मनोरंजक कथाएँ >> तपस्वियों की कहानियाँ तपस्वियों की कहानियाँराजबहादुर सिंह
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तपस्वियों की कहानियाँ...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
तपस्या का सुफल
विश्वानर भगवान शंकर के भक्त थे और दिन-रात उन्हीं की उपासना में लगे रहते
थे।
ब्रह्मचर्याश्रम में वेद-वेदान्त का अध्ययन कर लेने के बाद, वे सांसारिक व्यवहार के क्षेत्र में उतरने के इच्छुक हुए। गार्हस्थ्य-धर्म स्वीकार करने पर भी स्नान, संध्या, हवन और जप में कोई बाधा नहीं थी इसलिए उनके पवित्र जीवन का क्रम पूर्ववत जारी रहा।
शुचिष्मती नामक जिस कन्या से विश्वानर ने विवाह किया वह भी उनके नित्य प्रति के धार्मिक जीवन में सहायक हुई। वह उनकी सेवा तो करती ही थी, देवता, पितर और अतिथियों की पूजा में भी नित्य सहायता देती थी। विश्वानर नियमानुसार पूजा-पाठ और धार्मिक कृत्य करते हुए भी अर्थोपार्जन के लिए समय निकाल लेते थे।
इस प्रकार दोनों का जीवन सुख से बीतने लगा। किन्तु बहुत समय व्यतीत हो जाने पर भी जब उनके सन्तान न हुई तो शुचिष्मती दुखी रहने लगी। एक दिन अवसर पाकर उसने विश्वानर से कहा- ‘सन्तान के बिना गार्हस्थ्य जीवन व्यर्थ है, इसलिए हमें उनके लिए किसी-न-किसी प्रकार की विशिष्ट देवाराधना करनी चाहिए।’’
ब्रह्मचर्याश्रम में वेद-वेदान्त का अध्ययन कर लेने के बाद, वे सांसारिक व्यवहार के क्षेत्र में उतरने के इच्छुक हुए। गार्हस्थ्य-धर्म स्वीकार करने पर भी स्नान, संध्या, हवन और जप में कोई बाधा नहीं थी इसलिए उनके पवित्र जीवन का क्रम पूर्ववत जारी रहा।
शुचिष्मती नामक जिस कन्या से विश्वानर ने विवाह किया वह भी उनके नित्य प्रति के धार्मिक जीवन में सहायक हुई। वह उनकी सेवा तो करती ही थी, देवता, पितर और अतिथियों की पूजा में भी नित्य सहायता देती थी। विश्वानर नियमानुसार पूजा-पाठ और धार्मिक कृत्य करते हुए भी अर्थोपार्जन के लिए समय निकाल लेते थे।
इस प्रकार दोनों का जीवन सुख से बीतने लगा। किन्तु बहुत समय व्यतीत हो जाने पर भी जब उनके सन्तान न हुई तो शुचिष्मती दुखी रहने लगी। एक दिन अवसर पाकर उसने विश्वानर से कहा- ‘सन्तान के बिना गार्हस्थ्य जीवन व्यर्थ है, इसलिए हमें उनके लिए किसी-न-किसी प्रकार की विशिष्ट देवाराधना करनी चाहिए।’’
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