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परिश्रम का फल

रामस्वरूप कौशल

प्रकाशक : स्वास्तिक प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :24
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5065
आईएसबीएन :81-88090-14-x

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इस पुस्तक में परिश्रम के फल संबंधी कथाओं का उल्लेख किया गया है.....

Parishram Ka Pha-A Hindi Book by Ramswaroop kaushal

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

एक सौ पाँच ?

चिर काल हुआ, भारत देश में राजाओं के दो बड़े कुल हुए हैं। एक का नाम कुरु-वंश था और दूसरे का नाम पाण्डु-वंश। कुरु-वंश वाले ‘कौरव’ और पाण्डु-वंश वाले ‘पाण्डव’ कहलाए। कौरव और पाण्डव परस्पर भाई-भाई थे।
कौरव सौ भाई थे, जिनमें दुर्योधन बहुत मशहूर हुआ। पाण्डव पाँच भाई थे, जिनमें से युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन ने खूब नाम पाया।

उनके कई-एक शुभ गुणों के कारण दुर्योधन पाण्डव-बन्धुओं से बहुत जलता था, वह चाहता था कि जैसे बने उन्हें बरबाद करके उनका राज-पाट सब आप हड़प ले।

दुर्योधन वीर पाण्डवों को खुल्लम-खुल्ला युद्ध में तो हरा नहीं सकता था, इसलिए उसने यह चाल चली कि युधिष्ठिर को अपने साथ जुआ खेलने पर तैयार कर लिया, और जुए में उसका राज-पाट, धन-माल, भाई-पत्नी, नौकर-चाकर, सभी कुछ जीत लिया और पाण्डवों को कौड़ी-कौड़ी के मोहताज करके वनों में खदेड़ दिया।
पाण्डव बेचारे जुए में सभी-कुछ हार वनों को ज़रूर गए पर दुर्योधन ने वहाँ भी उन्हें सतानें और दिक करने में अपनी ओर से कोई कसर उठा न रखी।

एक दिन दुर्योधन को पता चला कि पाण्डव इन दिनों अमुक वन में टिके हैं। उसने सोचा-‘पाण्डवों का जी जलाने के लिए भारी सेना लेकर वहाँ चलना चाहिए। वे लोग हमारा ठाट-बाट देखेंगे, तब जल-भुनकर राख ही तो हो जाएँगे।’ बस इस विचार का मन में उठना था कि उसने अपने मित्रों, साथियों और सेना को संग लिया और उसी वन में आ धमका।

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