटिंग भी हो गयी। इस समय तक सफेदी खत्म न हो गयी होती, तो वह शायद गाँव के हर लड़के को दिवालिया बना देता।
टॉम मन-ही-मन सोचने लगा कि संसार वास्तव में उतना निस्सार नहीं है, जितना वह समझ रहा था। अनजाने ही उसने मानव-मन की एक बहुत बड़ी कमजोरी का पता लगा लिया था कि वह काम वही है जिसे मनुष्य को बिना रुचि के जबर्दस्ती करना पड़े।
टॉम पाली मौसी के पास विजय-गर्व से झूमता हुआ गया। बोला, ‘‘अब तो मैं खेलने जाऊं न, मौसी ?’’
‘‘अरे, अभी से ! कितनी पुताई कर डाली तूने, पहले यह तो बता ?’’
‘‘पूरी चारदीवारी पुत गई, मौसी।’’
‘‘क्यों झूठ बोलता है रे टॉम...यह तो मुझसे बर्दाश्त नहीं होता।’’
‘‘झूठ नहीं बोल रहा हूं, मौसी, चारदीवारी सचमुच पुत गई है।’’
इस तरह की बातों में मौसी ने विश्वास करना नहीं सीखा था। वे स्वयं अपनी आंखों से देखने गयीं। उन्होंने पूरी-की-पूरी चारदीवारी पुती हुई देखी, तो आश्चर्य से आंखें फाड़े देखती ही रह गयीं। विह्वल स्वर में बोलीं, मैंने तो कल्पना भी नहीं की थी कि तू इतनी जल्दी इतनी अच्छी पुताई कर सकेगा।...तो इसका मतलब है कि अगर तू चाहे तो काम भी कर सकता है, टॉम !’’ मगर तुरंत ही उन्होंने यह भी जोड़ दिया, ‘‘लेकिन काम करने का मन तो तेरा बहुत मुश्किल से ही कभी होता है।...अच्छा जा, खेल-कूद आ ! मगर देख समय से नहीं लौटेगा तो मैं तेरी कुटम्मस करूंगी।’’
टॉम से इतनी खुश हो गई थीं मौसी कि उसे अलमारी के पास ले जाकर एक बढ़िया-सा सेब छांटकर दिया।
टॉम दांतों से सेब कुतरता घर से निकल पड़ा।
जेफ थैकर के मकान के पास से गुजरते-गुजरते एकाएक टॉम रुक गया। बाग में एक नई लड़की खड़ी थी—अत्यधिक सुंदर, अत्यधिक सुकोमल ! उसकी नीली आंखों, सुनहरे बालों की लंबी-लंबी चोटियां, सफेद फ्राक और बड़े सुंदर डिजाइनों से कढ़े हुए घाघरे ने मिल-जुलकर जैसे विमोहित कर दिया उसे। क्षण-भर में ही एमी लारेंस उसकी हृदय की परतों में से निकलकर विस्मृति के कुहासे में खो गई। कभी वह सोचा करता था कि वह एमी को प्यार करता है।। महीनों उसका मन जीतने के लिए उसने यत्न किए थे। अभी हफ्ते-भर पूर्व ही उसने स्वीकार किया था कि वह भी टॉम को प्यार करती है, और तब उसने समझा था कि वह दुनिया में सबसे ज्यादा खुशनसीब लड़का है। किंतु अभी क्षण-भर में एमी ऐसे निकल गई उसके हृदय से, जैसे कोई अपरिचित हो वह।
वह इस नई लड़की को सराहना-भरी नजरों से देर तक एकटक देखता रहा, जब तक कि उसने टॉम को देख नहीं लिया। उसकी नजर पड़ते ही टॉम ऐसा करने की कोशिश करने लगा जैसे उसकी उपस्थिति की उसे कोई जानकारी ही न हो। उसकी प्रशंसा का पात्र बनने के प्रयत्न में वह तरह-तरह की बेवकूफी भरी हरकतें करने लगा। तभी उसने कनखियों से देखा, वह लड़की धीरे-धीरे घर की ओर बढ़ रही है। टॉम चारदीवारी के पास जाकर, टेक लगाकर खड़ा हो गया और उदास नजरों से धीरे-धीरे उसके घर की ओर बढ़ते हुए कदमों को देखता रहा। वह उम्मीद कर रहा था कि वह लड़की कुछ देर और रुक जाएगी किंतु वह बढ़ती गई, बढ़ती ही गई। क्षण-भर के लिए वह सीढ़ियों पर रुकी और दरवाजे की ओर बढ़ने लगी। उसके ड्योढ़ी पर पांव रखते ही टॉम के मुंह से एक लंबी सांस निकल गई। लेकिन तभी एकाएक सिर घुमाकर उसने टॉम को एक नजर देखा, और टॉम के चेहरे पर उल्लास की रेखाएं उभर आयीं।
खाने के समय टॉम इतना खुश नजर आ रहा था कि मौसी भी सोचने लगीं कि आज इस लड़के को आखिर हो क्या गया है। सिड को मुंह चिढ़ाने के लिए उसे डांट भी पड़ी, किंतु उस पर कोई असर नहीं हुआ। मौसी की आंखों में धूल झोंककर चीनी चुराने की कोशिश में उंगलियों पर मार भी खानी पड़ी, किंतु फिर भी उल्लास में कोई कमी न हुई।
रात में साढ़े नौ-दस बजे के करीब टॉम फिर उस पार्क का चक्कर काटने लगा जहां वह अपरिचित सुंदरी रहती थी। वह फिर से खिड़की के नीचे जा लेटा। कल्पना करने लगा कि वह इसी तरह लेटा-लेटा मृत्यु की गहरी नींद सो जाएगा और सुबह उठकर वह उसे इस तरह पड़ा देखेगी। किंतु क्या उसके निर्जीव शरीर पर उसकी आंखों से एक बूंद आंसू भी ढुलक सकेगा ? क्या उसे इस तरह मृत देखकर उसके मन में आहों का एक भी उफान आ सकेगा ?
किंतु तभी खिड़की खुली और एक नौकरानी ने ढेर-सा पानी एक झोंके से बाहर फेंक दिया। शहीद बेचारे का सारा शरीर तर-ब-तर हो गया। वह एक झटके से उठ खड़ा हुआ और अंधकार में गायब हो गया।
..इसके आगे पुस्तक में देखें..
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