मनोरंजक कथाएँ >> जंगल-ज्योति जंगल-ज्योतिसावित्री देवी वर्मा
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जंगल ज्योति...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
1
चोरी की सज़ा
हिमालय की तलहटी में वियावानी नाम का एक घना जंगल हैं। इस जंगल के मध्य
में बहुत ऊँचे–ऊँचे पुराने वृक्ष तथा गंगा के किनारे को छूते
हुए
भाग में बेलवल्लरियाँ तथा पहाड़ों की श्रेणियाँ भी हैं। इस जंगल में,
अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार, पशुओं ने पेड़, पहाड़ तथा वृक्षों के कोटरों
में अपना-अपना निवास स्थान बना लिया था।
बात बहुत दिनों की है। उन दिनों में सभ्यता का विकास नहीं हुआ था। मनुष्य भी पशुओं के सदृश्य जंगल में ही रहता था। उसने खेती-बाड़ी करना तो सीख लिया था, परन्तु कपास के उपयोग से वह अभी अपरिचित ही था। वह पशुओं को मारकर उनकी खाल से ही अपना शरीर ढ़कता था, उस ज़माने में मनुष्य इतना बलवान् और निडर नहीं था हाथ में एक डण्डा या हँसिया लेकर वह शेर से भी भिड़ जाता था।
कई बार शेर को मनुष्य के हाथों मुँह की खानी पड़ी थी। अन्य जानवर भी मनुष्य के अत्याचार से तंग आ गये थे। तंग आकर उन्होंने अपनी बस्ती और अधिक घने बन में बसा ली। अब मनुष्य के आश्रम से परे होकर, सब धंधा उनके ही सिर पड़ा। यहाँ तक की खेती-बाड़ी का काम भी उन्हें ही करना पड़ा।
यह काम बन्दर के सुपुर्द हुआ, क्योंकि वह मनुष्य से अधिक मिलता जुलता था। अन्य सब पशुओं को उसके यहाँ मज़दूरी करनी पड़ती थी। दो जानवर रोज़ बारी-बारी से मजदूरी के लिए आते थे। शेर के संग काम करने को कोई राजी न होता था, पर उसके मुँह पर ऐसा कहने का साहस भी किसी को नहीं था। जानवर जानते थे कि अगर शेर से कोई निबट सकता है, तो वह है बुद्धिमान खरगोश।
बात बहुत दिनों की है। उन दिनों में सभ्यता का विकास नहीं हुआ था। मनुष्य भी पशुओं के सदृश्य जंगल में ही रहता था। उसने खेती-बाड़ी करना तो सीख लिया था, परन्तु कपास के उपयोग से वह अभी अपरिचित ही था। वह पशुओं को मारकर उनकी खाल से ही अपना शरीर ढ़कता था, उस ज़माने में मनुष्य इतना बलवान् और निडर नहीं था हाथ में एक डण्डा या हँसिया लेकर वह शेर से भी भिड़ जाता था।
कई बार शेर को मनुष्य के हाथों मुँह की खानी पड़ी थी। अन्य जानवर भी मनुष्य के अत्याचार से तंग आ गये थे। तंग आकर उन्होंने अपनी बस्ती और अधिक घने बन में बसा ली। अब मनुष्य के आश्रम से परे होकर, सब धंधा उनके ही सिर पड़ा। यहाँ तक की खेती-बाड़ी का काम भी उन्हें ही करना पड़ा।
यह काम बन्दर के सुपुर्द हुआ, क्योंकि वह मनुष्य से अधिक मिलता जुलता था। अन्य सब पशुओं को उसके यहाँ मज़दूरी करनी पड़ती थी। दो जानवर रोज़ बारी-बारी से मजदूरी के लिए आते थे। शेर के संग काम करने को कोई राजी न होता था, पर उसके मुँह पर ऐसा कहने का साहस भी किसी को नहीं था। जानवर जानते थे कि अगर शेर से कोई निबट सकता है, तो वह है बुद्धिमान खरगोश।
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