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लोक चित्रकलाःमधुबनी

रवीन्द्र लाल दास

प्रकाशक : ओरिएंट क्राफ्ट पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5054
आईएसबीएन :000

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लोक चित्रकला का वर्णन बहुत ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया गया है...

Lok Chitrakala Madhubani -A Hindi Book i by Ravindra Lal Das

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

लोक चित्रकलाः मधुबनी

साथियों, मधुबनी पेंटिंग के नाम से प्रसिद्ध मिथिला लोक चित्रकला की बात करने से पहले आइये थोड़ी सी बात मिथिला की करते हैं। आपने रामायण की कहानियाँ अवश्य पढ़ी या सुनी होगी जिसमें मिथिला राज्य की खूब चर्चा हुई है। वहां की राजधानी का नाम था जनकपुर और वहां के राजा जनक की पुत्री का नाम था सीता। उसी सीता से भगवान राम का विवाह हुआ था। आज का मिथिला क्षेत्र भारत के बिहार राज्य में गंगा नदी के उत्तरी भाग में नेपाल की तराई क्षेत्र तक फैला हुआ है।

मिथिला में जितने त्योहार या उत्सव होते हैं उन सबमें आँगन में और दीवारों पर चित्रकारी करने की बहुत पुरानी प्रथा है। आंगन में जो चित्रकारी की जाती है। उसे ‘अरिपन’ (अल्पना) कहा जाता है।

जब आप पूछेंगे अरिपन बनती कैसे है ? तो सुनिये। पहले चावल को काफी देर तक पानी में भिगोने के बाद उसे सिल पर अच्छी तरह पीस लिया जाता है। फिर उसमें थोड़ा पानी मिलाकर एक गाढ़ा घोल तैयार किया जाता है जिसे ‘पिठार’ कहा जाता है। इसी पिठार से गाय के गोबर या चिकनी मिट्टी से लीपी गई भूमि पर महिलाएँ अपनी उँगलियों से चित्र यानी अरिपन बनाती हैं। प्रत्येक उत्सव या त्योहार के लिए अलग-अलग तरह के अरिपन बनाये जाते हैं।

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