मनोरंजक कथाएँ >> अपने को पहचानो अपने को पहचानोआनन्द कुमार
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इसमें प्रमुख तीन कहानियों का वर्णन किया गया है जिससे मनुष्य अपने आप में मंथन कर सकता है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
अपने को पहचानो
बहुत दिन हुए बगदाद में एक धनी सौदागर रहता था। उसके लड़के का नाम अबुलहसन
था। सौदागर के मरने के बाद अबुल हसन ही सारी सम्पत्ति का स्वामी
हुआ। वह रुपये को खर्च करना तो अपने बाप से भी अच्छा जानता था लेकिन कमाने
की कला में बिल्कुल कोरा था।
बाप के पैसों से अबुलहसन ने ठाट–बाट से रहना शुरू किया। और घरों में तो शादी-ब्याह के अवसर पर ही दावत होती थी लेकिन अबुल हसन के घर पर रोज शाम को मित्रों की लम्बी चौड़ी दावत होती थी। सभी ऐसे रईस के मित्र बनना चाहते थे और सच बात यह थी कि साल ही दो साल में अबुलहसन के पास मित्रों की पलटन तैयार हो गयी थी। सब के साथ बैठकर खाने पीने और आनन्द करने में उसको अपार आनन्द आता था। वह अपने धन को मित्रों का धन समझता था। और मित्र लोग उसके धन को अपना धन समझते थे।
परिणाम यह हुआ कि कुछ दिनों में अबुलहसन की सम्पत्ति उसके मित्रों के पेट में पहुँच गयी और मित्रों की सारी विपत्ति अबुलहसन के घर में। वह कंगाल हो गया। जब निर्धन हो गया तो मित्रों ने उसके यहां आना-जाना भी छोड़ दिया। यही नहीं अबुलहसन यदि उनसे मिलने जाता तो वे घर के अन्दर से ही कहला देते कि अभी मिलने का समय नहीं है। मित्रों की कृतघ्नता देखकर सौदागर-नन्दन बहुत खिन्न रहने लगा उसको पहले नहीं मालूम था कि उसके मित्र उसके नहीं बल्कि उसके पैसों के मित्र हैं जो लोग पहले बिना बुलाए ही उसको घेरे रहते थे, वही दूर से उसको आते देखकर रास्ते से चले जाते थे। वह डरते थे कि दरिद्र मित्र कहीं कुछ माँग न बैठे।
बाप के पैसों से अबुलहसन ने ठाट–बाट से रहना शुरू किया। और घरों में तो शादी-ब्याह के अवसर पर ही दावत होती थी लेकिन अबुल हसन के घर पर रोज शाम को मित्रों की लम्बी चौड़ी दावत होती थी। सभी ऐसे रईस के मित्र बनना चाहते थे और सच बात यह थी कि साल ही दो साल में अबुलहसन के पास मित्रों की पलटन तैयार हो गयी थी। सब के साथ बैठकर खाने पीने और आनन्द करने में उसको अपार आनन्द आता था। वह अपने धन को मित्रों का धन समझता था। और मित्र लोग उसके धन को अपना धन समझते थे।
परिणाम यह हुआ कि कुछ दिनों में अबुलहसन की सम्पत्ति उसके मित्रों के पेट में पहुँच गयी और मित्रों की सारी विपत्ति अबुलहसन के घर में। वह कंगाल हो गया। जब निर्धन हो गया तो मित्रों ने उसके यहां आना-जाना भी छोड़ दिया। यही नहीं अबुलहसन यदि उनसे मिलने जाता तो वे घर के अन्दर से ही कहला देते कि अभी मिलने का समय नहीं है। मित्रों की कृतघ्नता देखकर सौदागर-नन्दन बहुत खिन्न रहने लगा उसको पहले नहीं मालूम था कि उसके मित्र उसके नहीं बल्कि उसके पैसों के मित्र हैं जो लोग पहले बिना बुलाए ही उसको घेरे रहते थे, वही दूर से उसको आते देखकर रास्ते से चले जाते थे। वह डरते थे कि दरिद्र मित्र कहीं कुछ माँग न बैठे।
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