कहानी संग्रह >> हम फ़िदा ए लखनऊ हम फ़िदा ए लखनऊअमृतलाल नागर
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जीवन भर लखनऊ में रहने वाले प्रसिद्ध साहित्यकार अमृतलाल नागर की ये कहानियाँ मनोरंजन के साथ लखनऊ के जनजीवन के हर पहलू को उजागर करती हैं।
Hum Fida-e-Lucknow - Amritlal Nagar
लखनऊ और अवध सदा से अपनी विशिष्ट संस्कृति के लिए विख्यात रहा है। नज़ाकत और नफासत के लिए विशेष रूप से जानी जाने वाली लखनवी संस्कृति आज भी वहां के जन मानस में ज़िन्दा है। वहां के निवासियों का यह कहना सच ही है कि ‘हम फ़िदा ए-लखनऊ’, लखनऊ हम पे फिदा’। जीवन भर लखनऊ में रहने वाले प्रसिद्ध साहित्यकार अमृतलाल नागर की ये कहानियाँ मनोरंजन के साथ लखनऊ के जनजीवन के हर पहलू को उजागर करती हैं।
पद्मभूषण से सम्मानित अमृतलाल नागर हिन्दी साहित्य में मील का पत्थर साबित हुए। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कृत उनके उपन्यास ‘खंजन नयन’, ‘मानस का हंस’, ‘नाच्यो बहुत गोपाल’, बिखरे तिनके और साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत ‘अमृत और विष’ की तरह ही उनकी कहानियां भी बहुत लोकप्रिय हैं। इस पुस्तक में प्रस्तुत उनकी कहानियां मनोरंजन के साथ-साथ लखनऊ के जनजीवन की झांकी भी प्रस्तुत करती है।
पद्मभूषण से सम्मानित अमृतलाल नागर ने हिन्दी साहित्य को एक नया मोड़ दिया। भाषा की अनूठी शैली के द्वारा उन्होंने कथा साहित्य को एक नया अन्दाज़ और नई भंगिमा दी। अपनी किस्सागोई शैली के कारण नागर जी ने अपना एक विशाल पाठकवर्ग तैयार किया। उनका जन्म 17 अगस्त 1916 को गोकुलपुरा, आगरा में हुआ। नागर जी ने गद्य की सभी विधाओं में उत्कृष्ट रचनाएं दीं। वे अपनी कथात्मक कृतियों में एक चिन्तनशील कलाकार के रूप में उभरे। उनका चिन्तक व्यक्तित्व समाज की बुराइयों और विसंगतियों से निरंतर संघर्ष करता रहा। भारतीय जनमानस को आन्दोलित करने वाले सामयिक प्रश्नों को उन्होंने उठाया वरन् उन्हें समाधान की दिशा भी दी। अपने कथा-साहित्य में अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों को समेटने का सामर्थ्य रखने वाले अमृतलाल नागर जी का निधन 23 फरवरी 1991 को हुआ।
पद्मभूषण से सम्मानित अमृतलाल नागर हिन्दी साहित्य में मील का पत्थर साबित हुए। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कृत उनके उपन्यास ‘खंजन नयन’, ‘मानस का हंस’, ‘नाच्यो बहुत गोपाल’, बिखरे तिनके और साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत ‘अमृत और विष’ की तरह ही उनकी कहानियां भी बहुत लोकप्रिय हैं। इस पुस्तक में प्रस्तुत उनकी कहानियां मनोरंजन के साथ-साथ लखनऊ के जनजीवन की झांकी भी प्रस्तुत करती है।
पद्मभूषण से सम्मानित अमृतलाल नागर ने हिन्दी साहित्य को एक नया मोड़ दिया। भाषा की अनूठी शैली के द्वारा उन्होंने कथा साहित्य को एक नया अन्दाज़ और नई भंगिमा दी। अपनी किस्सागोई शैली के कारण नागर जी ने अपना एक विशाल पाठकवर्ग तैयार किया। उनका जन्म 17 अगस्त 1916 को गोकुलपुरा, आगरा में हुआ। नागर जी ने गद्य की सभी विधाओं में उत्कृष्ट रचनाएं दीं। वे अपनी कथात्मक कृतियों में एक चिन्तनशील कलाकार के रूप में उभरे। उनका चिन्तक व्यक्तित्व समाज की बुराइयों और विसंगतियों से निरंतर संघर्ष करता रहा। भारतीय जनमानस को आन्दोलित करने वाले सामयिक प्रश्नों को उन्होंने उठाया वरन् उन्हें समाधान की दिशा भी दी। अपने कथा-साहित्य में अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों को समेटने का सामर्थ्य रखने वाले अमृतलाल नागर जी का निधन 23 फरवरी 1991 को हुआ।
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