बाल एवं युवा साहित्य >> देश विदेश की विचित्र प्रथाएँ देश विदेश की विचित्र प्रथाएँरमेश चन्द्र
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देश-विदेश की विचित्र प्रथाएँ
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
1
शवों को सुरक्षित रखने की प्रथा
मिस्र में एक शताब्दी पहले तक मृतक शरीर को सुरक्षित रखने की प्रथा
प्रचलित थी। यद्यपि आज के युग में यह प्रथा प्रायः समाप्त हो चली है,
किन्तु उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य तक लोग अपने परिवारों के मृतक
व्यक्तियों के शरीर को सुरक्षित रखना अपना धर्म मानते थे। ये मृतक शरीर
मिस्र के इतिहास, संस्कृति और रीति-रिवाजों जीते-जागते प्रतीक हैं। इन
शवों को ईरानी भाषा में ‘मोमियाई’ कहा जाता है।
मिस्र निवासियों का विश्वास है कि मनुष्य के शरीरान्त के बाद भी उसकी आत्मा नहीं मरती और शरीर में पुनः प्रवेश करती है। शायद यही विश्वास इन शवों को सुरक्षित रखने का कारण है।
पुराने समय में मिस्र-निवासी मृतक को कब्र में एक सुन्दर चटाई पर लिटा देते थे और उसके पास जल का पात्र और थोड़ा सा भोजन रख देते थे। उनका विश्वास था कि क्षुधित आत्मा एक बार यहाँ आकर आहार अवश्य करती है। इस कला में वे इतने निपुण थे हजारों वर्ष बाद भी ये मृतक शरीर ज्यों के त्यों सुरक्षित अवस्था में मिले हैं। कुछ शव तो ऐसे भी मिले हैं जो लगभग पाँच हजार वर्ष पुराने हैं, किन्तु उनकी त्वचा और बाल पूर्ण रूप से सुरक्षित हैं। आमतौर पर सुरक्षित शवों की हड्डियों को छोड़कर और सभी चीजे नष्ट हो जाती है।
इतिहास से इस बात का ठीक-ठीक पता नहीं चलता कि यह प्रथा किस काल में आरम्भ हुई, किन्तु अनुसंधानों से पता चलता है कि ईसा से 1300 पूर्व भी मिस्र में यह प्रथा थी और कुछ अवशेष तो उससे भी पुराने मिले हैं।
मिस्र निवासियों का विश्वास है कि मनुष्य के शरीरान्त के बाद भी उसकी आत्मा नहीं मरती और शरीर में पुनः प्रवेश करती है। शायद यही विश्वास इन शवों को सुरक्षित रखने का कारण है।
पुराने समय में मिस्र-निवासी मृतक को कब्र में एक सुन्दर चटाई पर लिटा देते थे और उसके पास जल का पात्र और थोड़ा सा भोजन रख देते थे। उनका विश्वास था कि क्षुधित आत्मा एक बार यहाँ आकर आहार अवश्य करती है। इस कला में वे इतने निपुण थे हजारों वर्ष बाद भी ये मृतक शरीर ज्यों के त्यों सुरक्षित अवस्था में मिले हैं। कुछ शव तो ऐसे भी मिले हैं जो लगभग पाँच हजार वर्ष पुराने हैं, किन्तु उनकी त्वचा और बाल पूर्ण रूप से सुरक्षित हैं। आमतौर पर सुरक्षित शवों की हड्डियों को छोड़कर और सभी चीजे नष्ट हो जाती है।
इतिहास से इस बात का ठीक-ठीक पता नहीं चलता कि यह प्रथा किस काल में आरम्भ हुई, किन्तु अनुसंधानों से पता चलता है कि ईसा से 1300 पूर्व भी मिस्र में यह प्रथा थी और कुछ अवशेष तो उससे भी पुराने मिले हैं।
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