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बाइबिल की लोक कथाएँ

मनोहर वर्मा

प्रकाशक : आत्माराम एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :24
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5059
आईएसबीएन :81-7043-522-8

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बाइबिल की 6 लोक कथाओं का वर्णन।

Baibil Ki Lok Kathayein A Hindi Book by Manohar Lal Verma - बाइबिल की लोक कथाएँ - मनोहर वर्मा

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

नोआ की नाव

यह कहानी बहुत ही प्राचीन और सृष्टि के आदि युग की है। सर्वप्रथम यह सम्पूर्ण विश्व जल में डूबा हुआ था। सृष्टि के आरम्भ में ईश्वर ने पृथ्वी और स्वर्ग की रचना की। पृथ्वी का कोई रूप न था। सब-कुछ अन्धकारमय था। ईश्वर ने प्रकाश की उत्पत्ति की, फिर प्रकाश और अन्धकार के पृथक होने पर प्रकाश को दिन और अन्धकार को रात्रि की संज्ञा दी।

सारा ब्रह्माण्ड जलमय था। धीरे-धीरे जल और नभमण्डल भी पृथक्-पृथक् हो गए। जल से स्थल की उत्पत्ति हो जाने के पश्चात् पृथ्वी पर वनस्पति, औषधि, लता आदि उत्पन्न हुए। ईश्वर ने जलचर, नभचर, आदि जीवों की रचना की। स्त्री-पुरुष को उत्पन्न कर उसने सन्तान पैदा करने की आज्ञा दी, जिससे क्रमश: इस सुन्दर विश्व की रचना हुई।

ईश्वर की संतान इस संसार में सुखपूर्वक आनन्द से रहने लगी। धीरे-धीरे वे दुष्ट, दुराचारी और लापरवाह बनते गए। पृथ्वी पर दुराचार की वृद्धि हो गयी। मनुष्य संसार के माया-मोह में पड़कर परम पिता परमेश्वर को भूल गया। इससे परम पिता को अत्यन्त दुख हुआ।

उन्होंने देखा कि उन्हीं के द्वारा रचा गया मानव-समाज किस प्रकार अपनी भूल से उनका अपमान कर रहा है। अन्त में उन्होंने कहा- ‘‘मनुष्यो, तुमने मेरे सुन्दर विश्व को भ्रष्ट कर दिया है, मैं तुम्हारा नाश कर दूँगा।’’
परन्तु नोआ ईश्वर का कृपा-पात्र था। उसने कभी उनका विस्मरण नहीं किया था। वह नेक और सत्यवादी था। नोआ के तीन पुत्र शेम, हैम और जाफेट थे। उसने उन्हें ईश्वर की पूजा-सेवा करने की शिक्षा दी थी।


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