पौराणिक कथाएँ >> महाभारत की कहानियाँ महाभारत की कहानियाँराजबहादुर सिंह
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महाभारत की कहानियाँ
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
लाख का घर
बात बहुत पुरानी है। उन दिनों चचेरे भाई पाण्डव-कौरवों में अनबन होने लगी
थी। कौरवों के पिता धृतराष्ट्र उन दिनों राजगद्दी पर थे। पाण्डव उनकी सेवा
अपने पिता के ही समान करते थे। उनके राज्य में कोई सिर उठाता तो उसे दबाने
के लिए पाण्डव ही भेजे जाते थे। धीरे-धीरे पाण्डव अपनी वीरता के कारण नामी
हो गए। पाण्डव पांच भाई थे। जिनके नाम थे—युधिष्ठिर, भीम,
अर्जुन,
नकुल और सहदेव।
धृतराष्ट्र अन्धें थे, उनकी ऊपरी आँखें भी नहीं थी; पर मन की आँखें भी मर चुकी थी। पाण्डव उनकी सेवा में लगे रहते थे, फिर भी धृतराष्ट्र प्रसन्न न होते थे। वह मन-ही-मन जलते थे कि उनके भतीजे ऐसे शूरवीर और नामी होते जा रहे हैं। उनके लड़के दुर्योधन आदि सौ भाई थे; फिर भी वह पाँचों पाण्डव के सामने फीके लगते थे। उनमें दूसरे की बुराई सोचने और छल-कपट का जाल बिछाने की बुरी आदतें थीं। इसीलिए लोग उन्हें दिल से नहीं चाहते थे।
पाण्डवों की बड़ाई सुनते-सुनते धृतराष्ट्र का मन पक गया। वह आँख से तो देखते नहीं थे पर कान से भतीजों की बड़ाई और बेटों की बुराई सुनकर मन-ही-मन कुढ़ते सोचते यह भतीजे न होते तो मेरे लड़के अधिक चमकते। पर भतीजे भी तो राज परिवार के ठहरे। उनसे किस तरह पिण्ड छुड़ाया जाए ?
धृतराष्ट्र अन्धें थे, उनकी ऊपरी आँखें भी नहीं थी; पर मन की आँखें भी मर चुकी थी। पाण्डव उनकी सेवा में लगे रहते थे, फिर भी धृतराष्ट्र प्रसन्न न होते थे। वह मन-ही-मन जलते थे कि उनके भतीजे ऐसे शूरवीर और नामी होते जा रहे हैं। उनके लड़के दुर्योधन आदि सौ भाई थे; फिर भी वह पाँचों पाण्डव के सामने फीके लगते थे। उनमें दूसरे की बुराई सोचने और छल-कपट का जाल बिछाने की बुरी आदतें थीं। इसीलिए लोग उन्हें दिल से नहीं चाहते थे।
पाण्डवों की बड़ाई सुनते-सुनते धृतराष्ट्र का मन पक गया। वह आँख से तो देखते नहीं थे पर कान से भतीजों की बड़ाई और बेटों की बुराई सुनकर मन-ही-मन कुढ़ते सोचते यह भतीजे न होते तो मेरे लड़के अधिक चमकते। पर भतीजे भी तो राज परिवार के ठहरे। उनसे किस तरह पिण्ड छुड़ाया जाए ?
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