व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> चिंता छोड़ो सुख से जियो चिंता छोड़ो सुख से जियोडेल कारनेगी
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सुख-शांति से जीने के ‘‘प्रैक्टिकल’’ सुझाव...
चिंता सबको होती है। नौकरी, काम-धंधे, पैसे, पारिवारिक जीवन और संबंधों को लेकर हर इंसान कभी न कभी चिंता का शिकार होता है। इस पुस्तक में ऐसे अचूक नुस्खे दिए गए हैं जिनके प्रयोग से आप अपने जीवन में चिंता को दूर कर सकते हैं, हमेशा के लिए।
डेल कारनेगी बताते हैं कि किस तरह हज़ारों लोगों ने चिंता पर विजय पाई है, जिनमें से कुछ मशहूर हैं परंतु अधिकांश सामान्य लोग हैं। वे सुख-शांति से जीने के ‘‘प्रैक्टिकल’’ सुझाव देते हैं।
चिंता दूर करने के कुछ फ़ार्मूल हैं :
1. चिंता के बारे में मूलभूत तथ्य जो आपको मालूम होने चाहिए
2. चिंता की स्थितियों को जीतने का जादुई फॉर्मूला
3. किस तरह अपने बिजनेस की आधी चिंताओं को ख़त्म किया जाए
4. सुख-शांति का मानसिक दृष्टिकोण विकसित करने से बचा जाए
5. थकान और चिंता से बचने के छह तरीक़े
6. चिंता को जिन्होंने जीता है उनके व्यक्तिगत सुझाव
डेल कारनेगी बताते हैं कि किस तरह हज़ारों लोगों ने चिंता पर विजय पाई है, जिनमें से कुछ मशहूर हैं परंतु अधिकांश सामान्य लोग हैं। वे सुख-शांति से जीने के ‘‘प्रैक्टिकल’’ सुझाव देते हैं।
चिंता दूर करने के कुछ फ़ार्मूल हैं :
1. चिंता के बारे में मूलभूत तथ्य जो आपको मालूम होने चाहिए
2. चिंता की स्थितियों को जीतने का जादुई फॉर्मूला
3. किस तरह अपने बिजनेस की आधी चिंताओं को ख़त्म किया जाए
4. सुख-शांति का मानसिक दृष्टिकोण विकसित करने से बचा जाए
5. थकान और चिंता से बचने के छह तरीक़े
6. चिंता को जिन्होंने जीता है उनके व्यक्तिगत सुझाव
यह पुस्तक क्यों-और कैसे लिखी गयी
1909 में, मैं न्यूयॉर्क के सबसे दुखी युवकों में से एक था। मैं मोटर ट्रक बेचकर अपनी रोज़ी-रोटी चलाता था, परंतु मैं नहीं जानता था कि मोटर ट्रक को कौन सी चीज़ चलाती है। यही नहीं, मैं यह जानना भी नहीं चाहता था। मैं अपने काम से नफ़रत करता था। मैं वेस्ट फिफ्टी सिक्स्थ स्ट्रीट पर सस्ते तरीक़े से सजे कमरे में रहने से नफ़रत करता था - वह कमरा जिसमें कॉकरोच भरे थे। मुझे अब भी याद है, कमरे की दीवार पर मेरी टाइयों का ढेर टँगा रहता था; और जब एक सुबह मैंने नयी टाई निकालने के लिये वहाँ हाथ डाला, तो कॉक़रोच हर दिशा में भागे। मैं उन गंदे, सस्ते होटलों से नफ़रत करता था, जहाँ मुझे भोजन करना पड़ता था क्योंकि शायद वहाँ भी कॉकरोच भरे होंगे।
हर रात को अपने सूने कमरे में लौटते समय मेरे सिर में दर्द होता था और यह सिरदर्द निराशा, चिंता, कड़वाहट और विद्रोह की वजह से होता था। मैं इसलिये दुखी था क्योंकि कॉलेज के ज़माने में मैंने जो ख़ुशनुमा सपने संजोये थे, वे अब बुरे सपनों में बदल गये थे। क्या यही ज़िंदगी थी? क्या यही वह रोमांचपूर्ण और महत्वपूर्ण कार्य था, जिसके लिये मैं इतने उत्साह से आगे बढ़ रहा था ? क्या मेरे लिये जीवन का यही मतलब रहेगा – एक सड़ी सी नौकरी करना, जिससे मैं नफ़रत करता था, कॉकरोचों के साथ रहना और घटिया भोजन करना – और भविष्य में कुछ बेहतर होने की आशा न होना ?... मेरी हसरत थी कि मेरे पास किताबें पढ़ने और लिखने की फ़ुरसत हो, जिसका सपना मैंने कॉलेज के दिनों में देखा था।...
1909 में, मैं न्यूयॉर्क के सबसे दुखी युवकों में से एक था। मैं मोटर ट्रक बेचकर अपनी रोज़ी-रोटी चलाता था, परंतु मैं नहीं जानता था कि मोटर ट्रक को कौन सी चीज़ चलाती है। यही नहीं, मैं यह जानना भी नहीं चाहता था। मैं अपने काम से नफ़रत करता था। मैं वेस्ट फिफ्टी सिक्स्थ स्ट्रीट पर सस्ते तरीक़े से सजे कमरे में रहने से नफ़रत करता था - वह कमरा जिसमें कॉकरोच भरे थे। मुझे अब भी याद है, कमरे की दीवार पर मेरी टाइयों का ढेर टँगा रहता था; और जब एक सुबह मैंने नयी टाई निकालने के लिये वहाँ हाथ डाला, तो कॉक़रोच हर दिशा में भागे। मैं उन गंदे, सस्ते होटलों से नफ़रत करता था, जहाँ मुझे भोजन करना पड़ता था क्योंकि शायद वहाँ भी कॉकरोच भरे होंगे।
हर रात को अपने सूने कमरे में लौटते समय मेरे सिर में दर्द होता था और यह सिरदर्द निराशा, चिंता, कड़वाहट और विद्रोह की वजह से होता था। मैं इसलिये दुखी था क्योंकि कॉलेज के ज़माने में मैंने जो ख़ुशनुमा सपने संजोये थे, वे अब बुरे सपनों में बदल गये थे। क्या यही ज़िंदगी थी? क्या यही वह रोमांचपूर्ण और महत्वपूर्ण कार्य था, जिसके लिये मैं इतने उत्साह से आगे बढ़ रहा था ? क्या मेरे लिये जीवन का यही मतलब रहेगा – एक सड़ी सी नौकरी करना, जिससे मैं नफ़रत करता था, कॉकरोचों के साथ रहना और घटिया भोजन करना – और भविष्य में कुछ बेहतर होने की आशा न होना ?... मेरी हसरत थी कि मेरे पास किताबें पढ़ने और लिखने की फ़ुरसत हो, जिसका सपना मैंने कॉलेज के दिनों में देखा था।...
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