अतिरिक्त >> महिला शक्ति महिला शक्तिकौशल भारद्वाज
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इस पुस्तक में महिला शक्ति का वर्णन किया गया है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
नारी : अबला नहीं सबला
नारी एक शक्ति है। शास्त्रों में उस भगवान शिव की शक्ति अथवा शिवभक्ति कहा
गया है।
आज की नारी पुरुषों से किसी मामले में पीछे नहीं है। एक समय था जब नारी को ‘अबला’ कहकर पुकारा जाता था और संन्यासी लोग उसे ‘नर्क का द्वार’ कहकर तथा अभिमानी गृहस्थ पुरुष उसे अपने ‘पैरों की जूती’ कहकर ठुकराया करते थे लेकिन अब समय बदल गया है।
आज नारी न तो अबला है और न ही उसे पैरों की जूती कहा जा सकता है। आज की नारी अपने पैरों के ऊपर खड़ी हुई है, स्वावलम्बिनी है। वह किसी भी प्रकार से पुरुष की आश्रित नहीं है। बल्कि कभी परिचारिका बनकर और कभी कार्यक्षेत्र की सहयोगिनी बनकर वह पुरुष वर्ग की मदद ही करती रहती है।
यदि नारी छलित या पवित्र होता तो भारतवासी मन्दिरों में दुर्गा, सन्तोषी, वैष्णों आदि पूज्य देवियों की इतनी आराधना क्यों करते ? मन्दिरों की देवियां भी तो आखिरकार नारियां ही हैं। वे भी शिव शक्तियां हैं।
वास्तव में महिलाएँ अथवा नारियां घृणा और अपमान के योग्य नहीं बल्कि सच्ची श्रद्धा और सम्मान की पात्र हैं।
आज युग ने फिर से नई करवट ली है और स्त्रियों के संबंध में लोगों की धारणाएँ एवं मान्यताएँ बदली हैं। महिलाओं के कार्यक्षेत्र में वृद्धि हुई है। वह जीवन के हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं।
आज की नारी पुरुषों से किसी मामले में पीछे नहीं है। एक समय था जब नारी को ‘अबला’ कहकर पुकारा जाता था और संन्यासी लोग उसे ‘नर्क का द्वार’ कहकर तथा अभिमानी गृहस्थ पुरुष उसे अपने ‘पैरों की जूती’ कहकर ठुकराया करते थे लेकिन अब समय बदल गया है।
आज नारी न तो अबला है और न ही उसे पैरों की जूती कहा जा सकता है। आज की नारी अपने पैरों के ऊपर खड़ी हुई है, स्वावलम्बिनी है। वह किसी भी प्रकार से पुरुष की आश्रित नहीं है। बल्कि कभी परिचारिका बनकर और कभी कार्यक्षेत्र की सहयोगिनी बनकर वह पुरुष वर्ग की मदद ही करती रहती है।
यदि नारी छलित या पवित्र होता तो भारतवासी मन्दिरों में दुर्गा, सन्तोषी, वैष्णों आदि पूज्य देवियों की इतनी आराधना क्यों करते ? मन्दिरों की देवियां भी तो आखिरकार नारियां ही हैं। वे भी शिव शक्तियां हैं।
वास्तव में महिलाएँ अथवा नारियां घृणा और अपमान के योग्य नहीं बल्कि सच्ची श्रद्धा और सम्मान की पात्र हैं।
आज युग ने फिर से नई करवट ली है और स्त्रियों के संबंध में लोगों की धारणाएँ एवं मान्यताएँ बदली हैं। महिलाओं के कार्यक्षेत्र में वृद्धि हुई है। वह जीवन के हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं।
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