मनोरंजक कथाएँ >> मालवा की कहानियाँ मालवा की कहानियाँश्याम परमार
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बाल कहानी संग्रह में प्रस्तुत है मालवा देश की कहानियाँ ....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
बार्या
एक डोकरी थी। एक दिन कुम्हार के यहाँ से जाकर वह चार बार्ये मोल लाई। घर
आकर उसने चारों को पंडेरी पर रखा और मटके में से आटा निकालकर रोटी बनाने
बैठी।
डोकरी की कमर झुक गई थी। कठिनाई से वह कोई काम कर पाती थी। आटा गूँधते हुए उसने एक निसास लेकर कहा, ‘‘आज मेरा कोई बेटा होता तो गेहूँ काटने जाता।’’
डोकरी की बात ओवरी में घूम गई। पंडेरी पर रखे चारों बार्ये एक दूसरे से टकराकर हिलने लगे, मानो वे एक दूसरे से बात कर रहे हों। डोकरी ने फिर निसास ली।
एक बार्या जो बड़ी देर से हिल रहा था अब और भी जोर से हिलने लगा। डोकरी के कान में आवाज आई, ‘‘माँ-माँ, मैं गेहूँ काटने जाऊँ ?’’
डोकरी ने आसपास देखा। कुछ दिखाई नहीं दिया। उसे फिर सुनाई पड़ा, ‘‘माँ-माँ, मैं गेहूँ काटने जाऊँ ?’’
डोकरी ने कहा, ‘‘कौन बोल रहा है ? यह कहाँ से बोल रहा है ?’’
पंडेरी पर से उतरकर एक बार्या रड़कता-रड़कता डोकरी के पास आ गया, ‘‘यह मैं हूँ माँ, बार्या।’’
डोकरी के पोपले गालों पर हँसी भर गई। बोली, ‘‘ये गावड़ी काट्या तू कँई गँऊ काटेगो ?’’
(ए शैतान, तू क्या गेहूँ काँटेगा ?)
‘‘देख तो सही माँ, मैं अभी गेहूँ काट लाता हूँ।’’- कहते हुए बार्या रड़कता-रड़कता आवेरी के बाहर निकल गया।
वह गाँव के पटेल के पास गया, ‘‘पटेल, पटेल, मैं गेहूँ काटूँगा।’’
डोकरी की कमर झुक गई थी। कठिनाई से वह कोई काम कर पाती थी। आटा गूँधते हुए उसने एक निसास लेकर कहा, ‘‘आज मेरा कोई बेटा होता तो गेहूँ काटने जाता।’’
डोकरी की बात ओवरी में घूम गई। पंडेरी पर रखे चारों बार्ये एक दूसरे से टकराकर हिलने लगे, मानो वे एक दूसरे से बात कर रहे हों। डोकरी ने फिर निसास ली।
एक बार्या जो बड़ी देर से हिल रहा था अब और भी जोर से हिलने लगा। डोकरी के कान में आवाज आई, ‘‘माँ-माँ, मैं गेहूँ काटने जाऊँ ?’’
डोकरी ने आसपास देखा। कुछ दिखाई नहीं दिया। उसे फिर सुनाई पड़ा, ‘‘माँ-माँ, मैं गेहूँ काटने जाऊँ ?’’
डोकरी ने कहा, ‘‘कौन बोल रहा है ? यह कहाँ से बोल रहा है ?’’
पंडेरी पर से उतरकर एक बार्या रड़कता-रड़कता डोकरी के पास आ गया, ‘‘यह मैं हूँ माँ, बार्या।’’
डोकरी के पोपले गालों पर हँसी भर गई। बोली, ‘‘ये गावड़ी काट्या तू कँई गँऊ काटेगो ?’’
(ए शैतान, तू क्या गेहूँ काँटेगा ?)
‘‘देख तो सही माँ, मैं अभी गेहूँ काट लाता हूँ।’’- कहते हुए बार्या रड़कता-रड़कता आवेरी के बाहर निकल गया।
वह गाँव के पटेल के पास गया, ‘‘पटेल, पटेल, मैं गेहूँ काटूँगा।’’
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