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नानी के गाँव में

सुनीता

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5034
आईएसबीएन :81-89361-09-0

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नानी के गाँव में

Nani Ke Ganov Mein A Hindi Book by Sunita

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

1
नानी के गाँव में

छोटी सी, सात बरस की नीना भला क्या जाने ! कुछ भी तो समझ नहीं पाती थी। मगर कुछ था जो उसे कुरेदता रहता था।
उसे तो यह भी नहीं पता था कि माँ उसे क्यों नानी के पास गाँव सालवन में छोड़ गई हैं। और क्यों वह अपने माँ-बाप और भाइयों से अलग यहाँ गाँव में रहने लगी।

लेकिन नानी उसे इतना ज्यादा प्यार करती थीं कि उसे भला यह सब जानने की जरूरत ही क्या थी ! वह सिर्फ इतना ही जानती थी कि वह नानी की है और नानी उसकी। बल्कि जब कभी शहर से माता-पिता और छोटे भाई आते, तो भी वह उनसे न बोलती। बस सारे दिन लड़ियाती हुई नानी से चिपकी रहती -‘‘नानी, यह दो... नानी, वह दो....नानी, नानी,. नानी...! उसके छोटे से बाल मन में कहीं यह भय था कि ये लोग जो शहर से आए हैं, कही उसे नानी से अलग तो न कर देगें !

छोटी-सी थी नीना, पर इतना तो जानती थी कि उसकी नानी बहुत बड़ी हैं। बहुत बड़ा दिल है उनका और गांव में सभी उनकी बहुत इज्जत करते हैं। उसकी नानी असल में जग ताई थीं। और कहीं भी आते-जाते पूरा गाँव ‘ताई, राम राम !’ कहकर आदर से उसके आगे सिर झुकाता था।

नानी का यह रूप अचानक नहीं उभरा था। नीना को जब से याद है, उसने नानी को बिना नागा तालाब के पास वाली कुटिया में रोज शाम को राम जी की कथा कहते सुना है।

गरमियों में वे सामने वाले बरगद की छाया में बैठ जातीं और कथा शुरू कर देतीं। नानी के स्वर में ऐसा जादू था कि पूरा गाँव उमड़ पड़ता था कथा सुनने के लिए। कथा सुनाते-सुनाते खुद नानी भी इतनी मगन हो जाती थीं कि आँखों से प्रेम और आनंद के अश्रु बहने लगते।

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